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समाज

खुद को बदलने में जुटा है दुबई

२७ मार्च २०१८

तेल के कारोबार ने दुबई को दुनिया के अमीर शहरों की फेहरिस्त में शामिल कर दिया. लेकिन अब यह चमचमाता शहर खुद को अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल करने वाला एक बड़ा केंद्र बनाने की तैयारी में है.

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Dubai, Gevora Hotel
तस्वीर: Getty Images/K.Sahib

आज दुबई का नाम सुनते ही आंखों के सामने ऊंची इमारतें, चमचमाती सड़क, बड़े-बड़े शापिंग मॉल की तस्वीर उभर आती है. शान-शौकत की मिसाल बन चुका दुबई आज दुनिया के अमीर शहरों में शुमार होता है. लेकिन अब देश बदलाव की तैयारी कर रहा है. 100 साल पहले तक संयुक्त राष्ट्र अमीरात के इस शहर को कोई नहीं जानता था. लेकिन 1950 के दशक में हुई तेल की खोज ने यहां क्रांति ला दी और इसकी सीरत बदल दी. लेकिन अब अमीरात के नेताओं ने एक नए बदलाव के लिए कमर कसी है. यह बदलाव है जीवाश्म ईंधन के भरोसे चलने वाले दुबई को स्वच्छ ऊर्जा का केंद्र बनाया जाए. दुबई का दावा है कि वह साल 2050 तक अपनी सभी ऊर्जा जरूरतों को स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों से पूरा करने में सक्षम होगा.

Alter Hafen von Dubai
तस्वीर: DW/Y. Grigoryants

रेत से लबरेज यह मेगासिटी कार्बन उत्सर्जन की दर को कम करने के लिए सिर्फ बिजली और परिवहन क्षेत्र को ही निशाना नहीं बना रही है. बल्कि इसका ध्यान शहर में होने वाले जल आपूर्ति सिस्टम पर भी है जो बड़ी मात्रा में ऊर्जा खपत के लिए जिम्मेदार है.

दरअसल दुबई में आने वाला अधिकतर जल, समुद्र से आता है. समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य मीठे पानी में बदलने की पूरी प्रक्रिया ऊर्जा और पैसे के लिहाज से बेहद ही खर्चीली है. इसके साथ ही आज यह बहुत हद तक जीवाश्म ईंधन पर निर्भर करता है. लेकिन अब दुबई इसे और भी बेहतर करना चाहता है. देश के जलवायु परिवर्तन मंत्री अहमद अल जायदी ने बताया कि देश में खारे पानी को पीने योग्य बनाने के लिए अब अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. उन्होंने बताया कि इसके लिए देश में कोशिशें जारी हैं ताकि भविष्य में इस्तेमाल की जा सकने वाली तकनीकों को विकसित किया जा सके. जायदी कहते हैं, "हम भविष्य में निवेश कर रहे हैं. दशकों पहले जब हमने समंदर के खारे पानी का पीने के लिए इस्तेमाल किया था तब भी दुनिया हम पर हंस रही थी. लेकिन आज दुनिया में पड़ने वाले सूखों से निपटने के लिए यह एक कारगर समाधान हो सकता है."

ग्रीन दुबई

स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में दुबई आगे बढ़ रहा है. जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में दी जाने वाली मदद में दुबई ने इजाफा किया है. अपने छठे वार्षिक वर्ल्ड गवर्नमेंट सम्मेलन में अल जायदी ने घोषणा की थी कि वह कैरेबियाई क्षेत्र में चल रहीं जलवायु परियोजनाओं के लिए करीब 10 लाख डॉलर की मदद देंगे. कैरेबियाई क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित द्वीपों ने इसके लिए अमीर देशों को दोषी ठहराया था. लेकिन अब यूएई न सिर्फ ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर ध्यान दे रहा है बल्कि छोटे देशों को सौर ऊर्जा और समंदर के खारे पानी को मीठा पानी बनाने की तकनीकों के लिए उधार भी दे रहा है.

कैरेबियाई क्षेत्र के द्वीप एंटीगुआ और बारबदुआ के प्रधानमंत्री गेस्टन ब्राउन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह बहुत अच्छा है कि अब ये देश न केवल स्वयं को अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में ले जाने की जिम्मेदारी ले रहे हैं बल्कि अन्य देशों को भी उनके कार्बन फुटप्रिंट कम करने में मदद कर रहे हैं."

जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए जुटे विशेषज्ञ
तस्वीर: DW/Y. Grigoryants

फिल्टिरिंग से क्लाउड सीडिंग

दुबई इलेक्ट्रिसिटी ऐंड वॉटर अथॉरिटी (डीईडब्ल्यूए) के उपाध्यक्ष याह्या अल-जफीन अभी इस्तेमाल होने वाली तकनीक के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ये तकनीक वॉटर डीसेलिनेश प्लांट में जीवाश्म ईंधन से चलने वाले टरबाइन से पैदा हुई ऊर्जा का प्रयोग करती है. उन्होंने बताया कि देश में औद्योगिक स्तर पर जल उत्पादन साल 1978 में शुरू हुआ. उसके पहले आम लोग और उद्योग धंधे पानी के लिए कुंओं पर निर्भर होते थे. जफीन कहते हैं, "समंदर ही हमारे पास पानी का इकलौता स्रोत है इसलिए हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इसका ऐसे इस्तेमाल किया जाएं जिसका कम से कम असर पर्यावरण पर पड़े." पीक सीजन में, डीईडब्ल्यूए शहर में प्रतिदिन 47 करोड़ गैलन मीठा पानी उपलब्ध करा सकता है.

Entsalzungskomplex in Dubai
तस्वीर: DW/Y. Grigoryants

सबसे पहले समंदर से पानी को पाइप के जरिए चैंबर में पहुंचाया जाता है, जहां इसे उबाला जाता है, इस दौरान भाप बनती है. यहां इसे एकत्र कर ट्रीट किया जाता है. इस प्रक्रिया को मल्टी स्टेज फ्लैश (एमएसएफ) कहा जाता है. इस एमएसएफ प्रक्रिया का मुख्य विकल्प है रिवर्स ओसमोसिस(परासरण). इसमें समुद्र का खारा पानी झिल्ली से होकर गुजरता है और मीठे में तब्दील हो जाता है. यह तरीका पर्यावरण के लिए अधिक कारगर है. लेकिन दुबई में फिलहाल 5 फीसदी मीठा पानी ही इससे तैयार हो रहा है. लेकिन सरकार का दावा है कि साल 2030 तक इसमें 41 फीसदी की वृद्धि होगी.

इसके साथ ही इस इलाके में एक बड़ा सौर पार्क बनाया जा रहा है. यह पार्क करीब 50 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जो साल 2030 तक खुल जाएगा. यहां तक कि बादल बनने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए कृत्रिम पहाड़ों को भी बनाने पर काम किया जा रहा है. यह बेहद ही लंबी प्रक्रिया है. लेकिन क्लाउड सीडिंग तकनीक पर दुबई काम करने लगा है.

Vereinigte Arabische Emirate Abu Dhabi - Solarenergie
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K. Jebreili

वक्त की जरूरत

संयुक्त राष्ट्र के विकास कार्यक्रम प्रमुख आकिम स्टाइनर के इस प्रक्रिया को लेकर संदेह व्यक्त करते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "क्लाउड सीडिंग को लेकर मुझे शंकाए हैं. हालांकि ऐसे उदाहरण भी है जहां इस तकनीक ने काम किया है. लेकिन मुझे लगता है कि संसाधनों पर खड़ी होने वाली इन दुविधाओं के समाधान का ऐसे प्रबंधन नहीं हो सकता." हालांकि थोड़ी शंकाओं के साथ ही सही स्टाइनर को उम्मीद है कि दुबई जल उत्पादन की प्रक्रिया में कम कार्बन उत्सर्जन के लिए प्रतिबद्ध है. 

उन्होंने कहा कि दुबई के लिए खारे पानी को मीठे पानी के बदलने की प्रक्रिया को लेकर कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उनकी वह जरूरत भी है. कुल मिलाकर अब तक तेल कारोबार से धन कमाने वाला यह शहर अब अच्छे भविष्य के लिए स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों को तरजीह दे रहा है.

एंड्र्यू कॉनली/एए