खामोशी से सिमट रही है जिराफ की आबादी
१६ अगस्त २०१९साम्बुरु योद्धा के रूप में लेसाइतों लेंगोलोनी ने ज्यादातर वक्त जिराफों के शिकार में बिताया है. केन्या के मैदानी इलाकों में जिराफ घूमते टहलते नजर आ जाते थे लेकिन अब लेंगोलोनी को इलाके में जिराफ कम ही दिखाई देते हैं.
समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में लेंगोलोनी ने कहा, "शेर को मारने जैसी गर्व की अनुभूति जिराफ को मारने में नहीं होती लेकिन एक जिराफ एक हफ्ते से ज्यादा समय तक पूरे गांव के लिए भोजन जुटा सकता है."
पूरे अफ्रीका की तरह ही केन्या में भी जिराफ की आबादी तेजी से कम हो रही है. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक 1985 से 2015 के बीच अफ्रीका में जिराफों की संख्या 40 फीसदी घट कर एक लाख तक आ गई. बावजूद इसके जितना शोर हाथी, शेर या फिर गैंडे की घटती आबादी के लिए सुनाई देता है उसके मुकाबले जिराफों की बहुत कम बात होती है.
इस विशाल जानवर की भी अपनी समस्याएं हैं. आईयूसीएन के संयुक्त प्रमुख आमतौर पर यह बड़ा जानवर नेशनल पार्कों और सुरक्षित वन्य क्षेत्रों में यह आसानी से नजर आ जाता है इसलिए यह गलत धारणा बन गई है कि इसके जीवन पर कोई संकट नहीं है और यह फल फूल रहा है.
जिराफों की तादाद घटने की दर एशिया और पूरब के दूसरे इलाकों में और भी ज्यादा है. शिकार, घटते आवास और तकरार की वजह से इस शांत जीव के जीवन पर संकट बढ़ गया है.
आईयूसीएन के मुताबिक केन्या, सोमालिया और इथियोपिया में पिछले तीन दशकों में जिराफ की तादाद 60 फीसदी तक गिर गई है. इनमें जिराफों की एक प्रजाति नूबियन तो इस बीच 97 फीसदी तक गायब हो चुकी है और इसके अब पूरी तरह से विलुप्त होने का संकट पैदा हो गया है. इसके अलावा मध्य अफ्रीका में कोर्दोफान प्रजाति के जिराफों की संख्या 85 फीसदी घट गई है. 2010 तक आईयूसीएन की लाल सूची वाले जीवों में जिराफ को सबसे कम चिंताजनक स्थिति वाले जीवों में थी लेकिन छह साल बाद ही इसे "असुरक्षित" जीव घोषित किया गया जो "गंभीर संकट" वाले जीवों से महज एक पायदान नीचे है. सैन डिएगो जू इंस्टीट्यूट फॉर कंजर्वेशन रिसर्च के रिसर्च कॉर्डिनेटर स्टासी डॉस का कहना है, "यही कारण है कि हम जिराफ के खामोशी से लुप्त होने के खतरे के बारे में बात कर रहे हैं."
हालांकि इसके बाद भी जिराफ को अंतराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित किए जाने वाले जीवों में डालने को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. छह अफ्रीकी देश संयुक्त राष्ट्र के तहत जिराफों के अंतरराष्ट्रीय कारोबार को नियमबद्ध कराना चाहते हैं. संयुक्त राष्ट्र की संबंधित एजेंसी की इसी महीने जिनेवा में एक बैठक भी हो रही है. जो लोग बदलाव की मांग कर रहे हैं उनमें केन्या भी शामिल है. इन लोगों का कहना है भले ही यह जीव अभी लुप्त होने की कगार पर नहीं पहुंचा है लेकिन अगर इसका कारोबार बदस्तूर चलता रहा तो यह वहां पहुंच जाएगा. दूसरी तरफ वे लोग हैं जो कहते हैं कि इस बात के बहुत प्रमाण नहीं हैं कि अंतरराष्ट्रीय कारोबार के कारण जिराफ की संख्या घट रही है. इस बारे में भरोसेमंद आंकड़ों के ना होने से भी लोगों को अलग अलग सुर में बात करने का मौका मिल रहा है.
केन्या में जिराफों के संरक्षण और उन पर जानकारी जुटाने के एक कार्यक्रम के संयोजक सायमन मासियाने कहते हैं, "हाथी, शेर या गैंडे जैसे दूसरे करिश्माई जानवरी कों तुलना में हम जिराफ के बारे में बहुत कम जानते हैं. अब भी हमारी जानकारी कम ही है लेकिन हम आगे बढ़ रहे हैं." केन्या में यह कार्यक्रम 2016 में शुरू किया गया.
सोमालिया, दक्षिण सूडान और कांगो के पूर्वी हिस्से में जिराफ की आबादी के बारे में कोई पक्की जानकारी नहीं है, यहां जानकारी जुटाना भी कठिन है लेकिन जो इलाके इस वक्त शांत हैं वहां भी रिसर्च ठीक से नहीं हो रही है. 2018 तक से पहले तो आईयूसीए के पास भी इतनी जानकारी नहीं थी कि वह यह कह सके कि इस जीव पर खतरा मंडरा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र की लुप्तप्राय जीवों के कारोबार को नियमबद्ध करने वाले कंवेशन की बैठक में जिराफ के अंगों के वैध कारोबार को अंतरराष्ट्रीय नियमों में बांधने की कोशिश की जाएगी. सदस्य देशों को जिराफ के अंगों के निर्यात का रिकॉर्ड रखना जरूरी होगा जो फिलहाल केवल अमेरिका कर रहा है. इसके साथ ही कारोबार के लिए परमिट लेना भी अनिवार्य किया जाएगा.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)
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