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दवा और दुआ के इंतजार में मरीज

२३ जुलाई २०१२

भारत सरकार ने देश के सभी नागरिकों को दवाइयां मुफ्त उपलब्ध कराने का फैसला किया है. तमिलनाडु और राजस्थान में लोग अभी से इसका फायदा उठा रहे हैं लेकिन देश भर में इसे लागू करना एक बड़ी चुनौती होगी.

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तस्वीर: picture-alliance

चेन्नई के राजीव गांधी अस्पताल में सैंकड़ों लोग रोजाना मुफ्त दवाइयां लेने आते हैं. रामैय्या वेंकट शिक्षक रह चुके हैं और डायबीटीज का इलाज करा रहे हैं. कहते हैं कि मेडिकल स्टोर में इंसुलिन खरीदना उनके लिए महंगा पड़ जाता है इसलिए वे अस्पताल आकर अपनी दवाइयां ले आते हैं. वेंकट महंगे इलाज से तो बच गए हैं लेकिन दवाइयों कमी से कुछ समस्याएं सामने आ रही हैं. कहते हैं कि इस बार तो उन्हें तीन महीने का पूरा डोज मिल गया है लेकिन कई बार अस्पताल में केवल छह हफ्तों की दवा होती है. चेन्नई में यह कार्यक्रम स्थानीय गरीबों और कामकाजी लोगों में बहुत लोकप्रिय है. पिछले साल इस योजना का लाभ पाने वालों में से वेतन की सीमा को हटा दिया गया और अब लगभग सारे लोग मुफ्त दवाओं का फायदा उठा सकते हैं.

तमिलनाडु में हो रही दवाओं की कमी असल में पूरे भारत की भी समस्या है. दवाओं पर खर्च कम करने के लिए सरकार दवा कंपनियों को बहुत ही कम पैसे देती है. सरकार दवाओं को बाजार की कीमत से 90 फीसदी सस्ती दर पर खरीदती है. आम तौर पर यह जेनेरिक दवाओं के लिए किया जाता है. जेनेरिक दवा सिरदर्द या सर्दी जैसी बीमारियों के लिए फॉर्मूला होती हैं जिसे सार्वजनिक किया जा चुका है. इस तरह का फार्मूला छोटी दवा कंपनियों से भी खरीदा जा सकता है. इसका मतलब है कि बड़ी कंपनियां केवल महंगी दवाओं के लिए सरकार के साथ व्यापार करेंगी, जैसे एड्स और कैंसर की दवाओं के लिए. हो सकता है कि भविष्य में बड़ी कंपनियों के लिए आम दवाएं फायदे का सौदा न रहें और वह सिरदर्द और आम बीमारियों की गोलियां बनाना ही बंद कर दें. इससे दवाओं की सप्लाई कम होने का खतरा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

राजस्थान भारत का दूसरा राज्य है जहां हर बीमार व्यक्ति को मुफ्त दवाएं मिलती हैं. पिछले साल कार्यक्रम के शुरू होने के बाद राज्य के 60 फीसदी लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने लगे हैं.

मुफ्त दवाओं का केंद्र सरकार का यह कार्यक्रम 2012 के अंत में शुरू होने जा रहा है और दो साल के अंदर यह देश के सारे राज्यों में लागू हो जाएगा. कार्यक्रम के लिए भारत सरकार ने 300 अरब रुपये का बजट बनाया है.

लेकिन इतने बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य अभियान चलाना शायद आसान न हो. विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत के अस्पतालों में 10,000 मरीजों के लिए केवल नौ बिस्तर और 6.5 डॉक्टर हैं, यानी सरकार को पहले अस्पताल बनवाने पर और डॉक्टर नियुक्त करने पर ध्यान देना होगा. भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए सरकार को दवा पहुंचाने के लिए नेटवर्क तैयार करना होगा, दवाओं को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज बनाने होंगे और नई दवाओं को टेस्ट करने के लिए प्रयोगशालाएं खोलनी होंगी.

एमजी/ओएसजे (रॉयटर्स)

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