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जर्मनी में भी शरणार्थियों का पैसा जब्त

बेंजामिन नाइट/आईबी२२ जनवरी २०१६

स्विट्जरलैंड और डेनमार्क के बाद अब जर्मनी ने भी शरणार्थियों से साथ लाया गया धन और कीमती चीजें जब्त करना शुरू कर दिया है. अधिकारियों का कहना है कि वे कानून का पालन कर रही है और इसमें कुछ भी नया नहीं है.

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Deutschland Flüchtlinge am Grenzübergang in Schärding
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Bruna

जर्मनी के अखबार "बिल्ड" ने यह खबर छापी कि बवेरिया प्रांत में शरणार्थियों का कीमती सामान जब्त किया जा रहा है. बवेरिया जर्मनी के दक्षिण में स्थित प्रांत है जिसकी सीमा ऑस्ट्रिया से लगी है. अखबार ने गृह मंत्री योआखिम हेरमन का बयान छापते हुए लिखा है, "शरण के लिए आवेदन देने वालों की सीमा पर बनाए गए सेंटर में जांच की जाती है, उनसे पूछा जाता है कि क्या उनके पास धन, कीमती वस्तुएं या कोई कागजात हैं. अगर धनराशि और चीजों का मूल्य 750 यूरो से अधिक हो, तो उसे जमा करा लिया जाता है."

पहले स्विट्जरलैंड और फिर डेनमार्क से भी इस तरह की खबरें आ रहीं थीं. इस सूची में जर्मनी का नाम जुड़ जाने से एक आम धारणा बनने लगी कि जो जर्मनी पहले शरणार्थियों के लिए अपनी बाहें खोल रहा था, वह अब उन पर अत्याचार करने लगा है. सच्चाई क्या है, यह जानने के लिए डॉयचे वेले ने शरणार्थी मामलों से जुड़े कुछ प्रतिनिधियों से सवाल किए.

क्या होगा इस पैसे का?

बवेरिया के रिफ्यूजी काउंसिल के श्टेफान डुनवाल्ड ने हमें बताया कि इसमें कुछ भी नया नहीं है, "ऐसा हमेशा से ही होता रहा है. शरणार्थी अपने साथ जो भी ले कर आते हैं, उसे सरकार जमा करा लेती है और उसकी रसीद बना कर उन्हें दे दी जाती है. इसके बाद उन पर जो भी खर्च आता है, उसे उस पैसे में से काट लिया जाता है. औसतन महीने के 400 यूरो का हिसाब लगाया जाता है. यह जर्मनी का कानून है, इसमें शरणार्थियों पर किसी तरह की रोकटोक का कोई सवाल नहीं उठता."

एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया, "कुछ महीने पहले एक वॉलंटियर ने मुझे फोन कर बताया कि सीरिया से एक परिवार 10,000 यूरो ले कर आया, जो कि जब्त कर लिया गया. अब वे जानना चाहते हैं कि क्या उन्हें वह पैसा वापस मिल सकता है. तो मैंने कहा, नहीं. देखिए, उस परिवार में पांच सदस्य हैं. हर एक पर 400 यूरो महीने का खर्च. यानि पांच महीने बाद वह पैसा खर्च हो चुका होगा."

इसी तरह अखबार ने एक दूसरे प्रांत बाडेन वुर्टेमबर्ग के बारे में लिखा है कि वहां सीमा पर पुलिस 350 यूरो से ज्यादा का सामान जब्त कर रही है. डॉयचे वेले ने प्रांत के समेकन मंत्रालय के प्रवक्ता क्रिस्टॉफ हेरिंग से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया, "हम सभी शरणार्थियों की जांच नहीं करते. लेकिन पुलिस ने जब कुछ लोगों से पूछताछ की तो उन्हें पता चला कि कई लोग काफी पैसा ले कर आए हैं." हेरिंग ने यह भी बताया कि यह धारणा गलत है कि सारा पैसा एक समान सरकारी कोष में चला जाता है, "शरणार्थियों को देश भर में बांटा जाता है और एक तरह से देखा जाए तो उनका पैसा भी उनके साथ ही घूम रहा होता है. मसलन जब शरणार्थी किसी एक राज्य में पहुंच कर बैंक का खाता खोलते हैं, तब इस पैसे का हिसाब उसी खाते में जोड़ दिया जाता है."

सिर्फ पैसा नहीं, गहने भी जब्त

जर्मनी की संघीय सरकार में विदेशी मामलों की कमिश्नर आयदान ओएजगुज ने "बिल्ड" को दिए इंटरव्यू में कहा कि सरकार के पास धन के अलावा गहने जब्त करने का भी हक है क्योंकि उसे भी "निजी संपत्ति" में ही गिना जाएगा. अखबार ने उनका बयान छापा, "शरणार्थियों के अधिकार सामाजिक कल्याण भत्ता से ज्यादा नहीं होंगे." हालांकि बिल्ड में छपी इस खबर को खूब सुर्खियां मिल रही हैं और इसकी हर जगह आलोचना भी हो रही है लेकिन डॉयचे वेले ने जब ओएजगुज की प्रवक्ता से इस बयान पर सफाई मांगी, तो उन्होंने बताया कि यह कोई नया कानून नहीं है, "शायद लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं है." उन्होंने कहा कि जर्मनी के कानून के अनुसार मदद लोगों की जरूरतों के हिसाब से दी जाती है, "शरण के लिए आवेदन देने वाले को तभी मदद राशि मिल सकती है, अगर यह साबित हो कि उसे उसकी जरूरत है."

पिछले साल शुरू हुए शरणार्थी संकट से पहले भी जर्मनी में लोग शरण लेते रहे हैं. शरण देने की प्रक्रिया में साफ तौर पर लिखा है, "शरण का आवेदन देने वाले और उसके साथ रहने वाले परिजनों की कमाई और संपत्ति जब तक पूरी तरह खर्च नहीं हो जाती, तब तक मदद राशि नहीं दी जा सकती, घर के किराए पर भी यही नियम लागू होता है." साथ ही वे प्रति व्यक्ति 350 यूरो से ज्यादा की नकद राशि अपने पास नहीं रख सकते, क्योंकि धन होने का मतलब है कि वे अपना खर्च खुद उठाने की हालत में हैं और ऐसे में सरकार को उन पर खर्च करने की जरूरत नहीं है.