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मसूरी में सुरंग बनाने की योजना का अफसरों तक को पता नहीं

हृदयेश जोशी
११ जून २०२१

उत्तराखंड के मसूरी शहर में 3 किलोमीटर सुरंग के लिए केंद्र सरकार 700 करोड़ रुपये दे रही है लेकिन इस प्रोजेक्ट के बारे में संबंधित अधिकारियों को भी पता नहीं है. भूगर्भशास्त्री इस क्षेत्र को संवेदनशील बता चुके हैं.

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Indien Blick auf die Himalaya-Bergstadt Masoorie
तस्वीर: Vishal Singh

केंद्रीय ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी ने तीन दिन पहले सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी कि मसूरी में 2.74 किलोमीटर लंबी सुरंग के लिए उन्होंने 700 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं जिससे मॉल रोड, मसूरी शहर और लाल बहादुर शास्त्री (आईएएस अकादमी) की ओर "आसान और बिना अटकाव" ट्रैफिक चलेगा. गडकरी ने अपने ट्वीट के साथ "प्रगति का हाइवे" हैशटैग लगाया और राज्य के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इसके लिए नितिन गडकरी का आभार जताया और कहा कि इससे मसूरी में "कनेक्टिविटी आसान” होगी और आपदा के वक्त राहत कार्य सुचारु होंगे. 

वन अधिकारियों को प्रोजेक्ट का नहीं पता

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पास बसे मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है और यह भारत के सबसे व्यस्त पर्यटन क्षेत्रों में एक है. यह हिमालयी इलाका अति भूकंपीय संवेदनशील (जोन-4) में है. इसके लिए देवदार और बांज समेत कुल 3000 से अधिक पेड़ कटेंगे और वन्य जीव क्षेत्र नष्ट होगा. इसके अलावा पहाड़ों पर खुदाई और ड्रिलिंग की जाएगी जिससे कई स्थानों पर भूस्खलन का खतरा बढ़ सकता है. डीडब्ल्यू ने इस प्रोजेक्ट के बारे में राज्य के संबंधित वन अधिकारियों से बात की लेकिन उन्हें अभी इस प्रोजेक्ट की कोई जानकारी नहीं है.

मसूरी की उप वन संरक्षक (डीएफओ) कहकंशां नसीम ने कहा, "इसे लेकर हमारे पास कोई चिट्ठी नहीं आई है. अगर उच्च स्तर पर कोई बात हुई है तो मुझे उसका पता नहीं है. मेरे पास न ही कोई लेटर आया और न ही कोई संवाद हुआ है." नसीम कहती हैं कि प्रोजेक्ट (सुरंग) कहां से कहां बनेगा यह जानकारी मिलने पर ही जंगल को होने वाले नुकसान का सही आकलन हो सकता है.

Indien Wald nahe der Himalaya-Bergstadt Masoorie
इलाके के जंगल धीरे धीरे कम हो रहे हैंतस्वीर: Hridayesh Joshi/DW

उधर यमुना सर्किल के वन संरक्षक अमित वर्मा ने डी डब्ल्यू से कहा कि प्रोजेक्ट के बारे में अभी तक उनसे कोई मशविरा नहीं किया गया है. जानकार बताते हैं कि ऐसी विकास परियोजनाओं में विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनती है. इसके अलावा जमीन अधिग्रहण से लेकर वन संबंधी क्लियरेंस और पर्यावरण प्रभाव आकलन में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का रोल अहम है.

भू-विज्ञानियों की चेतावनी

हिमालयी क्षेत्र में हर साल भूस्खलन से ही औसतन 400 लोगों की मौत होती है. भूगर्भविज्ञान के लिहाज से मसूरी और उसके आसपास का इलाका अत्यधिक भूस्खलन प्रभावित है. पिछले साल देहरादून स्थित वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन इकोलॉजी और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रायपुर के भू-विज्ञानियों और विशेषज्ञों ने एक शोध प्रकाशित किया जिसके मुताबिक मसूरी के करीब 44 प्रतिशत हिस्से में भूस्खलन को लेकर औसत, अधिक या बहुत अधिक  खतरा है. इस शोध में कहा गया है कि भट्टाफॉल, जॉर्ज एवरेस्ट, कैम्पटी फॉल और  बार्लोगंज जैसे इलाके अधिक खतरे वाले (हाइ हेजार्ड जोन) में हैं.

रिसर्च पेपर कहता है, "इस हिमालयी कस्बे के सीमित भूमि संसाधनों पर बहुत दबाव है इसलिए भूस्खलन के खतरे की मैपिंग को लेकर व्यापक अध्ययन की तुरंत जरूरत है. इस तरह के नक्शे यहां विकास योजनाओं को बनाने और लागू करने के लिए बहुत उपयोगी होंगे." इस रिसर्च के शोधकर्ताओं में से एक और वाडिया संस्थान में सीनियर साइंटिस्ट विक्रम गुप्ता ने इस साल एक और रिसर्च पेपर प्रकाशित किया है जिसमें मसूरी के हर वार्ड में भूस्खलन के कारण उपजे खतरे का आकलन किया है और कहा है कि मसूरी के करीब एक चौथाई भवनों  (जिनमें 8,000 लोग रहते हैं) को लैडस्लाइड का "अधिक या बहुत अधिक खतरा"  है.

विक्रम गुप्ता कहते हैं कि उन्हें प्रस्तावित सुरंग बनाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी वरना उसके प्रभावों को अपने शोध में शामिल करते. गुप्ता के मुताबिक "प्रस्तावित सुरंग तो काफी बड़ा प्रोजेक्ट है. अगर (मसूरी जैसे संवेदनशील क्षेत्र में) आप कोई भवन या होटल निर्माण जैसा कोई छोटा प्रोजेक्ट भी करते हैं तो उससे पहले नगरपालिका के पास लार्ज स्केल हेजार्ड का पूरा अध्ययन होना चाहिए कि कहां पर यह किया जा सकता है कहां नहीं. हमने शिमला (हिमाचल प्रदेश) में ऐसी स्टडी की थी और फिर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने चिन्हित कर दिया था कि कहां-कहां स्टडी होगी और कहां नहीं होगी. यह तरीका कार्यप्रणाली में शामिल होना चाहिए."

Himalaya Erdbeben  Uttarakhand, Indien
इस साल उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने से जान माल का भारी नुकसान हुआतस्वीर: Hridyesh Joshi

अर्थ साइंटिस्ट प्रदीप श्रीवास्तव के मुताबिक, "मुझे हैरत है कि बिना भूविज्ञानियों से मशविरा किए ऐसे प्रोजेक्ट की घोषणा कैसे हो गई. मसूरी की पहाड़ियों पर पहले शोध हो चुके हैं. ये काफी चटखी हुई चट्टानें हैं और इनमें काफी दरारें हैं. इसी वजह से यहां पर खनन पर प्रतिबंध लगाया गया. यहां 40 प्रतिशत भूभाग पर भूस्खलन का खतरा है. बिना जियोलॉजिकल इनपुट के यहां सुरंग या कोई ऐसा प्रोजेक्ट नहीं बनाया जाना चाहिए."

पारिस्थितिकी पर दबाव

मसूरी की आबादी (2011 की जनगणना के मुताबिक) 30 हजार से अधिक है लेकिन हर साल यहां लाखों सैलानी आते हैं. साल 2016 में गर्मियों के मौसम में करीब 37 लाख पर्यटकों की मौजूदगी दर्ज की गई. सरकार इस वजह से ट्रैफिक और भीड़भाड़ को नियंत्रित करने के लिए सुरंग या सड़क निर्माण जैसे प्रोजेक्ट की जरूरत बताती है. हालांकि पिछले 30 सालों से देहरादून और मसूरी का करीबी अध्ययन कर रहे मानवविज्ञानी और कार्यकर्ता लोकेश ओहरी कहते हैं कि मसूरी की पारिस्थितिकी, पर्यावरणीय महत्व और संवेदनशील जियोलॉजी को देखते हुए यहां 70 के दशक से ही लाइम स्टोन माइनिंग को रोका गया.

जानकार मानते हैं कि मानव गतिविधियां, पहाड़ी ढलानों का सड़क निर्माण के लिए कटान और भवन इत्यादि बनने से  पहाड़ अस्थिर हो रहे हैं. साल 1996 से ही  खनन और निर्माण कार्य यहां प्रतिबंधित हैं. ओहरी कहते हैं, "साल 2010 में मसूरी स्थित आईएएस अकादमी के सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस ने ही मसूरी के संसाधनों पर दबाव सहने की क्षमता (कैरिंग कैपिसिटी) को लेकर एक अध्ययन किया था. उसमें कहा गया था कि मसूरी अपनी क्षमता से डेढ़ गुना अधिक दबाव झेल रहा है."

हालांकि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की ओर जारी बयान में कहा गया है, "इस टनल के निर्माण एवं सड़कों के सुदृढ़ीकरण से जौनसार बावर क्षेत्र की कनेक्टिविटी और बेहतर होगी तथा इस क्षेत्र में विकास के नए द्वार खुलेंगे. इस पिछड़े क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने में भी इससे मदद मिलेगी. पर्यटन की दृष्टि से भी इस क्षेत्र को नई पहचान मिल सकेगी."

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