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दिल की बीमारियों और तरह तरह के कैंसर से हर दिन अनगिनत जानें जाती हैं. मेडिकल फील्ड में इतनी तरक्की होने के बावजूद दवाएं, थेरेपी और ऑपरेशन भी एक सीमा तक ही मदद कर पाते हैं. क्या कोई और तकनीक नहीं है जिससे शरीर अपने आप खुद को दुरुस्त कर सके? अपने पसंदीदा साइंस शो मंथन के इस एपिसोड में जानिए दुनिया भर के रिसर्चर जेब्राफिश के किन खास गुणों के चलते गंभीर बीमारियों से निपटने में इससे सबक ले रहे हैं.
क्या काले लोग बीमार नहीं होते, उनके ऑपरेशन नहीं होते या उनके बच्चे नहीं होते. तो फिर दुनिया भर में पढ़ाई जाने वाली मेडिकल की किताबों में हमेशा गोरे लोगों के ही चित्र क्यों बने होते हैं. यही बात चिडिबेरे ईबे को परेशान करती थी और उन्होंने इसका समाधान निकाला है.
नॉर्मल डिलीवरी में कई घंटे लगते हैं और सिजेरियन में बस कुछ मिनट. सी सेक्शन बहुत जल्दी हो जाता है लेकिन यह कोई छोटा मोटा ऑपरेशन नहीं है.
ऑपरेशन के जरिए बच्चा पैदा करने का चलन बढ़ता जा रहा है. जानिए, क्यों करना पड़ता है सिजेरियन, दुनिया में कहां होते हैं सबसे ज्यादा और सबसे कम सी सेक्शन और कैसे मिला इसे यह नाम.
आपने पथरी के ऑपरेशन के सिलसिले में लेजर का नाम सुना होगा या फिर महिलाएं भी शरीर से स्थाई रूप से रोएं हटवाने के लिए भी लेजर ट्रीटमेंट करवाती है. लेकिन लेजर बहुत ही ताकतवर होती है और उपयोगी भी. देखिए.
दुनिया भर में हर तीन में से एक बच्चा सी-सेक्शन से यानि पेट चीर कर निकाले जाने वाले बड़े ऑपरेशन से दुनिया में आता है. लेकिन इससे बच्चे की सेहत पर हमेशा के लिए बुरा असर हो सकता है.
मंथन के इस एपिसोड में देखिए ऑपरेशन थिएटर में औजारों से परेशान रहने वाली सर्जनों की मदद का जबरदस्त तरीका. साथ ही जानेंगे कि भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में क्यों आदमखोर बन रहे हैं तेंदुए और सुलझाएं का कांच के चूर चूर होने का राज.
जर्मनी के म्युनिख में रिसर्चर ऐसे गॉगल्स बनाने की कोशिश में हैं जिसे लगाते ही डॉक्टर को मरीज के शरीर के अंगों का हाल दिख जाएगा. इन्हें डाटा विजन ग्लास कहा जा रहा है और इससे बाहर से ही दिख जाएगा कि कहां कोई धमनी सिकुड़ी हुई है या फिर शरीर में कहां ट्यूमर है. इसके लिए जो तकनीक इस्तेमाल में लाई जाएगी वो ऑगमेंटेड रिएलिटी पर आधारित है और आने वाले समय में ऑपरेशन थिएटर का पूरा माहौल बदल सकती है.
बदलने वाली है ऑपरेशन थिएटर की तस्वीर, जब आंखों पर लगा चश्मा दिखा देगा मरीज के शरीर के भीतर का हाल. कैसे काम करेंगे डाटा विजन ग्लासेज़, जानिए मंथन में इस शनिवार सुबह ग्यारह बजे, डीडी नेशनल पर.
जीवन के अनुभवों से जाने-अनजाने में इंसान बहुत कुछ सीखता रहता है जिससे सोच और नजरिए में बदलाव आना लाजमी है. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ इंसान की नजर भी बदलती है.
साइंस शो मंथन के इस एपिसोड में देखिए कैसे बदल रहे हैं ऑपरेशन थिएटर, जहां डॉक्टर 'वीआर सेट' यानी वर्चुअल रिएलिटी सेट लगा कर बिना आपकी तरफ देखे हुए ऑपरेशन कर सकता है. उसके अलावा जानिए सड़क छोड़ हवा में उड़ने को तैयार हो चुकी टैक्सियों के बारे में भी.
कभी सिर्फ वीडियो गेम्स में ही दिखने वाली वर्चुअल और ऑगमेंटेड रिएलिटी का इस्तेमाल अब ऑपरेशन थिएटर में होने जा रहा है. ऐसे सेट्स पर टेस्ट चल रहे हैं जो सर्जरी को आसान बना सकेंगे.
थाईलैंड के जंगलों में अमेरिकी सेना की प्रशांत कमांड के सैनिक थाई सेना के साथ खास कंमाडो ट्रेनिंग करते हैं. देखिए, कितनी मुश्किल होती है ये ट्रेनिंग. इसकी कुछ तस्वीरें विचलित कर सकती हैं.
कई औरतों का मां बनने का सपना इसलिए पूरा नहीं हो पाता क्योंकि उनके शरीर में गर्भाशय यानी यूटरस ही नहीं होता है. आम भाषा में जिसे हम कोख कहते हैं. कई बार यूटरस होने के बाद भी कुछ ऐसे मुश्किलें होती हैं कि वो ठीक से काम नहीं कर पाता. ऐसे में किसी और के शरीर से यूटरस ले कर उसे ट्रांसप्लांट किया जा सकता है. हम उस डॉक्टर से मिलने पहुंचे, जिसने जर्मनी में पहली बार ऐसा ऑपरेशन किया है
रोबोट अब ऑपरेशन थिएटर में भी पहुंच चुके हैं. डॉक्टर रोबोट को चलाते हैें और रोबोट इंसान के शरीर पर चीरा लगाता है और उसे सीता भी है. देखिए, कैसे काम करता है आईआईस्नेक नाम का सर्जिकल रोबोट.
इतिहास में ऐसे कई मौके आए जब मुल्कों ने आपसी मतभेदों को भुलाकर एक-दूसरे के लिए हाथ बढ़ाए और मदद की. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने भी कई ऐसे मदद और बचाव ऑपरेशन देश के भीतर और बाहर चलाए.
प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों का ऑपरेशन कर शरीर से प्रोस्टेट को बाहर निकाल दिया जाता है. लेकिन इसका नतीजा ये होता है कि मूत्राशय पर नियंत्रण नहीं रह जाता.
सफर के लिए ट्रेन का इस्तेमाल तो आपने बहुत बार किया होगा. लेकिन क्या ट्रेन में अपना इलाज कराया है. देश में चलने वाली इस लाइफलाइन एक्सप्रेस में मरीजों का न सिर्फ प्राथमिक इलाज होता है बल्कि यह ट्रेन ऑपरेशन भी करती है.
ऑपरेशन थिएटर मशीनों से लैस होते हैं. लेकिन एक दिक्कत डॉक्टरों को यह आती है कि हर मशीन अलग कंपनी की बनी होती है. ऐसे में ये एक दूसरे के साथ संपर्क नहीं कर पाती और डॉक्टरों को सारा डाटा समझना पड़ता है. इसीलिए जर्मनी के एक मेडिकल कॉलेज में इन सब मशीनों को आपस में सिंक किया जा रहा है.
दिल के मरीजों में सबसे ज्यादा ऑपरेशन हॉर्ट वॉल्व को बदलने के लिए होते हैं. अब 3डी लैब के रिसर्चर इंसान के दिल के लिए कंपैटिबल जैविक वॉल्व बनाना चाहते हैं, जिन्हें कभी बदलना नहीं पड़ेगा.