1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

गरीबी नहीं, 'गरीबों को ही खत्म' कर रहे हैं इमरान खान

४ अप्रैल २०१९

पाकिस्तान में यासिर सुल्तान जैसे बहुत से लोगों ने बड़ी उम्मीद से पिछले साल इमरान खान की पार्टी को वोट दिया था. लेकिन चंद महीनों के भीतर उनकी सारी उम्मीदें बिखर गई हैं.

https://p.dw.com/p/3GE3i
Saudi Arabien, Riad: Imran Khan auf der Investment Konferenz
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Nabil

यासिर सुल्तान टैक्सी चलाते हैं और पेट्रोल के बढ़ते दामों की वजह से उनकी आमदनी आधी से भी कम हो गई है. उन्हें इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई से बहुत उम्मीदें थीं कि वे सत्ता में आने पर गरीबों की मदद करेंगे. लेकिन पिछले पांच महीने में पाकिस्तान में मंहगाई ने रिकॉर्ड बनाए हैं, जिससे इमरान खान के बहुत समर्थकों को भी झटका लगा है. इमरान खान ने चुनाव से पहले गरीबी हटाने, नौकरियां बढ़ाने और पाकिस्तान को कल्याणकारी इस्लामी देश बनाने का वादा किया था.

30 साल के सुल्तान कहते हैं, "इमरान खान ने गरीबी हटाने की बड़ी बड़ी बातें कीं, लेकिन वह गरीबी को खत्म नहीं कर रहे हैं, बल्कि गरीबों को ही खत्म कर रहे हैं. कभी कभी तो मन करता है कि अपनी टैक्सी में आग लगा दूं."

लगातार बढ़ रहे घाटे और आर्थिक तंगियों से जूझ रही पाकिस्तान की सरकार के सामने भी ज्यादा विकल्प नहीं हैं. वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 13वां राहत पैकेज लेने में जुटी है. पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में 8.5 अरब डॉलर हैं. साल की शुरुआत से तुलना करें तो विदेशी मुद्रा भंडार को बेहतर स्थिति में कहा जाएगा. लेकिन इससे सिर्फ दो महीनों का ही आयात हो पाएगा.

इमरान खान को कितना जानते हैं आप?

कलेक्टिव फॉर सोशल साइंस रिसर्च के अर्थशास्त्री असद सईद का कहना है, "मांग को कम करना अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने का हिस्सा है ताकि चालू खाते और व्यापारिक घाटे को कम किया जा सके." मार्च में पाकिस्तान में मुद्रास्फीति की दर 9.4 प्रतिशत से ज्यादा थी. नवंबर 2013 के बाद से ये रिकॉर्ड मुद्रास्फीति है. खाने पीने की चीजों और पेट्रोल के दाम तेजी से बढ़े हैं जो ज्यादातर उपभोक्ताओं को प्रभावित कर रहे हैं.

जून में खत्म होने वाले वित्तीय साल के लिए पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने 3.5 फीसदी से 4 फीसदी के विकास दर की भविष्यवाणी की है, जबकि सरकार ने 6.2 फीसदी का लक्ष्य रखा था. सईद का कहना है कि देश में अतिरिक्त कामगारों की बड़ी फौज वेतन और मजदूरी पर रोक लगाकर रखेगी, लेकिन लोगों के रहन सहन के स्तर में कमी आएगी.

लाहौर में रहने वाली सारा सलमान कहती हैं, "मैंने पीटीआई को वोट दिया, बदलाव के उनके नारे को देखते हुए. लेकिन अब मुझे इस बात का अफसोस है." डॉलर के मुकाबले पाकिस्तान रुपये की कीमत लगातार कम हो रही है. सरकार पर सब्सिडी को कम करने का दबाव बढ़ रहा है जिससे बिजली के पहले से बढ़े दामों में और इजाफा हो सकता है. इससे आम आदमी पर और बोझ बढ़ेगा. प्रति लीटर 6 रुपये की वृद्धि के साथ अब पाकिस्तान में पेट्रोल 98.88 रुपये लीटर मिल रहा है.

पाकिस्तान सरकार का कहना है कि वह आखिरी बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहायता पैकेज ले रही है. पाकिस्तान ने अपने मित्र देशों से भी सहायता मांगी है जिसमें चीन सबसे प्रमुख है जो पहले ही पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर की लागत से चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर बना रहा है.

Pakistan Demonstration Imran Khan 16. August
इमरान खान के कई समर्थक आज मायूस हैंतस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images

इसके अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी पाकिस्तान को 11 अरब डॉलर कर्ज और मदद के तौर पर देने को राजी हो गए हैं. सरकार का कहना है कि वह घरेलू उत्पादन के जरिए आयात को कम करने के लिए काम कर रही है. साथ ही टैक्स के दायरे के बढ़ाने की भी कोशिश हो रही है. लेकिन दोनों ही मोर्चों पर उसे जूझना पड़ रहा है.

पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी का कहना है, "तेल के दाम बढ़ना और मुद्रा की कीमत कम होना, ये ऐसी चीजें हैं जो होनी ही थीं. इंशा अल्लाह आगे आने वाला समय बेहतर होगा."

पर्यवेक्षकों का कहना है कि पाकिस्तान को एक कल्याणकारी इस्लामिक राज्य बनाने का वादा अब पीछे छूट गया है. पाकिस्तान के अखबार डॉन में बिजनेस एडिटर खुर्रम हुसैन कहते हैं, "उन्हें मुश्किल आर्थिक समायोजन करने होंगे." उनका मतलब है टैक्स और ब्याज दरें बढ़ाना, आयात और सरकारी खर्च को घटाना और रुपये का अवमूल्यन. वह कहते हैं, "ऐसे माहौल में उन कल्याणकारी वादों को पूरा करना बहुत मुश्किल होगा जिनका वादा किया गया था."

आर्थिक जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान के सामने खर्चों को कम करने और रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं है. लेकिन आम लोगों का संयम जवाब दे रहा है. लाहौर के एक स्कूल में पढ़ाने वाले मोहम्मद वकास कहते हैं, "मौजूदा वित्तीय नीतियां और बढ़ती महंगाई लोगों का अपमान है. अगर पीटीआई की सरकार इन समस्याओं को हल नहीं कर सकती है तो उसे सत्ता छोड़ देनी चाहिए."

एके/एमजे (रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी