1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

'वर्जिनिटी टेस्ट' के खिलाफ खड़ी होती महिलाएं

२ जनवरी २०१९

24 साल की मरियम अब इतनी बड़ी हो गई हैं कि उनकी शादी की जा सके. लेकिन शारीरिक संबंधों के बारे में सोच कर ही वह सहम जाती हैं. बचपन में हुए अपने 'वर्जिनिटी टेस्ट' की शर्मिंदगी और दर्द आज तक उनका पीछा करता है.

https://p.dw.com/p/3At2U
Kampagne sexuelle Freiheit Rabat Marokko
तस्वीर: Ibtissam Lechker 

मरियम मोरक्को में रहती हैं जहां योनि के कसाव और उसके हाइमन को परखने का रिवाज बहुत आम है. लेकिन अब महिलाएं इसके खिलाफ आवाज उठा रही हैं. उनका कहना है कि इस तरह के टेस्ट बलात्कार के दायरे में आते हैं.

मरियम ऐसे वर्जिनिटी टेस्ट को एक बर्बर परंपरा बताती हैं जो "ना सिर्फ दर्दनाक था बल्कि उसने एक इंसान और एक महिला के तौर पर मेरी गरिमा मुझसे छीन ली."

पढ़िए : जबरन कौमार्य परीक्षण का दर्द

मोरक्को में आम तौर पर ऐसे टेस्ट दाइयां करती हैं जिनके पास कोई मेडिकल योग्यता भी नहीं होती. लेकिन इन महिलाओं पर परिवारों को पूरा भरोसा होता है. अब महिलाएं सोशल मीडिया के जरिए इस का विरोध कर रही हैं.

मरियम ने 'माई वुल्वा बिलॉन्ग्स टू मी' नाम के अभियान में हिस्सा लिया है, जो इस तरह के टेस्ट के जरिए होने वाली मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाता है. मरियम कहती हैं, "सबसे बुरा बलात्कार वह होता है जब युवतियों से यौन मुद्दों पर फैसला करने का अधिकार ही छीन लिया जाए."

अटलस पहाड़ियों के पास बसे शहर मेकेंस के करीब एक बुजुर्ग महिला इस तरह के टेस्ट करती है. वह कहती है, "मेरे ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है क्योंकि मैं बहुत से परिवारों के राज जानती हूं. लेकिन मैं उन्हें अपने ही पास रखती हूं, क्योंकि कौमार्य (वर्जिनिटी) इज्जत से जुड़ा मामला है."

क्या है टू फिंगर टेस्ट

इस महिला का कहना है कि बहुत से परिवार अपनी बेटियों के टेस्ट इसीलिए कराते हैं ताकि उन्हें उनके 'चाल चलन' का पता चल सके. इस महिला का दावा है कि उसके टेस्ट में साफ सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है और इस दौरान दर्द भी नहीं होता. इस महिला के मुताबिक, वह महिलाओं की योनि का कसापन परखने के लिए उसके ऊपर अंडा फोड़ती है, जो कि एक प्राकृतिक उत्पाद है. इसके अलावा हाइमन की झिल्ली है या टूट चूकी है इसका टेस्ट वह अपने हाथ से करती है.

सामाजिक कार्यकर्ता इस तरह के रीति रिवाजों का विरोध करते हैं. उनका कहना है कि यह एक तरह से बलात्कार ही है. महिला और एलजीबीटी समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाली सारा अल अवनी कहती हैं कि इस बारे में महिलाओं को जागरूक करने की जरूरत है कि उनके साथ क्या हो रहा है ताकि वे ऐसे मामलों में सही फैसला ले सकें.

पत्रकार फातिमा खालिदी भी इस तरह के टेस्ट का विरोध करती है. उनका कहना है कि यह विचार ही गलत है कि किसी परिवार का मान सम्मान उनकी बेटियों के शरीर पर होने वाले टेस्ट तय करेंगे. सामाजिक कार्यकर्ता अब्देलकरीम एल-कम्श कहते हैं कि ऐसे लोगों की संख्या अब घट रही है जो वर्जिनिटी को सम्मान के साथ जोड़कर देखते हैं. उनके मुताबिक समाज में धीरे धीरे बदलाव हो रहा है.

फातिमा एजरा उजूज/एके

देखिए लड़कियां क्या क्या झेल रही हैं

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी