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'पहले खुद को सुधारे भारत'

२१ फ़रवरी २०१४

भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी वजह से खस्ताहाल हो रही है, इसके लिए बाहरी देश जिम्मेदार नहीं हैं. भारतीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम और रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को ये जवाब जर्मनी ने दिया है.

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Schweiz Deutschland World Economic Forum 2014 Wolfgang Schäuble
तस्वीर: Reuters

जर्मन वित्त मंत्री वोल्फगांग शॉएब्ले ने जी-20 देशों की बैठक के एजेंडे का संकेत देते हुए कहा कि उभर रहे बाजारों को दूसरे देशों से सहयोग मांगने के बजाए पहले अपनी अंदरूनी समस्याएं हल करनी चाहिए. सिडनी में इस हफ्ते के आखिर में जी-20 देशों के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक प्रमुख मिलेंगे.

बीते महीनों में विकास कर रही अर्थव्यवस्थाओं में स्टॉक, बॉन्ड और मुद्रा बाजार काफी डांवाडोल हुआ है. कमजोर पड़ते विकास और अमेरिकी नीतियों को इसका जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2009 में आर्थिक नीतियों में बड़े बदलाव किए. सरकार ने अमेरिका में ही नौकरी देने वाली कंपनियों को टैक्स और बीमा में भारी रियायतें दीं. नई और पुरानी कंपनियों के लिए कर्ज की राह भी बेहद आसान बनाई है.

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के मुताबिक इन रियायतों की वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में निवेशकों का भरोसा लौटा है और वो उभरते बाजारों में पैसा निकालकर अमेरिकी बाजार की तरफ लौट रहे हैं. भारत के प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और आरबीआई के गवर्नर कई बार कह चुके हैं कि इन कदमों की वजह से निवेशक विकासशील देशों को छोड़ रहे हैं.

आरबीआई गवर्नर राजन के बयान पर जब शॉएब्ले से राय मांगी गई तो उन्होंने कहा, "मेरे विचार से हम सभी को सहयोग के रास्ते पर डटे रहना चाहिए. हर किसी को होमवर्क करना चाहिए, उसके बाद ही कोई देश दूसरों से सहयोग मांग सकता है." कई बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में नीति निर्माण पूरी तरह ठहरा हुआ है, सुधारों के अभाव में निवेशकों का भरोसा टूट रहा है, इसी वजह से वो भारतीय बाजार से बाहर निकल रहे हैं.

Chefökonom Raghuram Rajan Indien
तस्वीर: Reuters

शॉएब्ले ने कहा कि भारत में तमाम ऐसी अंदरूनी समस्याएं हैं जो दूसरे देशों की मौद्रिक नीतियों की वजह से नहीं पैदा हुईं. जर्मन वित्त मंत्री के मुताबिक विकास करती अर्थव्यवस्थाओं को ढांचागत सुधार करना होगा, सिर्फ मौद्रिक नीति पर निर्भर रहने से कुछ नहीं होगा, "हाल ही में यूरोप में भी समस्याएं हुईं और हमेशा उन्हें कुछ देर तक टालने के लिए मौद्रिक नीति का सहारा लिया गया, लेकिन समस्याएं सुलझाने के लिए ऐसा दुरुपयोग नहीं होना चाहिए."

2013 में भारतीय मुद्रा में ऐतिहासिक गिरावट आई. अप्रैल में रुपया लुढ़कना शुरू हुआ और सितंबर तक बहुत ही नीचे गिर गया. इसकी वजह से भारतीय कारोबारियों के लिए बाहर से सामान मंगाना बहुत महंगा हो गया. ईंधन और मशीनरी के लिए विदेशों पर निर्भर रहने वाले भारत को इससे बड़ा झटका लगा. दूसरी तरफ महंगाई की वजह से कच्चा माल भी महंगा हुआ और निर्यात भी लुढ़क गया.

माना जा रहा है कि बैठक में विकासशील और विकसित देशों के बीच एक बार फिर सुधारों को लेकर नोक झोंक हो सकती है. ऑस्ट्रेलियाई वित्त मंत्री जोई हॉकी के मुताबिक अमेरिकी केंद्रीय बैंक के फैसलों को असर दुनिया के दूसरे बाजारों पर पड़ता है. फैसले करते वक्त उसे इन बातों पर ध्यान देना चाहिए, "लेकिन साथ ही ये बात भी है कि फेडरल रिजर्व अपने घरेलू बाजार के हिसाब से ही काम करेगा."

अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, ब्रिटेन, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, दक्षिण कोरिया, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, अमेरिका और यूरोपीय संघ जी-20 के सदस्य हैं. इन सदस्यों के हाथ में दुनिया की 85 फीसदी अर्थव्यवस्था है.

ओएसजे/एजेए (एएफपी, डीपीए)