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मंथन 87 में खास

१४ मई २०१४

इंसान मशीनों के साथ घूम रहे हैं और मशीनें इंसान जैसी होती जा रही हैं. मंथन में इस बार बात होगी रोबोटों, ह्यूमेनॉयड और इंटरनेट के फैलते जाल पर.

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तस्वीर: DW

हाल ही में बाजार में आए गूगल ग्लासेज ने लोगों को हैरान कर दिया है. कभी कंप्यूटर हमारी पूरी मेज के साइज के होते थे और अब तकनीक यहां तक पहुंच गयी है कि आप कंप्यूटर को अपने चश्मे में ले कर घूम सकते हैं. मशीनें इतनी सटीक हो गई हैं कि हमारी कही हुई बातें सुन और समझ कर किसी काम को अंजाम दे सकती हैं.

इंसानों से ह्यूमेनॉयड

हॉलीवुड में ऐसी कई फिल्में बनी हैं जिनमें रोबोट इंसानों की तरह सब काम कर सकते हैं. किसी दूसरे ग्रह पर जा कर बस भी सकते हैं. पर ये सिर्फ कल्पना मात्र नहीं है. नासा वाकई इस तरह के रोबोट बनाने में लगा है जो इंसानों से मेल खाते हैं और जिनका मकसद है मार्स पर कॉलोनी बसाना.

दुनिया भर में कई देश ह्यूमेनॉयड तैयार करने में लगे हैं. ये सिर्फ चलने फिरने में ही हम इंसानों जैसे नहीं हैं, इनमें हमारी ही तरह भावनाएं भी हैं. इसकी शुरूआत तो तभी हो गई थी जब पांच सदी पहले 1495 में ही सबसे पहली बार लिओनार्दो दा विंची ने ह्यूमेनॉयड डिजाइन किया था. मंथन में दिखाएंगे कि आज रोबोट्स और क्या क्या कर सकते हैं.

धुंध में डुबोता स्मॉग

Paris Verkehr Smog Luftverschmutzung
तस्वीर: Francois Guillot/AFP/Getty Images

दो महीने पहले पेरिस में अचानक ही आधी से ज्यादा गाड़ियों को सड़क पर आने से मना कर दिया गया. शहर में प्रदूषण इतना बढ़ गया था कि सरकार को यह कदम उठाना पड़ा. इस दौरान पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मुफ्त कर दिया गया. इसी तरह पूर्वी यूरोपीय देश एस्टोनिया की राजधानी टालिन में भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट पिछले एक साल से मुफ्त है. हवा को साफ करने के लिए अब एशिया के बड़े शहरों में भी ऐसे कदमों की जरूरत है. स्मॉग को बेहतर तरीके से समझने के लिए इस विषय पर खास बहस होगी. बात होगी एशिया में स्मॉग की समस्या के बारे में जो यूरोप या अमेरिका से कहीं ज्यादा है. साथ ही फेसबुक पर आपने जो सवाल भेजे थे वे भी मंथन में शामिल किए जाएंगे.

ऑनलाइन पढ़ाई

आगे बात होगी इंटरनेट के बारे में. दुनिया की आबादी है सात अरब और इनमें से आधे लोगों के पास इंटरनेट है. गूगल ने हाल ही में एक ड्रोन कंपनी खरीदी है ताकि हर जगह हर किसी तक इंटरनेट पहुंच सके. स्मार्टफोन और टेबलेट से तो हम वैसे भी चौबीसों घंटे इंटरनेट से जुड़े रहते हैं. इन्हीं में रेडियो सुनते हैं, और टीवी भी देख लेते हैं. वो दिन दूर नहीं जब सब कुछ सिर्फ इंटरनेट से ही चलेगा. इस तकनीक के सहारे अब सब कुछ ऑनलाइन होता जा रहा है. लाइब्रेरी की जगह गूगल ने और बड़े बड़े एन्साइक्लोपीडिया की जगह विकीपीडिया ने ली है. यूनिवर्सिटी के लेक्चर भी अब ऑनलाइन हो गए हैं. इस बार ले चलेंगे ऐसी ही एक ऑनलाइन क्लास में. 'मंथन' देखना ना भूलिए शनिवार सुबह साढ़े दस बजे डीडी नेशनल पर.

आरआर/एएम