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भारत-जापान इश्क के इम्तिहान और भी हैं

राहुल मिश्र
२९ अक्टूबर २०१८

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच हुई 13वीं शिखर बातचीत में कई अहम आपसी और सामरिक मुद्दों पर बातचीत हुई है. आबे मोदी की दोस्ती कुछ असर दिखा रही है लेकिन चुनौतियां भी कई हैं.

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Japan l Indischer Premierminister Modi trifft den japanischen Regierungschef Abe
तस्वीर: Reuters/Mandatory credit Kyodo

प्रधानमंत्री मोदी ने जापानी उद्यमियों को भारत में और निवेश करने का निमंत्रण दिया है. दूसरी तरफ रक्षा संबंधी मसौदे, आपसी संपर्क और मेक इन इंडिया भी दोनों प्रधानमंत्रियों की मुलाकात में चर्चा का अहम विषय रहा. दोनों देशों ने कानागावॉ प्रांत प्रीफेक्चर और आयुष मंत्रालय के बीच स्वास्थ्य सेवा और सेहत से जुड़े एक मसौदे पर भी हस्ताक्षर किए हैं.

मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में आई अड़चनों को जापान ने मोदी की यात्रा से पहले परोक्ष रूप से उठाया था. मोदी ने इस बारे में अपना स्पष्टीकरण जापान यात्रा के दौरान मेक इन इंडिया सेमिनार में ये कहते हुए दिया कि व्यापार करने की सहूलियत उनकी सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता है. जाहिर है कि इशारा बुलेट ट्रेन को ले कर उठी चिंताओं की ओर ही था.

	Japan l Indischer Premierminister Modi trifft den japanischen Regierungschef Abe
तस्वीर: picture-alliance/AP/The Yomiuri Shimbun

2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से भारत-जापान संबंधों में व्यापक सुधार आया है. इस संदर्भ में एक बड़ा कदम विशेष रणनीतिक और वैश्विक सहयोग समझौते के तहत लिया गया है. मोदी के मेक इन इंडिया कार्यक्रम में भी जापान ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है. 15 अरब अमेरिकी डॉलर की मुंबई अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना इस संदर्भ में एक बड़ा कदम है. हालांकि अभी भी परियोजना को कई चुनौतियों से जूझना है.

जापान भारत और उसके आस पड़ोस में क्षमता की कमी दूर करने में मदद करने को तैयार है. इसे आर्थिक रणनीति का हिस्सा माना जाना चाहिए. भारत और जापान मिलकर न सिर्फ एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर के विकास में काम कर रहे हैं बल्कि भारत प्रशांत चौतरफा सुरक्षा बातचीत (क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग) पर भी दोनों देशों की एक समान नीतियां हैं. दोनों देश बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में आधारभूत सुविधाओं के विकास और ऊर्जा क्षेत्र में काम करेंगे. 70 साल के स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है, जब कोई देश भारत को अपने ही पड़ोस के दक्षिण एशिया और हिंद महासागर के देशों के बीच साख बचाने के लिए आर्थिक सहयोग के लिए तैयार है.
पिछले कुछ समय में अमेरिका की नीतियों में आए परिवर्तनों के मद्देनजर भारत और जापान को भारत-जापान प्लस वन की नीति पर काम करना चाहिए अर्थात सारा ध्यान क्वाड (चौतरफा समझौतों) पर लगाने के बजाय मिनी-लैटरल्स (छोटी छोटी समानांतर) की नीति पर आगे बढ़ना चाहिए. अगर सूझूबझ के साथ नीति निर्धारण हो तो दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देश इसका हिस्सा भी बन सकते हैं.
भारत और जापान दोनों ही देशों के समक्ष चीन एक बड़ी तात्कालिक और दूरगामी सामरिक व रणनीतिक चुनौती के तौर पर उभरा है. दोनों देशों को इस चुनौती के लिए खुद को तैयार करना होगा. जहां भारत और जापान दोनों ही चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति, निरंतर मुखर होती विदेश नीति, सीमा विवादों पर आक्रामक रुख और 2013 में शुरू वन बेल्ट वन रोड परियोजना को मुक्त, खुले और उदार अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय व्यवस्था के लिए खतरा मानते हैं, तो वहीं दोनों देशों को यह भी लगता है कि चीन से खुलेआम बैर लेना ठीक नहीं है और संबंधों को वार्ता और कूटनीति से चलाया जाना चाहिए.

Japan l Indischer Premierminister Modi trifft den japanischen Regierungschef Abe
तस्वीर: Reuters/Mandatory credit Kyodo

अमेरिका की ट्रंप सरकार के अप्रत्याशित कदमों ने चीन के साथ तालमेल बैठाने को एक आवश्यक जरूरत बना दिया है. मोदी की शी जिनपिंग से हुई वूहान में और उसके बाद की बैठकों और शिंजो आबे की इस हफ्ते शी से मुलाकात, जो कि पिछले कई वर्षों में पहली थी, इसी ओर संकेत करती है.

इंडो-पैसिफिक और क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी के संदर्भ में भी भारत और जापान को एक नयी रणनीति के साथ काम करना होगा. मोदी और शिंजो आबे के बीच हुई एक दर्जन मुलाकातों से यह तो साफ हो चला है कि भारत और जापान अपनी सामरिक और कूटनीतिक मित्रता को दूरगामी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. ऐसा लगता है कि आगे आने वाले समय में भारत-जापान मित्रता नए आयाम भी हासिल करेगी और मोदी-आबे की मित्रता का इसमें उल्लेखनीय योगदान माना जाएगा.

(लेखक मलेशिया की मलाया यूनिवर्सिटी में सीनियर लेक्चरर हैं.)

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