संभव है कि अलग अलग ध्वनियों और शब्दों को याद कर उन्हें सुना देने की प्रतिभा पर तोतों के एकाधिकार को चुनौती मिले. हालांकि इस अनोखे बतख को 1987 की एक रिकॉर्डिंग में देखा गया है, लेकिन इसकी काबिलियत नायाब है.
रिपर नाम का यह बतख मस्क बतख प्रजाति का था और यह खाने की चीजें मांगने से आगे भी बहुत कुछ 'कह' सकता था. इसे खोज निकाला है बायोलॉजिस्ट कैरेल टेन केट ने. कैरेल का कहना है कि उन्होंने जब यह दावा सुना कि मस्क बतख इंसानी भाषा की नकल कर सकते हैं तो उन्हें यह "मानने में कठिनाई" हुई.
मैथुन से संबंध
लेकिन उन्होंने इस दावे का सच पता लगाने की ठानी और पुरानी रिकॉर्डिंगों को खंगालने लगीं. घंटों खोजने के बाद उन्हें रिपर की 1987 की एक रिकॉर्डिंग मिली जिसमें यह बतख बार बार "यू ब्लडी फू" (तुम मूर्ख हो) कह रहा था.
मैथुन के समय नर मस्क बतख बार बार कुछ आवाजें निकालता है
रिपर "फूल" के अंत में आने वाले "ल" का उच्चारण नहीं कर पा रहा था क्योंकि बतखों के लिए इस अक्षर की ध्वनि निकालना मुश्किल होता है. रिपर इंसानी हाथों में पला-बढ़ा था और रिकॉर्डिंग के समय चार साल का था.
हाल ही में विज्ञान की पत्रिका फिलोसॉफिकल ट्रांजैक्शंस ऑफ द रॉयल सोसाइटी में छपे एक अध्ययन के मुताबिक रिपर यह ध्वनियां मैथुन के संकेतों के साथ निकालता था. मैथुन के समय एक नर मस्क बतख सामान्य रूप से प्रतिद्वंद्वियों को भगाने के लिए लात मारने के साथ साथ बार बार कुछ आवाजें निकालता है.
बचपन में सीखना
ऐसे में वो अपनी पूंछ को भी अलग अलग मुद्राओं में रखता है. अध्ययन की रिपोर्ट में बताया गया है कि रिपर की रिकॉर्डिंग करने वाले पीटर फुलगर जान बूझकर उसके पिंजरे के पास पहुंच कर उसे "गुस्सा" दिला रहे थे.
संभव है कि कुछ पशु-पक्षी बचपन में सुनी आवाजों को याद कर उन्हें दोहरा सकते हों
उनके ऐसा करने पर रिपर अपना डांस शुरू करता था, लेकिन बतखों वाली सामान्य आवाजें निकालने की जगह गाली बकने लगता था. उसकी प्रतिभा इसके आगे भी थी. फुलगर ने उसे एक दरवाजे के जोर से बंद होने की आवाज की नकल करते हुए भी रिकॉर्ड किया था.
सोनोग्राम विश्लेषण से पता चला कि यह ध्वनि उस ध्वनि से बहुत मिलती जुलती थी जो रिपर के बचपन में उसके रहने की जगह के पास के एक दरवाजे से निकलती थी. कैरेल का कहना है कि रिपर का उन आवाजों की नकल करना जो उसने संभवतः अपने बचपन में सुनी थीं शोध का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष है.
हाथियों की क्षमता
उन्होंने बताया, "रिपर ने जो स्वर संबंधी क्षमता दिखाई, अभी तक ऐसा माना जाता था कि वो सिर्फ सॉन्गबर्ड, हमिंगबर्ड और तोतों में होती है." रिपर पर यह अध्ययन पत्रिका के जिस अंक में छपा है वो पशुओं की विशेष स्वर संबंधी क्षमताओं पर एक विशेष अंक है. इसमें हाथियों, डॉलफिन और सील द्वारा निकाली जाने वाली आवाजों के बारे में भी बताया गया है.
हाथियों में इशारे पर ध्वनि निकालना सीखने की अनूठी क्षमता पाई गई है
बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी और ऑस्ट्रिया में वयस्क अफ्रीकी हाथियों पर किए गए शोध में इशारे पर चिंघाड़ने और हांफने की विशेष आवाजें निकालने की उनकी क्षमता के बारे में बताया गया है.
जबू नाम का एक नर हाथी तो 100 प्रतिशत शुद्धता के साथ इशारा करने पर सात अलग अलग आवाजें निकाल सकता है. उसने यह आवाजें निकालना अपने बचपन में सीखना शुरू किया था.
अध्ययन में यह भी बताया गया कि जिन हाथियों ने वयस्क हो जाने के बाद यह सीखा वो भी 80 प्रतिशत शुद्धता के साथ इशारों पर आवाजें निकाल पा रहे थे, जो हाथियों में इशारे पर ध्वनि निकालना सीखने की एक पेचीदा स्तर की क्षमता का संकेत है.
सीके/वीके (एएफपी)
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जानवरों की सुनने की अद्भुत तकनीक
खरगोश अपने कानों को 270 डिग्री तक घुमा सकते हैं
खरगोश अपने कानों को आवाज की तरफ केंद्रित कर सकते हैं. कान घुमाने की क्षमता उन्हें शिकारियों से बचने में मदद देता है. खरगोश के कान देखकर हम उनके बारे में भी बहुत कुछ बता सकते हैं. कान यदि खड़े हों तो इसका मतलब है कि वे बड़े ध्यान से कुछ सुन रहे हैं. यदि एक कान ऊपर हो और दूसरा नीचे, तो खरगोश आराम से कुछ सुन रहा होता है. एक ही स्थिति में कानों को अलग करना उनके डरने का संकेत है.
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जानवरों की सुनने की अद्भुत तकनीक
बड़े चौकस होते हैं बिल्ली और कुत्ते
कुत्ते इंसान की तुलना में ज्यादा ऊंची फ्रीक्वेंसियों को सुन सकते हैं. यही कारण है कि जब आपको कुछ महसूस नहीं होता तब भी आपका कुत्ता प्रतिक्रिया देता है. कुत्ते अजनबी लोगों की आहट को अपने मालिक की आहट से अलग कर सकते हैं. बिल्ली के कान और भी ज्यादा संवेदनशील होते हैं. कुत्तों में कान की 18 मांसपेशियां होती हैं, बिल्लियों की 30. तो, बिल्ली के पास चुपके से जाने की कोशिश बेकार है.
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चमगादड़ करते हैं अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल
चमगादड़ रात की उड़ानों के दौरान रास्ता पता करने के लिए इकोलोकेशन पर भरोसा करते हैं. वे अपने मुंह से अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंगों को बाहर भेजते हैं, फिर उसकी गूंज वापस लौटकर आती है. चमगादड़ इस तरीके का इस्तेमाल वस्तुओं के आकार और उसकी जगह को निर्धारित करने और घुप्प अंधेरे में खाने की तलाश में करते हैं. चमगादड़ के कान में 20 मांसपेशियां होती हैं, जिनसे वे कान का आकार और दिशा बदलकर गूंज सुन सकते हैं.
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सबसे अच्छा सुनने वाला जानवर किसी काम का नहीं
शिकार और शिकारियों के बीच लंबे समय से चली आ रही दौड़ में, बड़े पतंगे चमगादड़ों से बचने में कामयाब रहे हैं. ऐसा उन्होंने अल्ट्रासाउंड ध्वनि सुनने वाले अपने कान विकसित कर किया है. जानवरों की दुनिया में वे ऐसे जीव हैं जो उच्चतम फ्रीक्वेंसी की आवाज सुनने के काबिल हैं. यह इंसानों की तुलना में 150 गुना बेहतर है. वे चमगादड़ की तुलना में 100 हर्ट्ज से ज्यादा की फ्रीक्वेंसी वाली ध्वनि भी सुन सकते हैं.
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दूसरे कीड़े भी सुन लेते हैं अपने शिकारियों को
जब झींगुर, टिड्डे और पतंगे अपने शिकारियों की अल्ट्रासोनिक तरंगों को सुनते हैं तो वे उनसे बचने के लिए फौरन भाग जाते हैं. शिकारी दूर हों तो वे भाग जाते हैं, करीब हों तो या आड़ा तिरछा या लूपिंग पैटर्न में उड़ने लगते हैं. कुछ टिड्डे और झींगुर शिकारियों को डराने के लिए टिकटिक की आवाज भी निकालते हैं.
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जीवित पनडुब्बियों जैसी है व्हेल
अंडरवाटर सोनार ध्वनि इकोलोकेशन तकनीकों पर ही आधारित है. चमगादड़ और व्हेल रात में या गहरे अंधेरे में महासागर में रास्ता खोजने के लिए इसका उपयोग करते हैं. पनडुब्बियों की ही तरह, व्हेल भी ध्वनि तरंगों और ध्वनि परावर्तन का इस्तेमाल कर भोजन खोजती हैं. व्हेल की सीटी और क्लिक के बारे में कहते हैं कि वह उन्हें दुनिया का 3 डी परिदृश्य देती है और दो व्हेलों के बीच संचार में भी अहम होती है.
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जबड़े के माध्यम से सुनती है डॉल्फिन
डॉल्फिन के कान होते हैं. लेकिन वे समुद्र में तैरने के लिए चमगादड़ की ही तरह इकोलोकेशन जैसे एक मेकेनिज्म का इस्तेमाल करती हैं. वे अपने माथे से सोनिक कंपन पैदा करती हैं. समुद्र में मौजूद पानी और दूसरे जीवों से टकरा कर इन कंपनों का परावर्तन होता है और फिर डॉल्फिन के जबड़े और दांतों में मौजूद ध्वनि रिसेप्टर्स उसे समझते हैं. आपने सही पढ़ा, सुनने के लिए कानों का होना जरूरी नहीं है.
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हाथियों को तूफान का पता लग जाता है
अपने विशाल कानों की मदद से हाथी बारिश से पहले बादलों के इकट्ठा होने की आवाज सुन सकते हैं. हाथियों को इंफ्रासाउंड की लहरों का पता चल जाता है. यह कम फ्रीक्वेंसी वाली ध्वनि होती है जिसे इंसान नहीं सुन सकता. वे अपने पैरों की तंत्रिका का इस्तेमाल कर धरती के कंपन को भी सुन सकते हैं. कुछ जानवरों के शरीर के कुछ हिस्सों पर रिसेप्टर होते हैं जो कंपन और ध्वनि तरंगों को तंत्रिका तंत्र तक पहुंचाते हैं.
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प्रकृति का निगरानी कैमरा हैं उल्लू
उल्लू ना केवल रात को अच्छी तरह देख सकते हैं बल्कि वे अपने सिर को 360 डिग्री घुमा भी सकते है. इसके अलावा उनके पास सुनने की शानदार क्षमता क्षमता होती है. उल्लुओं के कान विषम होते हैं, इसलिए जब वे उड़ते हैं तो एक कान ऊपर से आवाज सुनता है जबकि दूसरा नीचे से आने वाली आवाज सुनता है. रात को अच्छी तरह देख सकने की क्षमता और उसके साथ सुनने की इस बेहतरीन प्रणाली का अर्थ है कि उनका शिकार उनसे बच नहीं सकता.
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कुछ नेत्रहीन लोग चमगादड़ की तरह रास्ता खोजते हैं
कुछ नेत्रहीन इंसान अपने आसपास का पता करने के लिए ध्वनि की गूंज का सहारा लेते हैं. ऐसा करने का एक तरीका यह है कि वे अपने मुंह से क्लिक क्लिक की आवाज निकालते हैं और फिर कमरे के आकार या दीवार या बाड़ की दूरी का अनुमान लगाने के लिए उसकी गूंज सुनते हैं. कुछ लोग तो इकोलोकेशन का इस्तेमाल कर अपने आसपास के माहौल के बारे में बता भी सकते हैं.
रिपोर्ट: फराह आकेल