आज सच्ची खबरें गलत और झूठी खबरों के बीच दबी जा रही हैं. भारत में आजकल फेक न्यूज जंगल में आग की तरह फैल जाती हैं जिससे विभिन्न समुदायों, जातियों और धर्मों के बीच मतभेद पैदा हो रहे हैं.
हाल के समय में ऐसी कई मिसालें मिलती हैं जब लोगों को गुमराह करने वाली खबरें और प्रोपेगेंडा सोशल मीडिया पर वारयल हो गया. पिछले महीने ही रोहिंग्या लोगों के खिलाफ खूब दुष्प्रचार किया गया. इससे पहले झारखंड में व्हाट्सएप के जरिए बच्चों को अगवा करने वाले एक गैंग के बारे में अफवाह फैली. इसके बाद कई लोगों को सरेआम लोगों ने पीट पीट कर मार डाला. बाद में पता चला कि वह झूठी अफवाह थी और मारे गये लोग निर्दोष थे.
कुछ महीने पहले सरकार समर्थक एक वेबसाइट और मुख्यधारा के टीवी चैनलों ने एक खबर चलायी जिसमें कहा गया कि जानी मानी लेखक अरुंधति राय ने कश्मीर में भारतीय सेना की भारी मौजूदगी का विरोध किया. इसके बाद समाज के राष्ट्रवादी तबके ने अरुंधति राय पर हमले तेज कर दिये. लेकिन बाद में अरुंधति राय ने बताया कि उन्होंने तो कश्मीर में भारतीय सेना को लेकर कोई बयान ही नहीं दिया है.
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सोशल मीडिया पर जीते जी मरे ये सेलिब्रिटी...
कैटरीना कैफ
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के एक पेज ने साल 2013 में अभिनेत्री कैटरीना कैफ की मौत की खबर चलाई. इसके पहले कि देशभर में यह खबर जोर पकड़ती पेज ने स्पष्टीकरण दिया कि अभिनेत्री सही-सलामत हैं और उन्हें कुछ नहीं हुआ है.
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सोशल मीडिया पर जीते जी मरे ये सेलिब्रिटी...
आयुष्मान खुराना
अभिनेता, गायक और वीजे आयुष्मान खुराना को भी सोशल मीडिया पर एक बार मारा जा चुका है. अपने परिवार के साथ छुट्टी पर गए इस अभिनेता को एक स्नोबोर्डिंग दुर्घटना में मृत घोषित कर दिया गया था जिसके बाद ट्वीट कर आयुष्मान खुराना ने अपने जिंदा होने की पुष्टि की थी.
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सोशल मीडिया पर जीते जी मरे ये सेलिब्रिटी...
अमिताभ बच्चन
बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की अमेरिका में सड़क दुर्घटना में मौत जैसी खबरें भी सोशल मीडिया में चल चुकी हैं. यहां तक कि लोग बच्चन के अंतिम क्रिया-कर्म जैसी बातें भी सोशल मीडिया पर करने लगे थे. लेकिन बच्चन ने ऐसी फिजूल खबरों पर कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
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सोशल मीडिया पर जीते जी मरे ये सेलिब्रिटी...
लता मंगेशकर
मशहूर गायिका लता मंगेशकर को भी सोशल मीडिया जीते जी मार चुका है. खबरों की पुष्टि किए बिना ही ट्वीट और अन्य सोशल साइट के जरिये लोगों ने श्रद्धांजलि देने में भी देरी नहीं दिखाई. हालांकि लता मंगेशकर ने ट्वीट कर अपने जिंदा होने की पुष्टि की थी और अपने फैंस को ऐसी अफवाहों से बचने की सलाह दी थी.
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सोशल मीडिया पर जीते जी मरे ये सेलिब्रिटी...
दिलीप कुमार
एक-दो बार नहीं बल्कि इस महान अभिनेता को ऐसी आधारहीन खबरों का तीन बार शिकार होना पड़ा. पहली बार व्हाट्सएप मैसेज पर उनकी मौत की खबर उड़ी, दूसरी बार जब अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हुए तो सोशल मीडिया में इनकी मौत की खबर आ गई. तीसरी बार अर्पिता खान की शादी के वक्त भी इनके गुजरने की खबर आई थी.
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सोशल मीडिया पर जीते जी मरे ये सेलिब्रिटी...
रजनीकांत
वायरल इंफेक्शन के चलते साल 2011 में जब सुपरस्टार रजनीकांत को अस्पताल में भर्ती किया गया था तब उनकी मौत की खबरें सामने आई. यहां तक कि रजनीकांत की मौत की खबर ट्रेंड करने लगी. खबरों ने तूल पकड़ा तो रजनीकांत की पत्नी को सफाई देने के लिए सामने आना पड़ा और उन्होंने कहा कि रजनीकांत बिल्कुल ठीक हैं.
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सोशल मीडिया पर जीते जी मरे ये सेलिब्रिटी...
हनी सिंह
सोशल मीडिया पर चल रही कुछ तस्वीरों को देख कर ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि मशहूर रैप सिंगर हनी सिंह चल बसे हैं. इसके बाद हनी सिंह ने ट्वीट कर अपने जिंदा होने की जानकारी दी थी.
रिपोर्ट: अपूर्वा अग्रवाल
पिछले महीने सोशल मीडिया पर एक दिल दहलाने वाला वीडियो चल रहा था. इस वीडियो में जमीन पर एक लड़की की लाश पड़ी है जबकि उसकी बहन बालकनी से छलांग लगाती है और अपनी बहन के पास जमीन पर ही दम तोड़ देती है. दावा किया गया कि यह वीडियो भारत का ही है. लेकिन बाद में पता चला कि वह वीडियो इंडोनेशिया है और ये दोनों बहनें 2006 में अपनी मां की मौत के बाद डिप्रेशन का शिकार थीं.
इसी तरह कुछ महीनों पहले सोशल मीडिया पर एक सैनिक की लाश की फोटो वायरल हुई जिसे तेज बहादुर यादव की लाश बताया गया था. तेज बहादुर ने अपने एक वायरल वीडियो में सीमा सुरक्षा बल में जवानों को मिलने वाले खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठाया था. लेकिन बाद में पता चला कि वह फोटो छत्तीसगढ़ में माओवादी हमले की है.
फेक न्यूज की समस्या इसलिए भी जटिल होती जा रही है क्योंकि देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. अभी भारत की 27 फीसदी आबादी यानी 35.5 करोड़ लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं. चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लोग भारत में हैं.
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अनफॉलो
ऐसे लोगों को अनफॉलो कर दीजिए जो सिर्फ बकवास करते हैं. ये लोग या तो अपनी सेल्फी डालते हैं या फिर फॉरवर्ड किए मेसेज को शेयर करते हैं. इन्हें अनफ्रेंड करने की जरूरत नहीं, बस अनफॉलो कर लीजिए.
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परेशानपंथी पेज
आपके दोस्त कुछ फेसबुक पेज फॉलो करते हैं और उनका कॉन्टेंट शेयर करते हैं. आपको यह पसंद नहीं आप तो इसे ब्लॉक कर सकते हैं. ऐसी पोस्ट देखें तो राइट कॉर्नर पर ड्रॉपडाउन पर क्लिक करें और Hide All पर क्लिक कर दें.
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आप फेसबुक को बता सकते हैं कि क्या आपको नापसंद हैं. वहीं राइट कॉर्नर पर ड्रॉपडाउन में जाएं और I don’t to wanna see this पर क्लिक कर दें.
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वहीं राइट कॉर्नर में ड्रॉपडाउन में जाएं और Take A Survey पर क्लिक करें. इस सर्वे के जवाब पढ़कर फेसबुक आपको समझ जाएगा.
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न्यूज फीड प्रेफरेंस
होमपेज पर राइट कॉर्नर में News Feed Preference में जाएं. वहां आपको दिखेगा कि आप सबसे ज्यादा क्या देखते हैं. वहां आप मैनेज कर सकते हैं कि क्या नहीं देखना है.
रिपोर्ट: विवेक कुमार
मीडिया विश्लेषक हरतोष बल कहते हैं, "कुछ कंपनियां अपने ग्राहकों को हर दिन 4 जीबी डाटा फ्री दे रही हैं. इससे दूसरी कंपनियों को भी प्रतियोगिता में बने रहने के लिए सस्ते डाटा प्लान लाने को मजबूर होना पड़ रहा है. इसकी वजह से भी फेक न्यूज और फोटो का सर्कुलेशन बढ़ रहा है."
इंटरनेट में फेक न्यूज से सावधान
भारत सोशल मीडिया कंपनियों के लिए एक बड़ा बाजार है. दुनिया भर में व्हाट्सएप के मासिक एक अरब से ज्यादा सक्रिय यूजर्स में से 16 करोड़ भारत में हैं. वहीं फेसबुक इस्तेमाल करने वाले भारतीयों की तादाद 14.8 करोड़ और ट्विटर अकाउंट्स की तादाद 2.2 करोड़ है.
खबरों की पड़ताल करने वाली एक वेबसाइट ऑल्टन्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने डीडब्ल्यू को बताया, "फेक न्यूज के फैलने की दो वजह हैं. पहली, हाल के वर्षों में स्मार्टफोन के दाम लगातार कम हुए हैं. दूसरा इंटरनेट डाटा के दामों में आने वाली कमी है. गांवों में रहने वाले लोग सोशल मीडिया पर चलने वाली लगभग हर बात पर विश्वास कर लेते हैं."
तो फिर निहित स्वार्थों से फैलायी जा रही फेक न्यूज को काबू कैसे किया जाए. सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषक परंजॉय गुहा ठाकुरता कहते हैं, "सजगता और निरगानी को बहुत ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है. कई राजनीतिक पार्टियों और कोरपोरेट संस्थाओं के पास गुमनाम इंटरनेट यूजर्स की पूरी फौज है. वे सच बताकर झूठी खबरों को फैलाते हैं."
पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि खबरें पढ़ने वाले भी ऐसा कुछ देखना और पढ़ना नहीं चाहते जो उनके विचारों से मेल ना खाता हो. उन्हें सिर्फ वही चीज चाहिए जो पहली नजर में उनकी सोच और ख्यालों के मुताबिक हो.
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ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
खुद पर काबू नहीं?
विश्व की लगभग आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट पहुंच चुका है और इनमें से कम से कम दो-तिहाई लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. 5 से 10 फीसदी इंटरनेट यूजर्स ने माना है कि वे चाहकर भी सोशल मीडिया पर बिताया जाने वाला अपना समय कम नहीं कर पाते. इनके दिमाग के स्कैन से मस्तिष्क के उस हिस्से में गड़बड़ दिखती है, जहां ड्रग्स लेने वालों के दिमाग में दिखती है.
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ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
लत लग गई?
हमारी भावनाओं, एकाग्रता और निर्णय को नियंत्रित करने वाले दिमाग के हिस्से पर काफी बुरा असर पड़ता है. सोशल मीडिया इस्तेमाल करते समय लोगों को एक छद्म खुशी का भी एहसास होता है क्योंकि उस समय दिमाग को बिना ज्यादा मेहनत किए "इनाम" जैसे सिग्नल मिल रहे होते हैं. यही कारण है कि दिमाग बार बार और ज्यादा ऐसे सिग्नल चाहता है जिसके चलते आप बार बार सोशल मीडिया पर पहुंचते हैं. यही लत है.
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ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
मल्टी टास्किंग जैसा?
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि दफ्तर में काम के साथ साथ जब आप किसी दोस्त से चैटिंग कर लेते हैं या कोई वीडियो देख कर खुश हो लेते हैं, तो आप कोई जबर्दस्त काम करते हैं. शायद आप इसे मल्टीटास्किंग समझते हों लेकिन असल में ऐसा करते रहने से दिमाग "ध्यान भटकाने वाली" चीजों को अलग से पहचानने की क्षमता खोने लगता है और लगातार मिल रही सूचना को दिमाग की स्मृति में ठीक से बैठा नहीं पाता.
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ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
क्या फोन वाइब्रेट हुआ?
मोबाइल फोन बैग में या जेब में रखा हो और आपको बार बार लग रहा हो कि शायद फोन बजा या वाइब्रेट हुआ. अगर आपके साथ भी अक्सर ऐसा होता है तो जान लें कि इसे "फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम" कहते हैं और यह वाकई एक समस्या है. जब दिमाग में एक तरह खुजली होती है तो वह उसे शरीर को महसूस होने वाली वाइब्रेशन समझता है. ऐसा लगता है कि तकनीक हमारे तंत्रिका तंत्र से खेलने लगी है.
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ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
मैं ही हूं सृष्टि का केंद्र?
सोशल मीडिया पर अपनी सबसे शानदार, घूमने की या मशहूर लोगों के साथ ली गई तस्वीरें लगाना. जो मन में आया उसे शेयर कर देना और एक दिन में कई कई बार स्टेटस अपडेट करना इस बात का सबूत है कि आपको अपने जीवन को सार्थक समझने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया की दरकार है. इसका मतलब है कि आपके दिमाग में खुशी वाले हॉर्मोन डोपामीन का स्राव दूसरों पर निर्भर है वरना आपको अवसाद हो जाए.
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ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
सारे जहान की खुशी?
दिमाग के वे हिस्से जो प्रेरित होने, प्यार महसूस करने या चरम सुख पाने पर उद्दीपित होते हैं, उनके लिए अकेला सोशल मीडिया ही काफी है. अगर आपको लगे कि आपके पोस्ट को देखने और पढ़ने वाले कई लोग हैं तो यह अनुभूति और बढ़ जाती है. इसका पता दिमाग फेसबुक पोस्ट को मिलने वाली "लाइक्स" और ट्विटर पर "फॉलोअर्स" की बड़ी संख्या से लगाता है.
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ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
डेटिंग में ज्यादा सफल?
इसका एक हैरान करने वाला फायदा भी है. डेटिंग पर की गई कुछ स्टडीज दिखाती है कि पहले सोशल मी़डिया पर मिलने वाले युगल जोड़ों का रोमांस ज्यादा सफल रहता है. वे एक दूसरे को कहीं अधिक खास समझते हैं और ज्यादा पसंद करते हैं. इसका कारण शायद ये हो कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में अपने पार्टनर के बारे में कल्पना की असीम संभावनाएं होती हैं.
रिपोर्ट: एमएल/आरपी
डिजिटल न्यूज पोर्टल न्यूजलॉन्ड्री के अभिनंदन शेखरी कहते हैं, "अगर हमने फेक न्यूज को रोकने के लिए कदम नहीं उठाये तो यह समस्या बढ़ती ही चलेगी जाएगी. हर फेक न्यूज में कुछ ना कुछ संकेत होते हैं और उसे आगे प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले समाचार संस्थानों को अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए."
फेसबुक ने हटाये हजारों फर्जी अकाउंट
इस बीच कुछ ऐसे टूल भी लोकप्रिय हो रहे हैं जिनके जरिए आप किसी खबर की सत्यता का पता लगा सकते हैं. गूगल सर्च के अलावा आप रिवर्स इमेज सर्च के जरिए पता लगा सकते हैं कि कोई फोटो कितनी सच है.
एसएम होअक्स स्लेयर के पंकज जैन कहते हैं, "संवेदनशील सामग्री को परखने के लिए मैं विभिन्न एल्गोरिद्म इस्तेमाल करता हूं. झूठी खबर का स्रोत पता करने के लिए बहुत ऑनलाइन रिसर्च और फैक्ट चेकिंग करनी पड़ती है."
जैन और सिन्हा, दोनों ही इस बात पर सहमत है कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की सत्यता को जांचने की जिम्मेदारी मुख्यधारा के मीडिया की तो है ही, साथ ही सरकार को भी इस बढ़ते चलन को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए. जैन की राय में, "सरकारी संस्थाओं को ग्रामीण स्तर पर लोगों को इंटरनेट साक्षरता के बारे में जागरुक किया जाना चाहिए. वे लोग बिना जांचे परखे किसी भी खबर को सच समझ लेते हैं. इसे रोकने के लिए इंटरनेट में ही कुछ अंदरूनी टूल तैयार करना होगा."
भारत की नहीं, दुनिया के और देशों में भी हाल में कई राजनेताओं, कंपनियों और सरकारों ने अपने हितों को साधने के लिए फेक न्यूज का इस्तेमाल किया है. ऐसा हम ब्रेक्जिट और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी देख चुके हैं. लेकिन चुनौती यह है कि इससे प्रभावी तरीके से कैसे निपटा जाए.