लेजर किरणों से सफाई
६ सितम्बर २०१३जर्मनी का यह 14वीं सदी में बना. चूना पत्थर से बने चर्च की सफाई अब तक तो रासायनिक घोल से हो रही थी लेकिन इससे पत्थर की परतें भी हटने लगी थीं. अब यहां लेजर तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. टॉर्च जैसे उपकरण के इस्तेमाल से पत्थरों को नुकसान नहीं पहुंचाता, सिर्फ धूल और काई जैसी गंदगी हट जाती है. हालांकि इससे सफाई में वक्त काफी लगता है और यह तकनीक महंगी भी है. एक उपकरण करीब 35 लाख रुपये का है. लेकिन विशेषज्ञ इसके लिए तैयार हैं. रेस्टोरेशन एक्सपर्ट कार्ल फीडलर बताते हैं कि मध्यकालीन शिल्पकला वाली एक मूर्ति और उसके साथ के खंबे और मेहराबों की सफाई के लिए उन्होंने 400 घंटे की योजना बनाई है.
जर्मन शहर आखन की एक कंपनी क्लीनलेजर ने इस उपकरण को तैयार किया है. इसका सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि रसायनों का इस्तेमाल बंद किया जा सकता है. यह लेजर टॉर्च इस कंपनी के लिए सफलता का एक उम्दा फॉर्मूला साबित हो रही है. पिछले साल कंपनी ने करीब एक करोड़ यूरो कमाए. यह तकनीक पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाती. उल्म के चर्च को साफ करने के लिए एक और लेजर टॉर्च लाने की बात चल रही है.
कंपनी का मुनाफा
सफाई वाले ज्यादातर लेजर टॉर्च वाले उपकरण एशिया और उत्तरी अमेरिका में बिकते हैं. इस साल कंपनी पिछले साल से कहीं ज्यादा उपकरण बेच चुकी है. हर दिन इसे नए कामों में लगाया जाता है और अब तो हवाई जहाज बनाने में भी इसका इस्तेमाल होने लगा है.
कंपनी के सीईओ एडविन बुइष्टर बताते हैं, "एक हवाई जहाज पर जब बिजली चमकती है तो जरूरी है कि वह जहाज की बाहरी परत से होती हुई निकल जाए. नए जहाज की बॉडी कार्बन फाइबर से बनती है और इसमें धातु नहीं होता. ऐसे जहाजों में तांबे का एक लाइटनिंग कंडक्टर होता है और लेजर टॉर्च के जरिए विमान के अलग अलग हिस्सों को इस कंडक्टर से जोड़ा जा सकता है."
रिपोर्ट: हागेन टोबेर/अनवर अशरफ
संपादन: ईशा भाटिया