बंगाल में अलग है नागरिकता कानून के विरोध की वजह
१६ दिसम्बर २०१९पश्चिम बंगाल के कम से कम एक दर्जन स्टेशनों पर तोड़-फोड़ और आगजनी हुई है. सप्ताहांत के दौरान लंबी दूरी की तमाम ट्रेनें रद्द होने की वजह से हजारों यात्रियों को भारी परेशानी उठानी पड़ी.
असम और बंगाल में उक्त कानून के विरोध में मूलभूत अंतर यह है कि असम में जहां आंदोलन की कमान छात्रों के हाथों में है वहीं बंगाल में अल्पसंख्यकों की उत्तेजित भीड़ ने कानून अपने हाथों में ले लिया है. राज्यपाल और मुख्यमंत्री की अपील और चेतावनियों के बावजूद हिंसा और आगजनी पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है.
इस बीच, इस मुद्दे पर सियासत भी गरमाने लगी है. सोमवार से राज्य में तृणमूल कांग्रेस की रैलियों और बीजेपी की जवाबी रैलियों का भी दौर शुरू हो गया है. बीजेपी ने हिंसा को लिए ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन की चेतावनी दी है. दूसरी ओर, ममता ने बीजेपी पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है. राज्य के हिंसाग्रस्त छह जिलों में इंटरनेट पर सामयिक तौर पर पाबंदी लगा दी गई है.
बवाल कैसे ?
पश्चिम बंगाल के खासकर बांग्लादेश से लगे सीमावर्ती इलाकों में इस मुद्दे पर शुक्रवार से बवाल शुरू हुआ था. उस दिन कुछ अल्पसंख्यक संगठनों ने कोलकाता में नागरिकता कानून के विरोध में एक रैली निकाली थी. उसके बाद उसी दिन देर शाम से विभिन्न हिस्सों से सड़कों पर अवरोधक खड़े करने और ट्रेनों की आवाजाही रोकने की खबरें आने लगीं. लेकिन शनिवार को इस विरोध ने बेहद उग्र रूप ले लिया. प्रदर्शनकारियों ने मुर्शिदाबाद जिले में कृष्णपुर और लालगोला स्टेशनो पर कम से कम पांच ट्रेनों में आग लगा दी. उन स्टेशनों पर तैनात कर्मचारियों ने वहां से भाग कर अपनी जान बचाई.
राज्य में कई जगह रेलवे स्टेशनों और पटरियों पर आग लगा दी गई. भीड़ ने मालदा, फरक्का और हरिश्चंद्रपुर स्टेशनों पर खड़ी ट्रेनों में भी तोड़फोड़ की. हावड़ा और मुर्शिदाबाद जिलों में कम से कम 25 बसों को आग लगा दी गई. बड़े पैमाने पर होने वाले इन विरोध प्रदर्शनों से सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है.
सिग्नल प्रणाली में तोड़-फोड़ और स्टेशनों पर आगजनी के बाद दक्षिण पूर्व रेलवे की लंबी दूरी की एक दर्जन से ज्यादा ट्रेनें रद्द कर दी गईं और कई ट्रेनों की आवाजाही ठप हो गई. रेलवे ने पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिलने तक ट्रेनों के संचालन से इंकार कर दिया है.
राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रदर्शनकारियों से शांति बहाल रखने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाने की अपील की है. ममता ने कानून हाथ में लेने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी चेतावनी दी है और साथ ही दोहराया कि बंगाल में इस कानून को लागू नहीं किया जाएगा. बावजूद इसके विभिन्न इलाकों में जारी हिंसा और आगजनी पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है.
रविवार को लगातार तीसरे दिन हिंसा जारी रहने के बाद सरकार ने अफवाहों और फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के लिए छह जिलों में इंटरनेट सेवाएं सामयिक तौर पर स्थगित कर दीं.
वजह
आखिर अल्पसंख्यकों के इस आंदोलन की वजह क्या है? दरअसल, पड़ोसी बांग्लादेश से लगातार होने वाली घुसपैठ की वजह से राज्य में सीमा पार से लाखों की तादाद में अल्पसंख्यक बंगाल में आ कर बसे हैं. यह सिलसिला अब भी कमोबेश जारी है. पहले लेफ्टफ्रंट और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस की सरकार ने इन लोगों को बसने के लिए ना सिर्फ जमीन दी बल्कि उनके वोटर और राशन कार्ड भी बनवा दिए. इसके एवज में उनका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर किया जाता रहा है.
बंगाल की आबादी में लगभग 30 फीसदी अल्पसंख्यक हैं और विधानसभा की लगभग सौ सीटों पर उनके वोट निर्णायक हैं. यही वजह है कि कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में रहते इस तबके की नाराजगी मोल लेने का खतरा नहीं उठा सकता. ऐसे में इतने बड़े पैमाने पर हिंसा और आगजनी के बावजूद अगर अब तक एक भी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया गया है तो इसकी वजह समझना मुश्किल नहीं है. ममता बनर्जी बार-बार कहती रही हैं कि बंगाल में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) या नागरिकता कानून को लागू नहीं किया जाएगा. बावजूद इसके भावी खतरे को भांप कर ही एक समुदाय विशेष हिंसा पर उतारू है.
सियासत
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद इस कानून की सबसे कट्टर विरोधियों में से हैं. तृणमूल कांग्रेस ने रविवार को राज्य के विभिन्न जिलों में विरोध रैली निकाली थी. अब सोमवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में कोलकाता में एक महारैली आयोजित की गई. हिंसा और आगजनी की घटनाओं के साथ सियासत लगातार गरमा रही है.
बीजेपी ने इस हिंसा के लिए ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि ममता वोट बैंक की राजनीति के तहत जानबूझ कर हिंसा करा रही हैं. उनकी तुष्टिकरण की नीति किसी से छिपी नहीं हैं. घोष कहते हैं, "यही स्थिति जारी रही तो पश्चिम बंगाल बांग्लादेश बन जाएगा. इस हिंसा के पीछे तृणमूल कांग्रेस का ही हाथ है.”
घोष का दावा है कि इतने बड़े पैमाने पर हिंसा करने वाले लोग बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं. उनका सवाल था कि क्या भारतीय नागरिक इस कानून के खिलाफ ऐसा कर सकते हैं ?”
पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस की वजह से ही हालत इतनी बिगड़ी है. मुख्यमंत्री को उपद्रवियों को गोली मारने का आदेश देना चाहिए था. पूरा राज्य जल रहा है. अगर यही स्थिति जारी रही तो यहां राष्ट्रपति शासन लागू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.”
तृणणूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने भी लोगों से हिंसा में शामिल नहीं होने की अपील की है. वह कहते हैं, "इस उपद्रव से आम लोगों को परेशानी हो रही है. यह हिंदू बनाम मुस्लिम की लड़ाई नहीं है. हमें एनआरसी और नागरिकता कानून का मिल कर मुकाबला करना होगा. हिंसा और आगजनी करने वाले बीजेपी की ही सहायता कर रहे हैं.” सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने भी लोगों से शांति बहाल करने की अपील की है. वह कहते हैं, "हिंसा और अशांति से आम लोगों को नुकसान पहुंचा कर विरोध जताने का तरीका सही नहीं है.”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि असम और बंगाल में इस कानून के विरोध की वजहें भिन्न हैं. यहां अल्पसंख्यकों की बढ़ती आबादी एक गंभीर समस्या है. आने वाले दिनों में कई चुनाव होने हैं. राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर दीपंकर राजगुरू का कहना है, "विधानसभा चुनावों में भी डेढ़ साल से कम ही समय बचा है. ऐसे में सत्ता के तमाम दावेदार हिंसा की इस आग में अफनी सियासत की रोटियां सेंकने की तैयारी में हैं.” इससे साफ है कि असम में विरोध की आंच भले धीमी पड़ गई हो, बंगाल में इसके लगातार तेज होने का अंदेशा है.
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