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बॉलीवुड में सूफी का असर गहरायाः आबिदा

१४ नवम्बर २०१०

सरहदों को किसी पागल हवा की तरह लांघती रुहानी आवाज की मलिका और सूफियाना सुरों से करोड़ों दिलों में जज्बात का तूफान उठाने वाली आबिदा मानती हैं कि हिंदी फिल्मों में भी सूफी संगीत का असर बढ़ रहा है.

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रूहानी है सूफी संगीततस्वीर: AP

इस्लामाबाद में रहने वाली आबिदा हिंदुस्तान को अपना दूसरा घर मानती हैं तो पूरा हिंदुस्तान भी उन्हें सगा मानता है. सूफी संगीत को अपना जीवन दे चुकीं आबिदा के लिए ये इबादत भी है और जिंदगी का हासिल भी. पर सूफी संगीत और बॉलीवुड का क्या रिश्ता हो सकता है, आबिदा कहती हैं, "पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड पर सूफी संगीत का नशा चढ़ा है. नए कलाकार सूफियाना संगीत की रवायत को नई सोच और नए साजों के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं." आप पूछें तो वह नाम गिनाने को भी तैयार हैं. एआर रहमान, कैलाश खेर और राहत फतेह अली खान का नाम झट से उनकी जुबान पर आ जाता है. आबिदा मानती हैं कि ये लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं.

Flash-Galerie Abida Parveen
तस्वीर: AP

नए साजों के आने से सूफी संगीत पर कोई असर पड़ा है आबिदा ऐसा नहीं मानतीं. वह कहती हैं, "दुनिया का हर साज खूबसूरत है चाहे वह नया हो या पुराना. उसकी आवाज में खुद खुदा बोलता है. अमीर खुसरो ने तबला और सितार को जन्म दिया. दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं लेकिन दोनों बेहतरीन. नए साजों के इस्तेमाल से सूफी संगीत को कोई नुकसान नहीं."

दमा दम मस्त कलंदर, हो जमालो, तेरे इश्क नचाया और जहान ए खुसरो जैसी रचनाओं से हिंदुस्तान और पाकिस्तान की अवाम के दिल में अपना स्थायी मकाम बना चुकीं आबिदा हिंदी फिल्मों के लिए भी गाने को तैयार हैं बशर्ते उन्हें वक्त मिले. खुदा की बंदगी उन्हें इतना वक्त आमतौर पर नहीं देती, "क्यों नहीं मैं बॉलीवुड के लिए संगीत बनाऊंगी लेकिन मैं ऊपर वाले की खादिमा हूं और उनका संदेश लोगों तक पहुंचाना मेरा पहला फर्ज. अगर मुझे वक्त मिला तो मैं बॉलीवुड के लिए भी गाऊंगी."

आबिदा यह भी नहीं मानतीं कि नए जमाने का संगीत किसी भी रूप में सूफी संगीत को नुकसान पहुंचा सकता है. वह तो सूफी संगीत को भी नए दौर का संगीत ही मानती हैं. आबिदा ने कहा, "सूफी संगीत हमेशा से आधुनिक संगीत रहा है और यह कैसे मुमकिन है कि अलग अलग साज इसके जादू को खत्म कर दें. वह केवल इसकी खूबसूरती बढ़ाते हैं लेकिन गायकों को थोड़ा सावधान रहना होगा जिससे कि सूफी संगीत की आत्मा और इस की लौ को चोट न पहुंचे."

आबिदा दिल्ली में भारत पाकिस्तान के बीच रिश्तों के बेहतर बनाने की सोच से आयोजित एक कंसर्ट में हिस्सा लेने आई थीं. यहीं सामचार एजेंसी पीटीआई के एक पत्रकार ने उनसे बात की. एक साथ उर्दू, सिंधि, सेरायकी, पंजाबी और फारसी भाषाओं में गाने वालीं आबिदा दोनों मुल्कों के बीच बेहतर रिश्ते बनते देखना चाहती हैं. वह मानती हैं कि सूफी संगीत का जादू भारत पाकिस्तान को करीब लाने में बड़ी भूमिका निभाएगा और उन्हें ऊपरवाले का संदेश दुनिया के कोने कोने तक पहुंचाते रहना है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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