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समाज

क्या रिजर्व बैंक के रेट कट से होगा मोदी सरकार को फायदा?

८ फ़रवरी २०१९

भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बार रेपो रेट में कमी कर सबको चौंका दिया. अर्थशास्त्री कहते हैं कि इससे किसी को फायदा नहीं होगा. मगर कुछ नेताओं का मानना है कि इससे सरकार को वोटरों को रिझाने में मदद मिल सकती है.

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Indien - Federal Reserve Bank of India
तस्वीर: Getty Images

भारत के केंद्रीय बैंक,आरबीआई ने 18 महीने में पहली बार ब्याज दरों को कम किया है, जिससे देश के सभी अर्थशास्त्री आश्चर्यचकित हैं. जानकारों का मानना है कि ये चुनाव से ठीक पहले सेंट्रल बैंक की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को मिला तोहफा है.

इस दावे की जांच करें तो पहला सवाल यह है कि आखिर इस रेट कट का मोदी सरकार को फायदा कैसे मिल सकता है. खुद मोदी सरकार के समर्थक, कई कारोबारी और किसान मानते हैं कि इससे बहुत कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि ये बदलाव लाने में रिजर्व बैंक ने काफी देरी कर दी है और मई में होने वाले चुनाव से पहले इसका कुछ ज्यादा असर नहीं होगा.

रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को ऋण देते हैं. रेपो रेट कम होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे. जैसे कि घर या गाड़ी खरीदने के लिए लिया जाने वाला लोन.

पिछले साल से ही रिजर्व बैंक के ऊपर सरकार और कारोबारियों की बात मानते हुए रेपो रेट में कटौती करने के लिए दवाब बना हुआ था. लेकिन इस बार जाकर बैंक के रेपो रेट में एक चौथाई अंकों की कमी की गई है. भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता के बारे में बीते कई महीनों से सवाल उठते रहे हैं, जिसके चलते दिसंबर में गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह मोदी प्रशासन के करीबी माने जाने वाले शक्तिकांत दास लाए गए.

वोटरों को रिझाने के लिए

हाल ही में देश के कई राज्यों में हुए चुनाव से ऐसे संकेत मिले थे कि मोदी सरकार ने ग्रामीण इलाकों में अपनी लोकप्रियता खो दी है. लोगों को लगने लगा था कि सरकार को किसानों की लगातार गिरती आय और नई नौकरियां पैदा करने की कोई चिंता नहीं है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अश्वनी महाजन का मानना है कि इस रेट कट से मोदी सरकार को फायदा होगा क्योंकि इससे आर्थिक विकास होगा और छोटे व्यवसायों को कर्ज देना भी आसान होगा. मगर महाजन कहते हैं, "ये काफी नहीं हैं. नए गवर्नर ने अपनी परीक्षा पास तो कर ली है मगर सिर्फ 50 प्रतिशत से. रेट कट कम से कम आधे अंकों का होना चाहिए था."

Indien Einführung neuer Währung - neue Rupie
तस्वीर: Reuters/R.D. Chowdhuri

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति में छह लोग होते हैं, जिनमें से चार लोगों ने रेट कट के लिए समर्थन दिया था. मगर सभी लोगों ने मानना था कि रिजर्व बैंक की नीति को 'न्यूट्रल' से बदल कर 'कैलिब्रेटेड टाइटनिंग' कर देना चाहिए. 'कैलिब्रेटेड टाइटनिंग' का मतलब होता है कि बचे हुए वित्तीय वर्ष में रेट कट नहीं होगा. रिजर्व बैंक ने गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों के लिए कर्ज देना आसान कर दिया है और बिना गारंटी के कर्ज की सीमा भी बढ़ा दी है, जिससे 12 करोड़ ग्रामीण परिवारों को फायदा हो सकता है.

सरकार ने रेट कट का स्वागत किया क्योंकि इससे ये धारणा बदलने में मदद मिलेगी कि सरकार लोगों की कर्ज की समस्या हल करने के लिए कुछ नहीं कर रही है. जब से सरकार ने देश में नोटबंदी और जीएसटी लागू किया है, तब से कई लोगों में सरकार के प्रति ऐसी नाराजगी है. ये रेट कट बजट के एक ही हफ्ते बाद आया है और इस बार के बजट में भी किसानों और निम्न मध्यम वर्ग के लिए कई योजनाएं पेश की गई हैं. 

बाजार को झटका

ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का मानना था कि इस बार दरों को कम नहीं किया जाएगा. अब अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि ना तो इस कदम के बारे में किसी ने सोचा था ना तो इस कदम से किसी को फायदा होगा. इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के प्रमुख अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत का कहना है, "इस रेट कट से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि इससे निवेश नहीं बढ़ेगा. निर्माण क्षेत्र अभी भी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा है."

Indische Steuerzahler
तस्वीर: picture alliance/dpa/AP Photo/A. Rahi

कुछ अर्थशास्त्री इस पर चिंता जता रहे हैं कि इस कदम से आगे चल कर महंगाई काफी बढ़ सकती है क्योंकि बजट में भी बहुत सा राजस्व प्रोत्साहन दिया गया है. यह भी हो सकता है कि 1 अप्रैल से शुरु हो रहे अगले वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में महंगाई बढ़े. कुछ का मानना है कि बजट के बाद रिजर्व बैंक ने सरकार के दवाब में आकर फिलहाल अर्थव्यवस्था को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन देने वाला कदम उठाया है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम बढ़ती महंगाई के रूप में सामने आएंगे. 

बहुत कम और बहुत देर से

शेयर बाजार विश्लेषकों का कहना है कि इस रेट कट से मोदी सरकार को आने वाले चुनाव में कोई फायदा नहीं मिलेगा. इसका कारण ये है कि बैकों के पास इस रेट कट का फायदा लोगों तक पहुचाने का ज्यादा समय ही नहीं बचा है. बीते विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने तीन राज्यों में हार देखी और आने वाले लोकसभा चुनावों मे भी हो सकता है कि कांग्रेस बाकी पार्टियों के साथ मिल कर बीजेपी को अच्छी ठक्कर दे. इस रेट कट से बाजार में आर्थिक मंदी भी आ सकती है. रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने भी अप्रैल-सितम्बर 2019 का आर्थिक वृद्धि का अपना पूर्वानुमान कम करके 7.2 से 7.4 प्रतिशत की रेंज में कर दिया है. ये पहले 7.5 प्रतिशत था. रेपो रेट कम करने को आर्थिक विकास की दर के धीमे होने का संकेत भी माना जाता है. 

कारोबारियों और किसानों का कहना है कि कर्ज लेने में अब भी बड़ी परेशानी पेश आती है. उत्तर प्रदेश के शामली में रहने वाले एक किसान देशपाल राणा कहते हैं, "खाद और डीजल के दाम बढ़ने की वजह से हमको ज्यादा कर्ज लेना पड़ता है. हम कई बार निजी साहूकारों से कर्ज लेते हैं जो हम से 24 प्रतिशत तक ब्याज लेता है. हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि बैंक हमें कर्ज देने से मना कर देते हैं."

एनआर/आरपी (रॉयटर्स)