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गणित सबके लिए आसान नहीं होता. अंतरिक्ष में यह काम और भी मुश्किल हो जाता है. ऐसा हम नहीं, जर्मन अंतरिक्ष यात्री माथियस माउरर कह रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (ISS) में रहने के अपने अनुभव के आधार पर. ऐसा क्यों है और भारहीनता का हमारे शरीर पर क्या असर होता है, जानिए इस वीडियो में.
छह महीने अंतरिक्ष में बिताने के बाद स्पेस एक्स कंपनी के अंतरिक्ष यात्री लौट आए हैं. देखिए, कैसे लौटे ये यात्री और कैसा रहा अभियान.
शक्तिशाली जेम्स वेब टेलीस्कोप अंतरिक्ष में पहुंच चुका है. इसके जरिए वैज्ञानिक को ब्रह्मांड के शुरुआती दिनों के बारे में कई जानकारियां मिलने की आशा है. यानी यह 13.8 अरब साल पहले के बिग बैंग के बाद के समय के तारों की तस्वीरें खींचेगा.
एक दिन में 24 घंटे होते हैं और हर घंटे में 60 मिनट. ये बात इंसान को कब और कैसे पता चली?
हम इंसानों के केवल चेहरे में ही बयालीस अलग अलग मांसपेशियां होती हैं. इनके अलग अलग कॉम्बिनेशन हमारे चेहरे पर अलग अलग भाव के रूप में दिखते हैं. लेकिन दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो इन बयालीस मसल्स में से हर एक को हिला सकते हैं. साइंस के खास शो मंथन में देखिए मांसपेशियों की खास एक्सरसाइज. इस एपिसोड में जानिए कि सुपरमैसिव ब्लैक होल पर कैसे नजर रखेगा जेम्स वेब दूरबीन.
हमारी आकाशगंगा के केंद्र में एक विशाल छिद्र है- ब्लैकहोल. इसका द्रव्यमान सूरज से 40 लाख गुना ज्यादा है. लोग सोचते हैं ब्लैक होल वैक्यूम क्लीनर के जैसे तारों को निगल लेता है. क्या हमारी आकाशगंगा भी अपने ब्लैक होल में समा सकती है?
चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो! इंसान भी धरती और चांद के पार मंगल पर दुनिया बसाने का सपना देख रहा है. मंगल पर रहना मुमकिन हो पाए, इसकी जोर-शोर से तैयारियां हो रही हैं. उस भविष्य की तैयारी के लिए इस्राएल के नेगेव रेगिस्तान में एक बड़ा प्रयोग हो रहा है. वैज्ञानिकों ने यहां एक छोटा 'मंगल ग्रह' बसा दिया है.
इस्राएल की एक कंपनी इस खास तरह के हेल्मेट को अंतरिक्ष भेज रही है, जहां अंतरिक्ष यात्रियों के मस्तिष्क का डेटा जमा किया जाएगा. क्यों खास है यह हेल्मेट...
इलॉन मस्क की कंपनी स्टारलिंक का दावा है कि वह बिजली जैसा तेज इंटरनेट दिलाएगी. लेकिन इस प्रोजेक्ट का एक पहलू चिंता पैदा करता है. स्टारलिंक के सैटेलाइट बार बार आकाश से गिर जाते हैं और कई बार तो अंतरिक्ष स्टेशनों से टकराने से बाल बाल बचे हैं.
अंतरिक्ष को लेकर हमेशा से इंसानों के अंदर जिज्ञासा रही है. बीती सदी में उसे समझने की दिशा में बहुत काम हुआ है. लेकिन अब कुछ लोग वहां जाकर छुट्टियां मनाने की बात कर रहे हैं. लेकिन इस पर कितना खर्च आएगा?
इंसानों ने बड़े लंबे वक्त से एलियंस के लिए पुकार लगाई है. लेकिन अब तक, कोई जवाब नहीं आया. अब रिसर्चर एलियंस के बजाय एलियन टेक के निशान खोज रहे हैं और उसके लिए दुनिया के सबसे तेज़ रेडियो टेलिस्कोप को काम पर लगाया है.
खगोलविदों ने हमारे पड़ोसी सौर मंडल प्रॉक्सिमा सेंटोरी में पृथ्वी जैसा एक ग्रह खोजा है. यह एक बड़ी खोज है. आइए, देखते हैं कुछ ऐसी ही और बड़ी खोजें, जो भविष्य बदल सकती हैं.
डोमिनिका वूलेत्सालेक जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का इस्तेमाल कर रिसर्च करने वाले पहले लोगों में से एक होंगी. हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी की इस खगोल भौतिकी विज्ञानी का लक्ष्य आकाशगंगाओं के केंद्र में बसे सुपरमैसिव ब्लैक होल को समझना है.
यह है काला हीरा, जिसका नाम एनिग्मा रखा गया है. माना जाता है कि यह हीरा पृथ्वी का नहीं है बल्कि बाहरी अंतरिक्ष से गिरा है. अब इसे नीलाम किया जा रहा है.
2022 का पहला पूरा चांद 17 जनवरी की शाम नजर आया. इसे वुल्फ मून भी कहा जाता है क्योंकि माना जाता है कि इस चांद की रात में भेड़िए ज्यादा हुआं-हुआं करते हैं. हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
46 साल के यूसाकु माइजावा पिछले साल 8 दिसंबर को रूसी सोयुज स्पेसक्राफ्ट से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए रवाना हुए थे. 2009 के बाद से वह अपने पैसों से अंतरिक्ष में घूमने जाने वाले पहले शख्स हैं.
अंतरिक्ष पर्यटन हो या मार्स पर इन्जेन्युटी के हेलीकाप्टर की उड़ान, 2021 मानव जाति को अंतरिक्ष से जोड़ने वाली कोशिशों के लिए एक ऐतिहासिक साल रहा. पेश है इसी कड़ी की कुछ घटनाओं पर एक नजर.
कल्पना कीजिए कि आप एक ट्रैवल पॉड में बैठे हैं और एक बेहद कम दबाव वाली ट्यूब के माध्यम से 1,200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से यात्रा कर रहे हैं. इस यात्रा से कार्बन उत्सर्जन की चिंता भी नहीं. सवाल ये है कि क्या इसे सच करने वाली हाइपरलूप 2030 तक इस्तेमाल में आ सकती हैं?
अंतरिक्ष में जीवन कैसा होता है? वहां लोग सूसू-पॉटी कैसे जाते हैं, सेक्स कैसे करते हैं, खाना कैसे खाते हैं जैसे सवाल सबके मन में उठते हैं. लीजिए सात ऐसे ही जरूरी सवालों के जवाब जानिए...
अंतरिक्ष से लौटते हुए कई यान दुर्घटना का शिकार हुए हैं जिनमें कई अंतरिक्ष यात्री मारे गए हैं. इनमें भारतीय मूल की कल्पना चावला भी हैं. आखिर अंतरिक्ष से वापस धरती पर लौटना इतना मुश्किल क्यों है?