'बेकार है विटामिन की गोली'
१ फ़रवरी २०१३ताजा रिसर्च यही कहती है. डायटिंग करते समय भी अक्सर लोग विटामिन के अलावा दूसरे पोषक तत्व लेते हैं, ताकि कोशिकाओं का मरना रुक जाए. लेकिन शरीर अपने आप ही इस लड़ाई को लड़ता है. खुद ही ऐसे रसायन बनाता है जो कोशिकाओं के लिए हानिकारक चीजों को खत्म करते हैं.
डिमेन्शिया यानी भूलने की बीमारी या फिर हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के होने का मुख्य कारण है कोशिकाओं में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस लेवल का बढ़ना. ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस तब होता है जब क्रियाशील ऑक्सिडेंट किसी कोशिका में पहुंच जाते हैं. अगर कोई ऑक्सीजन का अणु कोशिका के किसी प्रोटीन के साथ क्रिया करता है तो प्रोटीन नष्ट हो जाता है.
एंटीऑक्सिडेंट में विटामिन सी, ई और प्रोविटामिन-ए मुख्य माने जाते थे. लेकिन ये धारणा सही नहीं है.
काम की नहीं गोलियां
कई डॉक्टर इस बात पर सहमत नहीं कि सेहतमंद खुराक में इन गोलियों को शामिल करना अच्छा है. गोलियां एंटीऑक्सिडेंट की तरह काम करेंगी यह गलत धारणा है. जर्मन सोसाइटी फॉर न्यूट्रीशन की इसाबेल केलर मानती हैं, "बहुत लंबी रिसर्चों के बाद भी इन गोलियों का इस दिशा में सकारात्मक प्रभाव नहीं पाया गया. बल्कि यह बात सामने आई कि इनसे कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है."
कोशिकाएं खुद लड़ती हैं
जर्मन शहर हाइडेलबर्ग के एक वैज्ञानिक टोबियास डिक जर्मन कैंसर रिसर्च सेंटर में काम करते हैं. डिक के अनुसार कोशिकाएं खुद अपनी रक्षा के लिए एंटीऑक्सिडेंट ग्लूटेथियोन बनाती हैं जो उन्हें ऑक्सिडेंट से लड़ने में मदद करता है. डिक को रिसर्च के दौरान ऐसा वाहक भी मिला जो ऑक्सीकृत ग्लूटेथियोन को नष्ट करता है. उन्हें लगता है कि इस रिसर्च की मदद से वह आगे कोशिकाओं को और मजबूती देने वाली तकनीक विकसित कर पाएंगे.
हालांकि कोशिकाएं खुद अपना एंटीऑक्सिडेंट बनाती हैं लेकिन फलों और सब्जियों के सेवन से इसका स्तर बढ़ाया जा सकता है.
फल और तरकारी खायें
केलर ने कहा, "फल और सब्जियों के सकारात्मक प्रभाव पहले ही जाने जा चुके हैं. विटामिन के अलावा इनसे और दूसरे पोषक तत्व भी मिलते हैं." केलर के अनुसार हमें हर रोज कम से कम 400 ग्राम सब्जियों और 250 ग्राम फलों का सेवन जरूर करना चाहिए. अगर आप इन बातों का ध्यान रखें तो शरीर को किसी विटामिन की गोली या दूसरे पोषक तत्वों की गोली खाने की जरूरत नहीं होगी और इंसान कैंसर के खतरे से भी कुछ सुरक्षित रहेगा.
रिपोर्ट: फाबियान श्मिट/ एसएफ
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी