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दुनियाभर में समुद्री पक्षियों की तादाद घट रही है. अफ्रीकी देश केप वैर्डे में संरक्षण अभियान शुरू किया गया है ताकि समुद्री पक्षियों की प्रजातियों के प्रजनन की जगहों को बचाया जा सके. इन पर बढ़ते पर्यटन से खतरा मंडरा रहा है.
इस बार मंथन में जानिए चेहरे पहचानने के 'सुपर पावर' की पुलिस महकमे में क्यों हैं इतनी मांग और कैसे निगरानी वाले कैमरों से दुनिया में बड़े बदलाव आ रहे हैं. इसके अलावा होगी बात किसी और माहौल से आकर मूल प्रजातियों के लिए खतरा बनती घुसपैठिया प्रजातियों की. अपने पसंदीदा साइंस शो में मिलिए नाव की बजाय घोड़े पर सवार होकर मछली पकड़ने वाली महिलाओं से भी.
केन्या में हाथी, गैंडे और शेर जैसे जानवरों के साथ-साथ कई लुप्तप्राय प्रजातियों को बचाने की कोशिश की जा रही है. केन्या में हुई वन्यजीव गणना में कई अहम बातें सामने आई हैं.
दक्षिण अफ्रीका में छोटे स्तर पर मछली पकड़ने वाले मछुआरे अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. उद्योग पर बड़ी कंपनियों का दबदबा है और लगातार मछलियां लगातार कम हो रही हैं. इस बीच अबलोबी ऐप मछुआरों को सीधे अंतिम उपभोक्ताओं से जोड़ने की कोशिश कर रहा है, साथ ही मछली की स्थानीय प्रजातियों के लिए एक बाजार भी बना रहा है.
आर्कटिक में अब भी बहुत सारी ध्रुवीय बर्फ मौजूद है. इतनी कि यहां ध्रुवीय भालुओं जैसी स्थानीय प्रजातियों के अलावा किसी और का रहना मुश्किल है. पर ये बर्फ तेजी से पिघल भी रही है. अब पर्यावरण के लिए तो यह खतरे की घंटी है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें इस आपदा में अवसर नजर आ रहा है. ये हैं शिपिंग कंपनियां. आर्कटिक की बर्फ पिघलने से उन्हें क्या फायदा हो सकता है. आइए देखते हैं.
जल प्रदूषण और नदी तल के खनन से कश्मीरी मछलियों की कई देशी प्रजातियां विलुप्त हो गई है. इससे लोगों के पारंपरिक खान-पान पर भी असर पड़ा है.
भूरे चूहे, अमेरिकी बुलफ्रॉग, ये सभी यूरोप के लिए घुसपैठिया प्रजातियां हैं. ऐसे जीव और पौधे मूल प्रजातियों को खत्म कर सकते हैं. लेकिन हर घुसपैठिया प्रजाति से खतरा नहीं होता है.
वैज्ञानिकों को तितलियों की कुछ ऐसी प्रजातियां मिली हैं जो कभी सुर्ख रंगों में चमकती हैं तो कभी पारदर्शी बनकर छुप जाती हैं. समझिए तितलियों के इस खेल को.
धरती पर रहने वाली अलग अलग प्रजातियों के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है. स्पेन में कुछ लोग कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह से इंसानों और भालुओं का बार बार टकराए बिना एक साथ रहना संभव बनाया जाए.
भारत में गिद्ध अत्यधिक लुप्तप्राय प्रजाति बन चुके हैं. धरती की गंदगी साफ करने वाले इन जीवों के संरक्षण के लिए महाराष्ट्र में एक संगठन स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रहा है.
हर साल जानवरों की दर्जनों प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं. लेकिन कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं जो दोबारा जी उठती हैं या खोजी जाती हैं.
मंकी पजल पेड़ दुनिया की सबसे पुरानी प्रजातियों में से एक हैं. उस समय से ये पेड़ धरती पर मौजूद हैं जब यहां डायनारोस हुआ करते थे. लेकिन आज इन पेड़ों पर खतरा मंडरा रहा है.
उल्लुओं के रहने की जगहें कम होने के कारण उनकी तादाद भी कम होती जा रही है. उल्लुओं के संरक्षण के महत्व को समझते हुए रूस में एक महिला ने उनके लिए एक संग्रहालय खोल दिया. यहां घायल उल्लुओं की देखभाल होती है जिसके बाद उन्हें वापस जंगल में छोड़ दिया जाता है.
जैव-विविधता को बचाने की कई कोशिशें हो रही हैं. इसके बावजूद बहुत सी प्रजातियों को बचाया नहीं जा सकेगा. अगर हम कहें कि विकास की प्राकृतिक प्रक्रिया की भी इसमें भूमिका है, तो भी जिस तेजी से ये हो रहा है वो चिंताजनक है. क्या वैज्ञानिकों के पास समस्या का समाधान हो सकता है, आइए देखते हैं.
2015 में जलवायु परिवर्तन की वजह से उपजे एक जीवाणु संक्रमण ने साइगा मृग की 90 फीसदी आबादी को तबाह कर दिया. लेकिन विनाश के बाद, वैज्ञानिक कजाखस्तान में साइगा मृगों की आबादी में आज एक तेज उछाल देख रहे हैं.
रूस में वैज्ञानिकों को विशाल लकड़बग्घे की खोपड़ी मिली है. खोपड़ी में दांतों के साथ जबड़ा भी मौजूद है. लकड़बग्घों की यह प्रजाति करीब चार लाख साल पहले लुप्त हो गई.
अफ्रीकी देश कैमरून में घने जंगलों के बीच दुर्लभ प्रजाति के गोरिल्ला रहते हैं. एक तरफ शिकारी उनकी जान के दुश्मन बने हैं तो दूसरी तरफ जंगलों को काट कर पैसा बनाने वाली कंपनियां उनके बसेरों को उजाड़ रही हैं. लेकिन कुछ लोग उन्हें बचाने में जुटे हैं.
एक गैरसरकारी संगठन केप जलकौवों को बचाने की कोशिश में जुटा है. वह चूजों को अफ्रीका दे रोबन द्वीप से बाहर निकाल कर उनकी देखभाल करता है और पूरी तरह तैयार करने के बाद वापस जंगल में छोड़ देता है.
बॉटनिक गार्डन कंजर्वेशन इंटरनेशनल (बीजीसीआई) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की लगभग एक तिहाई वृक्ष प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जबकि सैकड़ों जंगली पेड़ विलुप्त होने के कगार पर हैं.
दुनिया भर में कीटों की आबादी घटने की एक बड़ी वजह ध्वनि प्रदूषण है. और इसका असर हमारी खाद्य श्रृंखला यानि फूड चेन पर पड़ रहा है. सेव द बीज़ - एक पहल है जो इसे रोकना चाहती है. लेकिन सफलता तभी मिलेगी जब हमें ये पता हो कि किस प्रजाति को बचाना है.