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जानते हैं कि धरती पर मौजूद सभी जीवों में इंसान सबस खान क्यों है? क्योंकि वह सोच सकता है. हमारा काम है ये सोचना कि धरती पर संतुलन कैसे बना रहे. इस संतुलन को बिगाड़ना हमारा काम नहीं है. इस धरती पर हमारे साथ करोड़ों प्रजातियां रहती हैं और इनमें से बहुत सी लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं-वह भी हमारे कारण. तो हम ऐसा क्या करें कि धरती सभी जीव जंतुओं के लिए सुरक्षित बन सके.
ब्रिटेन के कुछ लोगों ने अब अपने घर के बगीचों को संवारना छोड़ दिया है. उनका मानना है कि कुदरत को कुदरती तरीके से जीने देना चाहिए. तभी जैव विविधता को बचाया जा सकता है. इस काम में ये लोग सूअरों की मदद भी ले रहे हैं.
पूर्वोत्तर के राज्य असम से. बीसवीं सदी की शुरुआत में दुनिया भर में एक सींग वाले केवल 200 गैंडे ही बचे थे. और इनमें सबसे बड़ी संख्या भारत में मौजूद थी. पिछले सौ सालों में इन्हें बचाने के लिए प्रयास किए गए हैं. इन्हीं का नतीजा है कि आज इनकी संख्या 3,700 से ज्यादा हो चुकी है. असम में एक संस्था गैंडों के मल से कागज बनाती है
ऊर्जा की हमारी भूख के चलते हमारा पर्यावरण जहरीली गैसों का शिकार बन रहा है. आज के शो में हम ऐसी खोजों पर निगाह डालेंगे जो कार्बन मुक्त दुनिया की तरफ धीरे धीरे बढ़ने में हमारी मदद करती हैं.
इस प्रकृति में रह कर हम इसे लगातार नुकसान भी पहुंचाते चले जा रहे हैं, जबकि हमारा मकसद इसके साथ मिल कर खुशहाल जीवन होना चाहिए. आज के एपिसोड में जानेंगे कि कैसे हम अपने आस पास के पर्यावरण के साथ एक अच्छा रिश्ता कायम कर सकते हैं.
केरल का मीनांगड़ी भारत का पहला कार्बन न्यूट्रल कस्बा बनना चाहता है. इसका मतलब है पूरी तरह प्रदूषण मुक्त होना. इसके लिए वहां के लोगों ने कई दिलचस्प पहलें शुरू की हैं, जिनसे काफी कुछ सीखा जा सकता है.
भारत ने अक्षय ऊर्जा स्रोतों में बड़ा निवेश किया है. फिर भी देश कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और आयातक है. साफ है कि अब भी भारत में कोयले का दबदबा है. खासकर कोयले की वजह से गोवा में लोगों की जिंदगी मुश्किल हो गई है. लेकिन अब वहां लोग इसके खिलाफ खड़े हो गए हैं.
हिमाचल प्रदेश में पहाड़ों में कड़ाके की सर्दी और सर्द हवाओं के बीच जीवन आसान नहीं है. इसलिए वहां गर्मी और गर्म पानी की बहुत जरूरत होती है. इसके लिए ज्यादातर लकड़ियों का ही सहारा होता है. इन्हें जमा करने का काम आम तौर पर महिलाओं के जिम्मे होता है. लेकिन हमाम नाम के एक उपकरण ने उनकी जिंदगी को बदल दिया है.
दुनिया के कई शहरों की तरह इंडोनेशिया की राजधानी भी यातायात की समस्या से जूझ रही है. गाड़ियों के शोरगुल और प्रदूषण के कारण जकार्ता की हवा बद से बदतर होती जा रही है. लेकिन रिसर्चर जकार्ता को हाइड्रोजन उर्जा के जरिए स्वच्छ बनाने में जुटे हैं.
जंगलों की सेहत पूरी दुनिया के मौसम को प्रभावित करती है. फिर भी सब जगह जंगल काटे जा रहे हैं. महाराष्ट्र में एक संस्था इसे रोकने के लिए कुछ दिलचस्प कर रही है. ये लोग स्थानीय किसानों को पेड़ लगाने पर पैसे देते हैं.
हजारों साल से विज्ञान धरती के राज खोलने में इंसान की मदद करता आया है. विज्ञान ने हमारी जिंदगी को पहले से आसान बना दिया है. आज के शो में मिलिए ऐसे लोगों से, जो विज्ञान की मदद से पर्यावरण को बचाने में लगे हैं.
इस धरती और इसके पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी हम सब पर है. जर्मनी में कई युवा विज्ञानी इस बात को बहुत संजीदगी से ले रहे हैं और कई कमाल की चीजें बना रहे हैं.
महाराष्ट्र में लगातार सूखा और बारिश की कमी के कारण बहुत से लोग अब खेती छोड़ रहे हैं. ऐसे में एक संस्था किसानों की मदद के लिए आगे आई है.
आजकल हमारे आसपास बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जो जीवाश्म ईंधन से बनी हैं. इसलिए ऐसे कूड़े का ढेर बढ़ता जा रहा है जो जैविक रूप से विघटित नहीं होता. जर्मनी में एक वैज्ञानिक ट्रेंड को बदलना चाहता है.
प्लास्टिक से बचने के लिए उसके बहुत सारे विकल्प तैयार करने पर काम हो रहा है. लेकिन सवाल यह है कि वो विकल्प कितने ईक्रो फ्रेंडली हैं. क्या उनसे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता, जानिए.
इस रिपोर्ट में हम आपको ऐसे लोगों से मिलवाने जा रहे हैं जो भारत के एक दूरदराज इलाके में रहते हैं और जिन्हें कठोर मौसम का सामना करना पड़ता है. यहां रहना बिल्कुल आसान नहीं है और खाने पीने के साथ ही दूसरे जरूरी सामानों की भी भारी दिक्कत होती है. यहां रहने वाले एक जंगली बेरी से कई तरह की चीजें बना कर ना सिर्फ खुद को बल्कि दूसरों को भी फायदा पहुंचा रही है.
हमारी धरती पर करीब आठ अरब लोग रहते हैं. हम जो कुछ भी करते हैं उसका बहुत बड़ा असर होता है. एक तरफ हम ऐसी कारें चलाते हैं जो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करती हैं और ऐसे स्रोतों से उर्जा लेते हैं जो कभी ना कभी खत्म हो जाएंगी. दूसरी तरफ हम कार्बन फुटप्रिंट घटाने पर काम कर रहे हैं और अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं. इस एपिसोड में हम धरती पर इंसानों के अच्छे बुरे असर की चर्चा करेंगे.
बड़े शहरों में प्रदूषण का मुख्य कारण है ट्रैफिक. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि साल 2050 तक दुनिया की दो तिहाई आबादी शहरों में रहा करेगी. तो आप सोच सकते हैं कि हालात कितने खराब हो जाएंगे. ऐसा ना हो सके इसके लिए जर्मनी की राजधानी बर्लिन में लोग ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जिनसे उनके शहर और हरे भरे हो सकेंगे.
पेड़ शहरों के लिए भी अहम हैं. मिसाल के तौर पर जर्मन राजधानी बर्लिन की सड़कों पर चार लाख पेड़ लगे हैं. यह हवा को साफ करने का काम करते हैं लेकिन इन्हें भी देखभाल की जरूरत होती है. बर्लिन के नागरिकों ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया है जिसके तहत इन पेड़ों का ध्यान रखा जा सकता है. ये रिपोर्ट टिकाई शहरों पर हमारी मिनी सिरीज का अगला हिस्सा है.
पेड़ इंसानों के लिए तो जरूरी हैं ही, साथ ये कई प्राणियों के घर भी हैं जैसे कि फफूंद. वैज्ञानिक आज भी ठीक तरह से नहीं बता सकते कि फफूंद की कुल कितनी किस्में मौजूद हैं. इनकी संख्या शायद लाखों में है. हालांकि जर्मनी में रिसर्चर एक खास तरह की फफूंद पर ध्यान दे रहे हैं जिसका इस्तमाल भविष्य में इमारतें बनाने में किया जा सकेगा. इसी तरह घास फूस से हेलेमेट भी बनाई जा रही है.