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अपने ऐशो आराम के लिए हम अपनी प्रकृति को नुकसान पहुंचाने लगते हैं. फिर चाहे बात हमारे खाने पीने की हो, फैशन की या फिर यातायात की. हमारी पसंंद हमारी धरती की पसंद से अलग होती जा रही है. तो इसे कैसे बदलें? इस एपिसोड में देखिए कुछ ऐसे ही आइडिया.
ईको इंडिया के इस एपिसोड में देखिए असम में मौजूद दुनिया के पहले कार्बन न्यूट्रल चाय बागान- वेस्ट जालिंगा टी एस्टेट में काम कैसे होता है. इसके अलावा मुंबई में मानव-तेंदुआ संघर्ष कम करने की कोशिशों पर होगी बात. साथ ही देखिए मेक्सिको में समुद्री जीव ऑक्टोपस को फार्म में पालने के लिए किया जा रहा शोध. एपिसोड के आखिर में जानिए सूपरफूड- सीवीड के बारे में.
असम दुनिया का सबसे बड़ा चाय उत्पादन क्षेत्र है. 10 लाख से ज्यादा कामगार यहां दयनीय परस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर हैं. कई जगह तो 150 रुपये से भी कम दिहाड़ी मिलती है. लेकिन यहीं के वेस्ट जलिंगा चाय बागान ने साबित कर दिखाया है कि सस्टेनेबल तरीके से भी चाय का कारोबार संभव है. यह दुनिया का पहला कार्बन न्यूट्रल चाय बागान भी है.
बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है. यहां 'गोइंग टू स्कूल' नाम का प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा है, जिसका मकसद छात्रों को स्कूल में रोके रखना है. इस अभियान के तहत छात्रों को अपना कोई टिकाऊ कारोबार शुरू करना भी सिखाया जाता है. इस एपिसोड में नजर डालेंगे सस्टेनेबलिटी से जुड़े कुछ प्रयासों पर.
ईको इंडिया के इस एपिसोड में देखिए महाराष्ट्र में मल्टी-लेयर प्लास्टिक को रिसाइकिल करने का बेहतर तरीका जो महिलाओं के लिए आजीविका का साधन भी बना है. इसके अलावा जानिए घाना में बनाई जा रहीं प्लास्टिक ईंटों के बारे में. साथ ही देखिए, कैसे कुछ "नदी योद्धा" बाली की नदियों को साफ कर रहे हैं.
दुनियाभर में हर साल करीब दो अरब टन कूड़ा निकलता है. इसमें काफी कुछ तो खाने की पैकिंग होती है लेकिन ऐसी चीजें भी मिलीं जिन्हें खरीदने के छह महीने के अंदर ही फेंक दिया गया. जीरो-वेस्ट आंदोलन के तहत चीजों के कम या बार-बार इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है, जिससे प्रकृति का संरक्षण हो और प्रदूषण भी कम हो. भारत में भी दिखी इस पहल की एक झलक.
तेजी से होते विकास ने कई शहरों में निर्माण कार्य को भी तेजी से बढ़ाया है लेकिन सीमेंट को बनाने में बहुत ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन होता है. हरित विकल्प की तलाश में तमिलनाडु में दो इंजीनियर प्राचीन तकनीक को विलुप्त होने से बचा रहे हैं.
सिंगापुर तेजी से गर्म हो रहा है और जलवायु परिवर्तन इसका एकमात्र कारण नहीं है. इसकी घनी बसावट वातावरण में गर्मी को फंसाए रखती है. एयर कंडीशनिंग इस समस्या को और भी बढ़ाती है. ईको फ्रेंडली समाधान शहर को ठंडा रखने में मदद कर रहे हैं.
आधुनिक जीवन में गाड़ियों की बहुत बड़ी भूमिका है. हम कारों पर इतने निर्भर हैं कि हमारे शहर इनसे भरे पड़े हैं. लेकिन कारें सड़कों को जाम करती हैं, ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं और ध्वनि प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार हैं. इस ए़पिसोड में डालेंगे नजर यातायात के कुछ टिकाऊ विकल्पों पर.
दुनिया में सोलर पैनलों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. यह सस्ता है, सबसे क्लाइमेट-फ्रेंडली ऊर्जा स्रोतों में गिना जाता है. लेकिन इतने फायदों के बावजूद सोलर एनर्जी पूरी तरह से इको-फ्रेंडली नहीं है.
उत्पादन, यातयात और ऊर्जा का इस्तेमाल पर्यावरण और उसके ईको सिस्टम पर गहरा असर डालते हैं. हमारे द्वारा इस्तेमाल की जा रही ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा अब भी जीवश्म ईंधन से आता है. और आने वाले समय में ऊर्जा की मांग और भी बढ़ेगी. हानिकारक में "ग्रीनहाउस गैसों" के उत्सर्जन में कमी कैसे लाई जाए? समय से निपटने के क्या हल है? इसी पर करेंगे चर्चा इस एपिसोड में.
लगातार बढ़ते ही जा रहे उत्पादन, खपत और संसाधनों के बेशुमार दोहन ने पर्यावरण के सामने संकट खड़ा कर दिया है. तो हम अपने समाज की जरूरतों, हमारी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के बीच संतुलन कैसे बनाएं? इसी का जवाब खोजने की कोशिश करेंगे ईको इंडिया के इस एपिसोड में.
भविष्य में जंग शायद पानी के लिए ही लड़ी जाएगी. पानी धरती पर जीवन की बुनियादी जरूरत है, जो जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आबादी के कारण दुर्लभ होता जा रहा है. इस एपिसोड में देखिए इस समस्या की वजह और उसके हल.
दुनिया के ज्यादातर लोग शहरों में रहना चाहते हैं. ज्यादा सुविधाएं, बढ़िया आमदनी और शिक्षा के बेहतर विकल्प सबको शहरी जीवन की ओर खींच लाते हैं. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि साल 2050 तक धरती की 75% आबादी शहरों में रहा करेगी. इसके लिए क्या हमारे शहर तैयार हैं? ऐसे क्या उपाय हैं जिनसे भविष्य के शहरों का पर्यावरण सुरक्षित रह सकेगा? आज के एपिसोड में इसी पर करेंगे बात.
आधुनिक मानव जमीन के इस्तेमाल के तरीके बदलते जा रहे हैं. फिर चाहे जंगल जलाकर खेती लायक जमीन तैयार करनी हो या घास के मैदानों में सेंध लगाकर शहरों का विस्तार करना. धरती पर मौजूद हर तरह की जमीन की अपनी भूमिका है. जंगल, रेगिस्तान, वेटलेंड ये सभी ईकोसिस्टम में संतुलन बनाते हैं.
सामान से भरी सुपरमार्केट की रैक की अहमियत ज्यादातर लोग नहीं समझते. दुनिया भर में भुखमरी खत्म करने के संकल्पों के बावजूद कुपोषित लोगों की तादाद बढ़ रही है. दुनिया की तीस प्रतिशत से ज्यादा आबादी खाद्य असुरक्षा से प्रभावित है. आज हम जानेंगे, इससे निपटने के लिए हो रहे कुछ स्थानीय प्रयासों के बारे में.
भारत और पाकिस्तान के बीच सियासी मुद्दों पर ही नहीं, बल्कि बासमती चावल को लेकर भी रस्साकशी हो रही है. पाकिस्तानी किसानों का कहना है कि उनके चावल को भारत के नाम से विदेशों में बेचा जा रहा है. ऐसा सिर्फ भारत और पाकिस्तान के बीच नहीं हो रहा है. यूरोप में भी ऐसी मिसालें देखने को मिलती हैं.
आज दुनिया में रहने वाले आधे से ज्यादा लोग शहरों में रहते हैं. ये शहर कई तरह के दबाव झेल रहे हैं. बढ़ती आबादी के लिए बुनियादी ढांचा बनाने की चुनौती से लेकर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते जोखिम तक. ईको इंडिया के इस एपिसोड में देखिए तेजी से बदलते शहरों में उभरते कुछ नए तरह के समाधान.
इंसानों की शुरुआती पीढ़ियां कुदरत के साथ मिल कर रहती थीं. वो जिस ईकोसिस्टम से अपना वजूद पाते, उसे सहजते थे. पर्यावरण की हिफ़ाज़त के लिए हमारे पास मौजूद कुछ सबसे कारगर तरीके सदियों पुराने उसी प्राचीन ज्ञान का हिस्सा हैं. मगर जलवायु परिवर्तन के इस दौर में चरम मौसमी घटनाओं से निपटने में विज्ञान की भी बड़ी भूमिका है. आज ईको इंडिया में हम जानेंगे पारंपरिक और आधुनिक तरीकों के फायदे.
हम इंसानों के अलावा इसी धरती पर अस्सी लाख अलग अलग किस्म के जीव रहते हैं. हमारी हरकतों का लगातार उनकी जिंदगी पर भी असर पड़ता है. हम इंसान कभी उनके रहने की जगहों में बदलाव लाते हैं तो कभी उनके अस्तित्व के लिए ही खतरा बन जाते हैं. इंसानों और जानवरों के बीच के टकराव को रोकने का क्या कोई टिकाऊ समाधान है? जानिए ईको इंडिया के इस एपिसोड में.