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राम सेतु की सही उम्र का पता लगाएगा पुरातत्व विभाग

चारु कार्तिकेय
१४ जनवरी २०२१

भारत और श्रीलंका के बीच चूना पत्थर के टीलों के समूह राम सेतु की सही उम्र पता लगाने के लिए पुरातत्व विभाग ने एक शोध की अनुमति दे दी है. आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों से पता करने की कोशिश की जाएगी कि आखिर यह सेतु कब बना था.

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तस्वीर: NASA

राम सेतु को मूल रूप से आदम के सेतु के नाम से जाना जाता है. यह तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित मन्नार द्वीप के बीच स्थित है. हिन्दू धर्म को मानने वालों के बीच मान्यता है कि इसे भगवान राम की वानर सेना ने बनाया था. इसीलिए भारत में इसे राम सेतु के नाम से भी जाना जाता है.

लेकिन चूंकि रामायण के पात्र या उस से जुड़े स्थानों की ऐतिहासिकता का आज तक कोई प्रमाण नहीं मिला है, इसलिए इस सेतु के बनने के इतिहास को लेकर हमेशा से विवाद रहा है. मीडिया में आई कुछ रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि पुरातत्व विभाग ने अब इस विवाद को शांत करने के लिए एक व्यापक अध्ययन की अनुमति दे दी है.

खबरों के अनुसार वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) का गोवा स्थित समुद्र विज्ञान का राष्ट्रीय संस्थान यह अध्ययन करेगा. इसके लिए समुद्र के नीचे की परिस्थितियों का भी अध्ययन किया जाएगा और यह पुरातत्व महत्व की प्राचीन कालीन वस्तुओं के अध्ययन,  रेडियोमेट्रिक और थर्मोल्यूमिनेसेंस (टीएल) डेटिंग पर आधारित होगा. इसके लिए और अतिरिक्त पर्यावरण संबंधी जानकारी को भी परखा जाएगा.

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19वीं सदी की एक पेंटिंग जिसमें वानर सेना द्वारा राम सेतु को बनाने का दृश्य दिखाया गया है.तस्वीर: public domain

क्या है सेतुसमुद्रम परियोजना

रेडियोमेट्रिक डेटिंग के इस्तेमाल से रेडियोधर्मी अशुद्धियों को देख कर किसी वस्तु की उम्र का पता लगाया जा सकता है. टीएल डेटिंग का इस्तेमाल किसी भी वस्तु के गर्म होने पर उससे निकलने वाली रोशनी के मूल्यांकन के लिए किया जाता है. शोध संस्थान इस अध्ययन के लिए अपनी विशेष नौकाओं का भी इस्तेमाल करेगा जो समुद्र की सतह के नीचे से नमूने ले आने में सक्षम हैं.

कई दशकों से विचाराधीन सेतुसमुद्रम परियोजना की वजह से राम सेतु पर बहस छिड़ी हुई है. इस परियोजना का उद्देश्य भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच एक नौपरिवहन मार्ग बनाना है जो भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र से होकर गुजरेगा. अभी वहां पानी छिछला होने और आदम के सेतु के होने की वजह से जहाज उस इलाके से गुजर नहीं पाते हैं. भारत के दोनों तटों के बीच आवाजाही करने वाले जहाज हो या अंतरराष्ट्रीय मार्ग पर निकले लिए हुए जहाज, सभी को श्रीलंका के इर्द-गिर्द घूम कर जाना पड़ता है.

इस मार्ग के बन जाने से जहाजों का काफी समय और ईंधन बचेगा, लेकिन इस परियोजना के लिए छिछले पानी में काफी गहरी खुदाई करनी होगी जिसकी वजह से आदम के सेतु को नुकसान पहुंच सकता है. पर्यावरण प्रेमी इस इलाके की इकोलॉजी के संरक्षण को लेकर इस परियोजना का विरोध करते आए हैं. लेकिन हिंदूवादी संगठन इस परियोजना का इसलिए विरोध करते आए हैं क्योंकि उनका मानना है कि इससे भगवान राम से जुड़ी उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचेगी.

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सितंबर 2007 में सेतुसमुद्रम परियोजना के विरोध में अलाहाबाद में प्रदर्शन करते बजरंग दल और शिव सेना के कार्यकर्ता.तस्वीर: AP

रामायण की ऐतिहासिकता

2007 में पुरातत्व विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि सेतु एक मानव-निर्मित ढांचा नहीं बल्कि प्राकृतिक उत्पत्ति है, लेकिन राजनीतिक विरोध के बाद उसने ये  हलफनामा वापस ले लिया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में एक दशक से भी ज्यादा से लंबित है और इस पर सुनवाई रुकी हुई है. माना जाता है कि सालों तक सेतुसमुद्रम परियोजना पर काम होने और करोड़ों रुपयों के खर्च होने के बाद भारत सरकार ने अब इस परियोजना को बंद करने का फैसला कर लिया है.

कुछ रिपोर्टों के अनुसार इस परियोजना पर अभी तक कम से कम 800 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं. मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि ताजा शोध का उद्देश्य रामायण की ऐतिहासिकता को साबित करना भी है. ऐसी एक परियोजना गुजरात के समुद्री तट के करीब पौराणिक द्वारका नगरी को ढूंढने के लिए पिछले दो साल से चल रही है और इस पर अभी तक लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं.

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