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समाज

क्या हासिल कर लेंगे आईआईटी की फीस बढ़ा कर

प्रभाकर मणि तिवारी
३० सितम्बर २०१९

क्या एमटेक जैसे पाठ्यक्रमों की फीस में भारी वृद्धि से बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की तादाद पर अंकुश लगाना संभव होगा? कम से कम भारतीय तकनीकी संस्थानों (आईआईटी) का संचालन करने वाली काउंसिल तो ऐसा ही मानती है.

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Indien junge Ingenieure auf Jobsuche
प्रतीकात्मक चित्र: इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स का एक रोजगार मेले के लिए कराया गया फोटो शूट. तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

छात्रों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने की लगातार गंभीर होती समस्या से निपटने के लिए भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी) काउंसिल ने अपनी बैठक में कई नए प्रस्तावों को मंजूरी दी है. इसके तहत जहां कमजोर छात्रों को बीटेक की पढ़ाई के पहले साल के बाद प्रदर्शन के आधार पर तीन वर्षीय डिग्री कोर्स का विकल्प दिया जाएगा, वहीं एमटेक के छात्रों की फीस भी बढ़ा कर बीटेक के समान यानी सालाना दो लाख रुपए तक करने का प्रस्ताव है. अब तक यह फीस प्रति सेमेस्टर पांच से दस हजार रुपए तक है. ऐसे छात्रों को हर महीने मिलने वाली साढ़े बारह हजार की फेलोशिप भी बंद कर दी जाएगी. काउंसिल ने हालांकि अपनी दलीलों के जरिए इन फैसलों का बचाव किया है. लेकिन फीस में इस बढ़ोत्तरी से छात्रों में भारी असंतोष है. इससे कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले छात्रों का भविष्य भी अधर में है. दरअसल यह संस्थान चाहते हैं कि अधिक से अधिक छात्र अपनी पूरी फीस का भुगतान करें.

ताजा प्रस्ताव में क्या है

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की अध्यक्षता में हुई बैठक में आईआईटी काउंसिल ने अपनी बैठक में कई नए प्रस्तावों को हरी झंडी दिखाई है. इसके तहत आईआईटी अपने कमजोर छात्रों को तीन साल में ही बीएससी की डिग्री दे देगा. सरकार ने देश के 23 आईआईटी में एमटेक के पाठ्यक्रमों में सुधार के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया था. उस समिति की सिफारिशों के आधार पर नए प्रस्तावों पर फैसला किया गया है.

अब तक आईआईटी में एमटेक की पढ़ाई करने वाले छात्रों को हर सेमेस्टर में पांच से 10 हजार रुपए तक की फीस देनी होती थी. लेकिन अब इसे एक झटके में बढ़ा कर बीटेक पाठ्यक्रम के समकक्ष यानी दो लाख रुपए सालाना करने का प्रस्ताव है. इसके साथ ही ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट) के जरिए दाखिला लेने वाले छात्रों को हर महीने 12,400 रुपए की जो फेलोशिप मिलती थी उसे भी बंद करने का फैसला किया गया है.

आईआईटी, दिल्ली के निदेशक वी रामगोपाल राव इस फैसले को अनिच्छुक छात्रों पर सर्जिकल स्ट्राइक करार देते हैं. अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में राव ने फीस वृद्धि के फैसले का बचाव करते हुए इसकी नौ वजहें गिनाई हैं. उनका कहना है कि छात्र एमटेक की पढ़ाई का इस्तेमाल नौकरियां तलाशने या किसी प्रतियोगी परीक्षा में पास होने के लिए करते हैं. यही वजह है कि इन पाठ्यक्रमों की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्रों की तादाद 50 फीसदी से ज्यादा है. वह कहते हैं कि गेट के जरिए फेलोशिप पाने वाले छात्र या बिना फेलोशिप के सस्ती फीस देकर पढ़ाई करने वाले 50 फीसदी से ज्यादा छात्र नौकरी मिलते ही बीच में एमटेक की पढ़ाई छोड़ देते हैं. यह सरकारी संसाधनों की बर्बादी तो है ही, इससे दूसरे छात्र पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं. उनकी दलील है कि अगर कोई छात्र एमबीए की डिग्री हासिल करने के लिए 20 लाख खर्च कर सकता है तो वह आईआईटी से मास्टर डिग्री के लिए चार लाख जरूर खर्च कर सकता है.

गरीब छात्रों पर असर

आईआईटी काउंसिल ने हालांकि कहा है कि जरूरतमंद छात्रों के फीस माफ करने या छात्रवृत्ति देने जैसी सुविधाएं पहले की तरह जारी रहेंगी. सालाना एक लाख से कम आय वाले छात्रों की फीस पहले की तरह ही माफ रहेगी. इसी तरह पांच लाख से कम सालाना आय वाले परिवार के छात्रों को फीस में दो-तिहाई की छूट दी जाएगी. इसके अलावा बाकी छात्रों को कर्ज उपलब्ध कराए जाएंगे.

काउंसिल ने कहा है कि मौजूदा छात्रों पर फीस में बढ़ोत्तरी लागू नहीं होगी. लेकिन मौजूदा छात्रों ने भी अचानक इतनी बड़ी वृद्धि पर हैरत व नाराजगी जताई है. आईआईटी, खड़गपुर के एक छात्र नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "फीस में एक झटके में इतनी बढ़ोतरी का छात्रों पर असर पड़ना स्वाभाविक है. इससे उच्च-शिक्षा हासिल करने वाले छात्रों का सपना टूट सकता है.” उस छात्र का सवाल है कि कुछ लोगों के बीच में पढ़ाई छोड़ने की सजा तमाम छात्रों को कैसे दी जा सकती है?

कई शिक्षाविदों ने भी आईआईटी काउंसिल के फैसले पर सवाल उठाए हैं. एक इंजीनियरिंग कालेज में प्रोफेसर डॉक्टर सुमन कुमार सेन कहते हैं, "इस मुद्दे पर हड़बड़ी में कोई फैसला नहीं करना चाहिए. बीच में पढ़ाई छोड़ने का बचकाना तर्क देकर फीस में इतनी भारी बढ़ोतरी किसी भी नजरिए से उचित नहीं है. काउंसिल को अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.”

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