माइग्रेशन का जवाब अधिक बच्चे
११ फ़रवरी २०१९आबादी का संकट हो या विदेशियों का संकट. यूरोप दोनों संकटों से जूझ रहा है. एक तो यहां की आबादी लगातार घट रही है, दूसरी ओर बहुत से विदेशी यहां आकर रहना भी चाहते हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने यूरोप आने वाले शरणार्थियों को समाज में घुला मिला कर कामगारों की कमी का संकट पूरा करने की कोशिश की थी लेकिन लोगों ने इसे स्वीकार नहीं किया.
पार्टी के अंदर बढ़ते असंतोष और चुनावों में लगातार घटते समर्थन ने मैर्केल को पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया. अब उनकी पार्टी की नई प्रमुख आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर वर्कशॉप वार्ताओं के जरिए पार्टी के भटके सदस्यों और आम समर्थकों को फिर से पार्टी के करीब लाने की कोशिश कर रही हैं.
यूरोपीय स्तर पर अंगेला मैर्केल की शरणार्थी नीति ने बहुत से दक्षिणपंथी नेताओं को भी नाराज किया, खासकर पूर्वी यूरोप में. वे शरणार्थी विरोधी रवैया अपनाकर अपने यहां पॉपुलिस्टों को मजबूत होने से रोक पाए, लेकिन यूरोप में महत्वपूर्ण नीतियों पर बंटवारे का कारण बने. उन्हीं में से एक हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान हैं जो यूरोप आए शरणार्थियों के एक हिस्से को लेने से दृढ़ता से मनाकर और मुस्लिम शरणार्थियों के खिलाफ झंडा उठाकर और मजबूत होते गए.
लेकिन यूरोप में आबादी का संकट बना हुआ है और खाली पड़ी नौकरियों में विदेशियों की भर्ती अर्थव्यवस्था चलाते रहने और आर्थिक विकास का एकमात्र विकल्प दिखता है. ऐसे में ओरबान ने एक नया विकल्प दिया है. महिलाओं की प्रजनन क्षमता बढ़ाने का विकल्प. वे सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर इस नुस्खे को अपनाना चाहते हैं ताकि हंगरी की महिलाएं ज्यादा बच्चे पैदा करें. इसके लिए उन्होंने महिलाओं को आर्थिक प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव दिया है. अपने को अनुदारवादी लोकतंत्र का समर्थक कहने वाले ओरबान ने राष्ट्र की स्थिति पर अपने भाषण में जन्मदर में कमी का जिक्र करते हुए कहा, "ये है हंगरी का जवाब, आप्रवासन नहीं."
हंगरी के प्रधानमंत्री ने महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए जिन कदमों की घोषणा की है, उनमें एक है पहली बार शादी करने वाली 40 साल तक की उम्र की महिलाओं को 1 करोड़ फोरिंट (25 लाख रुपये) का कर्ज देना. पहले बच्चे के पैदा होने के बाद कर्ज वापसी को तीन साल के लिए रोक दिया जाएगा. दूसरा बच्चे पैदा होने के बाद कर्ज का एक तिहाई और तीसरे बच्चे के पैदा होने के बाद पूरा कर्ज माफ कर दिया जाएगा.
युवा लोगों को शादी करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मकान खरीदने के लिए कर्ज की सुविधा में भी सुधार किया जा रहा है. भविष्य में कर्ज के लिए सरकारी गारंटी भी बच्चों के हिसाब से दी जाएगी. तीन बच्चों वाले परिवार को सात सीटों वाली कार खरीदने के लिए सरकार 25 लाख फोरिंट की सबसिडी देगी. चार या चार से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली और उनकी परवरिश करने वाली महिलाओं को जिंदगी भर आयकर नहीं देना होगा.
साइप्रस में सबसे कम बच्चे पैदा होते हैं
विक्टर ओरबान की ये घोषणाएं अगले साल होने वाले यूरोपीय संसद के चुनावों से भी जुड़ी हैं. यूरोप में वे आप्रवासन विरोधी कंजरवेटिव पार्टियों को इकट्ठा करने की कोशिश करते रहे हैं. अपने भाषण में उन्होंने कहा कि वे आप्रवासन को बढ़ावा देने वाले बहुमत को रोकना चाहते हैं. उन्होंने मध्यमार्गी पार्टियों पर, जिनमें यूरोपीय पीपुल्स पार्टी भी है और ओरबान की फिदेश पार्टी उसकी सदस्य है, आप्रवासन को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. उन्होंने यूरोपीय संघ पर अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस द्वारा निर्देशित होने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी योजना मुस्लिम आप्रवासन के जरिए यूरोपीय लोगों की पहचान मिटाने की है.
अलग अलग देशों में अनुदारवादी नेता महिलाओं से ज्यादा बच्चे पैदा करने की मांग करते रहे हैं. इस बार ये मांग लोकतांत्रिक देश के एक नेता ने की है और वह भी आप्रवासन विरोधी कदम के रूप में. हंगरी में प्रति महिला प्रजनन दर 1.45 है जोकि यूरोप का औसत 1.58 है. यूरोप में सबसे ज्यादा प्रजनन दर फ्रांस में है जहां प्रति महिला 1.92 बच्चे पैदा होते हैं. सबसे कम प्रजनन दर 1.33 स्पेन में है. प्रजनन दर के मामले में पहले नंबर पर नाइजर है जहां प्रति महिला 7.24 बच्चे पैदा होते हैं. विज्ञान पत्रिका लांसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 1950 के दशक में हर महिला अपने जीवनकाल में 4.7 बच्चे पैदा करती थी लेकिन अब ये औसत गिरकर 2.4 रह गया है. भारत में ये दर 2.33 है.
विक्टर ओरबान भले ही ये रुख देश में लोकप्रियता बनाए रखने के लिए कर रहे हैं, यूरोप में बड़े पैमाने पर हो रहे आप्रवासन ने आम लोगों में आप्रवासन विरोधी भावना पैदा की है जिसका लाभ अति दक्षिणपंथी पार्टियों और गुटों को मिल रहा है. आम तौर पर आप्रवासन उन देशों से हो रहा है जहां या तो गृहयुद्ध चल रहा है या लोकतंत्र नहीं होने के कारण उदारवादी आर्थिक विकास नहीं हो रहा है. इन समस्याओं से अफ्रीका और एशिया के देशों को खुद निबटना होगा, लेकिन ओरबान की नई नीतियां इस पर बहस का नया आधार दे रही हैं.
आप्रवासन पर विक्टर ओरबान के विवादास्पद बयान