बासमती की लड़ाई अब पहुंची यूरोप
१६ जून २०२१ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने भारत-पाकिस्तान के बीच यूरोपीय यूनियन को बासमती चावल के निर्यात पर समझौता बनने की बात से इंकार किया है. दुनिया भर में चावल का निर्यात करने वाले भारतीय चावल व्यापारियों की सबसे बड़ी संस्था के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर विनोद कुमार कौल ने कहा कि ऐसा कोई कदम अभी नहीं उठाया गया है. इससे पहले पाकिस्तानी मीडिया में ऐसी खबरें छपी थीं कि भारतीय और पाकिस्तानी चावल निर्यातकों के बीच यूरोपियन यूनियन को चावल निर्यात करने के लिए समझौता हो गया है. दरअसल भारत ने अपने बासमती चावल के लिए यूरोपीय यूनियन से प्रोटेक्टेड ज्यॉग्रफिकल इंडिकेशन (PGI या GI) टैग की मांग की है, ऐसा हुआ तो भारत यूरोपीय यूनियन को बासमती निर्यात करने वाला अकेला देश बन जाएगा.
यह जीआई टैग कृषि उपजों और खाद्यान्नों की गुणवत्ता निर्धारित करने वाला एक टैग होता है, जो यह भी दर्शाता है कि विशेष कृषि उत्पाद को किसी खास इलाके में ही उपजाया गया है, जहां ऐतिहासिक रूप से उसकी खेती की जाती थी. पाकिस्तान, भारत की इस मांग का विरोध कर रहा है. पाकिस्तान चाहता है कि यूरोपीय यूनियन को बासमती निर्यात के लिए भारत जो एप्लीकेशन सौंपे, उसमें उसे भी शामिल करे. भारत ने इस पर विचार के लिए यूरोपीय यूनियन से तीन महीने का समय भी मांगा है.
असली बासमती तय करने की लड़ाई
भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती उत्पादक देश है. भारत में तराई के इलाकों में सुगंधित लंबे चावलों की खेती के ऐतिहासिक साक्ष्य मिलते हैं. विनोद कुमार कौल बताते हैं, "असली बासमती का निर्धारण उसकी किस्म, सुगंध और ऐतिहासिकता से होता है. ऐसे में भारत के पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के कुछ इलाकों में उगाए गए बासमती चावल को ही जीआई सर्टिफाइड बासमती माना जाता है." हालांकि रावी और चिनाब नदियों के बीच पंजाब के कलार इलाके में भी सैकड़ों सालों से बासमती चावल की खेती होती रही है. यह इलाका पाकिस्तान में आता है. इसलिए वह भी बासमती चावल को अपना मानता है.
बासमती की अलग-अलग किस्मों को लेकर अक्सर विवाद होता है. दरअसल इसके निर्यात पर एकाधिकार चाहने वाले भारत का दावा है कि भले ही बासमती की अन्य किस्में गुणवत्ता में असल बासमती जैसी ही हों लेकिन उन्हें ऐतिहासिक रूप से बासमती की खेती वाले इलाके में नहीं उगाया गया है. ऐसे में उन्हें असली नहीं माना जा सकता. भारत के बासमती निर्यात पर एकाधिकार की चाह के पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका ऊंची कीमतों पर बिकना बड़ी वजह है. इसके निर्यात में काफी मुनाफा होता है. फिलहाल भारत औसतन हर साल 498 अरब रुपये का बासमती चावल निर्यात करता है.
भारत के अंदर भी बासमती की लड़ाई
बासमती को लेकर केवल भारत-पाकिस्तान के बीच रस्साकशी नहीं है. भारत के अंदर भी मध्य प्रदेश सरकार कोशिश कर रही है कि उसके इलाके में होने वाले बासमती चावल को केंद्र सरकार जीआई टैग दे दे. केंद्र खास किस्म के चावल के क्षेत्र विशेष में ही पैदा होने का हवाला देकर इस मांग से इंकार करता रहा है. लेकिन अब बात यहां तक बढ़ गई है कि मध्य प्रदेश इस मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है.
विनोद कुमार कौल बताते हैं, "किस इलाके की पैदावार को जीआई टैग मिलेगा इसका फैसला एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) ही कर सकती है." मध्य प्रदेश की मांग पर APEDA ने जो टिप्पणी की थी, वह बासमती को लेकर भारत की चिंता दिखाने वाली है, "मध्य प्रदेश को GI स्टेटस देने से न सिर्फ भारत के अन्य राज्य भी अपने बासमती के लिए यह मांग करने लगेंगे बल्कि चीन और पाकिस्तान जैसे देश कहीं भी बासमती उगाकर उसका निर्यात करने लगेंगे. जिससे ब्रैंड के तौर पर बासमती की छवि धूमिल होगी."
अमेरिकी कंपनी से भी लड़ी भारत सरकार
बासमती के लिए एक्सक्लूसिव स्टेटस की मांग करने वाला भारत इसके लिए लंबे समय से लड़ता आ रहा है. नब्बे के दशक के अंत में भारत सरकार और अमेरिकी कंपनी राइसटेक के बीच इसे लेकर गंभीर विवाद हुआ था. कंपनी ने बासमती की कुछ हाइब्रिड प्रजातियों के लिए पेटेंट की मांग की थी. इन किस्मों को कासमती, टेक्समती और जसमति नाम दिया गया था. कंपनी को इन किस्मों के लिए 1997 में पेटेंट भी मिल गया था.
जब भारत को यह बात पता चली तो सरकार ने इसका जमकर विरोध किया और कहा कि यह कदम अमेरिकी मार्केट में बासमती को खत्म कर देगा. इतना ही नहीं भारत में लोगों ने इस प्रकरण में सरकार पर भारतीय संस्कृति का संरक्षण न कर पाने के आरोप भी लगाए. यह भी कहा गया कि भारत में भी बासमती को लेकर पर्याप्त कानूनी सुरक्षा नहीं है, जिसके चलते ही यह जैविक चोरी संभव हुई. इस मामले में भारत सरकार और अमेरिकी कंपनी के बीच कानूनी लड़ाई भी हुई, जिसके बाद 2001 में अमेरिका ने पेटेंट को राइसटेक की तीन किस्मों तक ही सीमित रखे जाने की बात कही. ऐसी जैविक चोरी से बचने के लिए भारत में बासमती को कुछ साल पहले 2016 में ही जीआई टैग दिया गया.