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मारियोपोल के इतिहास का सबसे काला अध्याय खत्म हो रहा है. तीन महीने तक संघर्ष करने के बाद यूक्रेनी सैनिकों ने ओजोव्स्ताल स्टील प्लांट से बाहर निकल कर समर्पण कर दिया है. आर्टिकल पर जाएं
विंबल्डन ने घोषणा की है कि रूस और बेलारूस के खिलाड़ी इस साल ग्रैंडस्लैम में हिस्सा नहीं ले पाएंगे. डीडब्ल्यू के डेविड फोरहोल्ट कहते हैं कि यूक्रेन युद्ध के खिलाफ पक्ष लेना सही है लेकिन बैन का यह तरीका गलत है. आर्टिकल पर जाएं
अमेरिकी सरकार के मानवाधिकार रिपोर्ट पर चीन बिफर गया है. वैसे तो इस रिपोर्ट से रूस, भारत, मलेशिया समेत कई और देश भी नाखुश हैं लेकिन चीन ने तो बकायदा एक जवाबी रिपोर्ट का सहारा लेकर अमेरिका पर ही हमला बोल दिया है. आर्टिकल पर जाएं
जर्मनी की आर्थिक सफलता काफी हद तक सस्ती ऊर्जा पर आधारित है. लेकिन यूक्रेन युद्ध ने इस पर अचानक विराम लगा दिया है. हेनरिक बोएमे के मुताबिक आगे की राह और मुश्किल नजर आती है. आर्टिकल पर जाएं
बाइडेन का 1.8 बिलियन का इंडो पैसिफिक फंड, आसियान के साथ वाशिंगटन में विशेष शिखर वार्ता की घोषणा और इंडो पैसिफिक में व्यापार वार्ता की पहल. लगता है कि इंडो पैसिफिक में उभरती अमेरिकी रणनीति के ये नए पाये हैं. आर्टिकल पर जाएं
यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका को चीन से बात करने की अचानक जरूरत क्यों पड़ी? क्या बाइडेन ने जिनपिंग को धमकाने के लिए यह बातचीत रखी थी या फिर चीन ही अमेरिका को कुछ समझाना चाहता था. दोनों का ध्यान अपनी ही चिंताओं पर था. आर्टिकल पर जाएं
भारत और उसकी विदेश नीति की तारीफ करके पाकिस्तानी पीएम ने शायद साफ संकेत दे दिया है कि उनकी सत्ता जा रही है.
रूस यूक्रेन युद्ध पर उन देशों की खास नजर है जो पड़ोसियों से परेशान हैं. कोरिया भी इस जंग से सबक ले सकता है.
जब तक पश्चिम की भूमिका और अमेरिका की प्रतिबद्धता साफ ना हो जाय तब तक ये देश तटस्थ रहेंगे, यह बात साफ है.
आसियान के देशों के बीच हुए एक सर्वे में दुनिया और क्षेत्र की राजनीति के बारे में लोगों के विचार पता चले हैं.
यूक्रेन पर हमला हो या फिर कोविड की महामारी दक्षिण एशिया की असली चिंता गरीबी, बेरोजगारी और चीन.
चीन की साख को देश के भीतर और विदेश में भी भारी धक्का लगा है.
महामारी के फिर से सर उठाने के डर की वजह से वजह से जापान, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे एशियाई देशों ने सीमाबंदी कर दी है.
गब्बर सिंह को तो सभी जानते हैं, पर इब्न-ए-सफी को भी कोई जानता है क्या?
पहले 200 यूनिट की चिंता न करें और खूब बिजली फूंकें. मुफ्त बिजली की ये राजनीति, भारत को अंधकार की तरफ धकेल सकती है.