भारतीय को मिला ग्रीन नोबेल
२८ अप्रैल २०१४कोई दो साल पहले हुए इस हमले के पीछे एक कहानी है. अग्रवाल के मुकदमा करने के बाद छत्तीसगढ़ के गांव में जिंदल स्टील और पावर लिमिटेड का कांट्रैक्ट रोक दिया गया था. करीब एक दशक से अग्रवाल गांव वालों को कानूनी मदद दे रहे हैं और बता रहे हैं कि किस तरह पर्यावरण को बचाया जा सकता है. उन्होंने बड़ी कंपनियों के खिलाफ तीन मुकदमे जीते हैं और सात अभी अदालतों में हैं.
फिर निशाना बनूंगा
योग में महारथ रखने वाले अग्रवाल का कहना है, "जब मैंने यह संघर्ष शुरू किया, तो मुझे पता था कि मुझे निशाना बनाया जाएगा. यह दोबारा भी होगा. होने दीजिए. मैं कहीं नहीं जा रहा हूं." गोली लगने के बाद उन्हें चलने में दिक्कत होती है और छड़ी का सहारा लेना पड़ता है.
लेकिन उनके संघर्ष का नतीजा है कि 60 साल के रमेश अग्रवाल को इस साल सैन फ्रांसिस्को में गोल्डमैन इनवॉयरमेंटल पुरस्कार के लिए चुना गया, जिसे "ग्रीन नोबेल" भी कहते हैं. छह लोगों को दिए जाने वाले इस पुरस्कार में 1,75,000 डॉलर की इनामी राशि दी जाती है. कैलिफोर्निया जाने से पहले उन्होंने कहा, "यह मेरे जीवन में सबसे बड़ा पड़ाव है. लेकिन यह मुझे दुखी भी करता है कि विदेश में बैठा कोई आदमी, जिसे मैं जानता तक नहीं, वह कुछ करने को तैयार है और यहां लोगों को पता ही नहीं कि हमारा काम क्या है."
अग्रवाल के अलावा अमेरिका की वकील हेलेन स्लॉटये, दक्षिण अफ्रीका के डेसमंड डीसा, पेरू की रूथ बोएंडिया, रूस की सूरेन गाजार्यन और इंडोनेशिया के रूडी पुत्रा को भी ग्रीन नोबेल के लिए चुना गया.
बढ़ी जागरूकता
भारत में कार्यकर्ता, वकील और विश्लेषकों का कहना है कि सैकड़ों छोटे बड़े अभियानों से भारत में पर्यावरण को लेकर लोगों का नजरिया बदल रहा है. नई दिल्ली में पर्यावरणविद ऋत्विक दत्ता का कहना है, "लोगों में विश्वास बढ़ रहा है और वे आपा खो रहे हैं. ये लोग कोई जमी जमाई संस्था के लोग नहीं हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आंदोलन कर रहे हों. ये तो आम लोग हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी से परेशान हो चुके हैं."
कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश में एक गांव के लोगों ने नदी के बीचों बीच भूख हड़ताल की थी, जिसे मीडिया ने काफी प्रचारित किया था. हिमाचल प्रदेश में सेब उपजाने वाले किसान बांध बनाने वालों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. अग्रवाल का कहना है, "आम तौर पर लोग कह देते हैं कि बड़े लोगों से आप नहीं भिड़ सकते हैं. लेकिन जब हमने एक दो केस जीतने शुरू किए, लोगों में भरोसा जगा और उन्हें इस देश में भी भरोसा हुआ."
गरीबी अमीरी की बढ़ती खाई
हाल के दिनों में भारत में जीवन स्तर तेजी से ऊपर उठा है लेकिन इसके साथ जीवन स्तर में भी भारी भेद पैदा हुआ है. मेट्रो और बड़े शहरों से अलग गांव की आबादी अभी भी मुश्किलों में गुजारा कर रही है. करीब 40 करोड़ आबादी हर रोज 70 रुपये से कम कमाती है. अग्रवाल का सवाल है, "जिस विकास का पैमाना शॉपिंग मॉल और दूसरे ऐशो आराम की चीजों से तय होता है, उसकी कीमत गांव वाले क्यों भरें. हमें विकास की परिभाषा फिर से तय करनी होगी." दुनिया भर में पर्यावरणविदों को निशाना बनाया जा रहा है. लंदन की ग्लोबल विटनेस ग्रुप के आंकड़े बताते हैं कि पिछले एक दशक में 35 देशों में 908 ऐसे कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है.
अग्रवाल पर हमले के बाद शक हुआ कि जिंदल स्टील के सुरक्षाकर्मियों ने उन पर हमला किया था. हालांकि पुलिस ने कभी इस कड़ी को टटोलने की कोशिश नहीं की. अग्रवाल पर फिरौती वसूलने का मुकदमा भी चला और उन्हें 72 दिन जेल में रहना पड़ा. हालांकि बाद में वह बेदाग साबित हुए.
रोज हिलती है धरती
अग्रवाल जिस गेर गांव में खनन का विरोध करते हैं, वहां हर सुबह करीब आधे घंटे तक धरती हिलती है. उस वक्त खान मजदूर डायनामाइट लगा कर कोयले की खदान को उड़ाते हैं. इससे काले धुएं का गुबार हर रोज आसमान में उठता है. जिंदल कंपनी यहां और पड़ोसी गांवों सरसमाल और कोसमपाली में कई बरसों से कोयला खनन कर रही है. यहां कोई नया स्कूल कॉलेज नहीं बना है और लगातार विरोध के बाद कुछ लोगों को नौकरी दे दी गई है.
हां, पास में नई सड़क जरूर बनी है, जहां से बिना ढंके हुए कोयले का ट्रक हर रोज गुजरता है और कोयले का चूरा हवा में मिलता रहता है. 55 साल की सुशीला चौधरी पास के गांव में रहती हैं, जो लगातार इलाज करा रही हैं. उनका कहना है, "छह साल से मैं बीमार चल रही हूं. वे लोग ऐसा क्यों करते हैं." यह बोलते बोलते उन्हें फिर से खांसी का दौरा पड़ जाता है और सुर्ख आंखें थोड़ी और लाल हो जाती हैं.
विकास नहीं, बीमार बढ़े
10 किलोमीटर के दायरे में सिर्फ एक डॉक्टर हैं, हरिहर पटेल. उनका कहना है कि हाल के दिनों में बीमार पड़ने वालों की संख्या बढ़ी है, "अस्थमा के मरीज बढ़ रहे हैं. बीस साल पहले हमें नहीं पता था कि हमारे साथ ऐसा भी हो सकता है."
रमेश अग्रवाल कहते हैं, "हम लोगों को पर्यावरण का ख्याल करना पड़ेगा. नहीं तो लोगों के पास कुछ नहीं होगा. रोजगार नहीं, पैसा नहीं, खेत नहीं, जंगल नहीं." वह ताकीद करते हैं, "और तब हम सब एक दूसरे का गला काटेंगे."
एजेए/एमजे (एपी)