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जब राजकपूर ने मजरूह की मदद करना चाही

२४ मई २०१४

हिन्दी सिनेमा के मशहूर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी से राजकपूर ने एक खास गीत की रचना तब करवाई जब मजरूह के परिवार को पैसों की बहुत सख्त जरूरत थी. आज मजरूह की पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ यादगार बातें...

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तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library

मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म उत्तप्रदेश के सुल्तानपुर शहर में एक अक्तूबर 1919 को हुआ था. उनके पिता सबइंस्पेक्टर थे और वह मजरूह सुल्तानपुरी को उच्च शिक्षा देना चाहते थे. मजरूह ने लखनऊ के तकमील उल तीब कॉलेज से यूनानी मेडिसीन की पढ़ाई की और उनके बाद हकीम के रूप में काम करने लगे.

बचपन का शौक

शायरी का शौक उन्हें बचपन से ही था. इसी शौक के चलते वह अक्सर सुल्तानपुर में होने वाले मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे जिनसे उन्हें काफी नाम और शोहरत मिली. उन्होंने अपनी मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में ही छोड़ दी और अपना ध्यान पूरी तरह शायरी की ओर लगाना शुरू कर दिया. इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी से हुई.

1945 में सब्बो सिद्दीकी इंस्टीट्यूट में एक मुशायरे में हिस्सा लेने मजरूह सुल्तानपुरी बम्बई पहुंचे. मुशायरे में उनकी शायरी सुन मशहूर निर्माता एआर कारदार काफी प्रभावित हुए और उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी से अपनी फिल्म के लिए गीत लिखने की पेशकश की. मजरूह ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि फिल्मों के लिए गीत लिखना वह अच्छी बात नहीं समझते थे.

फिल्मों में काम बुरा नहीं

उस समय जिगर मुरादाबादी ने ही मजरूह सुल्तानपुरी को सलाह दी कि फिल्मों के लिए गीत लिखना कोई बुरी बात नहीं. गीत लिखने से मिलने वाली धनराशि में से कुछ पैसे वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज सकते हैं. जिगर मुरादाबादी की सलाह पर मजरूह सुल्तानपुरी फिल्म में गीत लिखने के लिए राजी हो गए. इसके बाद संगीतकार नौशाद ने मजरूह सुल्तानपुरी को एक धुन सुनाई और उनसे उस धुन पर एक गीत लिखने को कहा.

मजरूह सुल्तानपुरी ने उस धुन पर जो गीत लिखा वह था 'जब उनके गेसू बिखराए, बादल आए झूम के'. मजरूह के गीत लिखने के अंदाज से नौशाद काफी प्रभावित हुए. उन्होंने मजरूह से अपनी नयी फिल्म 'शाहजहां' के लिए गीत लिखने की पेशकश की. इसके बाद मजरूह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

फिल्म शाहजहां के बाद महबूब खान की 'अंदाज' और एस फाजिल की 'मेहंदी' जैसी फिल्मों में कामयाब गीत लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी बतौर गीतकार फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए.

जेल के दिन

अपनी वामपंथी विचारधारा के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. आजादी के तुरंत बाद आंदोलनों में हिस्सा लेने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा. मजरूह सुल्तानपुरी को माफी मांग लेने पर रिहा किए जाने की पेशकश की गई लेकिन वे इस बात के लिए राजी नहीं हुए और उन्हें दो वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया.

मजरूह सुल्तानपुरी के जेल चले जाने से उनके परिवार की माली हालत काफी खराब हो गई. राजकपूर ने उनकी मदद करना चाहा लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी ने इससे इनकार कर दिया. इसके बाद राजकपूर ने उनसे एक गीत लिखने की पेशकश की. तब मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा बेहद लोकप्रिय गीत 'एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल'. गीत के एवज में राजकपूर ने उन्हें एक हजार रूपये दिए. बहुत साल बाद 1975 में राजकपूर ने अपनी फिल्म धरम करम के लिए इस गीत का इस्तेमाल किया.

सम्मानित गीतकार

लगभग दो वर्ष जेल में रहने के बाद मजरूह सुल्तानपुरी ने एक बार फिर नए जोश के साथ काम करना शुरू किया. वर्ष 1953 में आई फिल्म 'फुटपाथ' और 'आर पार' में अपने गीतों की कामयाबी के बाद मजरूह सुल्तानपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी खोई हुई पहचान दोबारा हासिल करने में सफल रहे.

मजरूह सुल्तानपुरी के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए 1993 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया. 1964 में आई फिल्म 'दोस्ती' में अपने गीत 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए वह सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए.

मजरूह सुल्तानपुरी ने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में लगभग 300 फिल्मों के लिए करीब 4000 गीतों की रचना की. अपने गीतों से सुनने वालों के दिल में राज करने वाले शायर और गीतकार मजरूह सुलतानपुरी 24 मई 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गए.

एसएफ/एमजे (वार्ता)