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समाज

क्या ऐसे दूर हो जाएगी मध्य प्रदेश की बेरोजगारी

निधि सुरेश
७ फ़रवरी २०१९

कांग्रेस सरकार ने मध्य प्रदेश में अपना चुनावी वादा पूरा करते हुए राज्य वित्त पोषित उद्योगों में 70 प्रतिशत नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित कर दिया है.

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Indien Bhopal Kamal Nath
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/M. Faruqui

मध्य प्रदेश भारत का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है और यहां हर साल करीब 270,000 युवा ग्रैजुएट होने के बाद काम ढ़ूंढने वालों की कतार में शामिल होते रहते हैं. इनमें से करीब 90 हजार के पास तकनीकी कौशल भी होता है. 2018 में एशियाई विकास बैंक, एडीबी ने भोपाल में देश का पहला मल्टी-स्किल पार्क खोलने के लिए 15 करोड़ डालर दिए हैं. जिसका मकसद राज्य में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद देना है. राज्य में और कई प्रतिष्ठित संस्थान भी हैं जैसे आईआईएम, आईआईएफएम और इंजीनियरिंग संस्थान आईआईटी. लेकिन इन सबके बावजूद, मध्य प्रदेश में पिछले दो सालों में बेरोजगारी की समस्या सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ी है. मध्यप्रदेश में बेरोजगारी से जूझ रहे लोगों के एक वॉलंटियर संगठन, बेरोजगार सेना का कहना है कि पिछले दो वर्षों में बेरोजगारी में 53% की वृद्धि हुई है और बेरोजगारी से संबंधित आत्महत्याएं 2005 से 2015 के बीच करीब 20 गुना बढ़े हैं.

कुशल लोगों की कमी

हाल ही में चुनाव जीत कर राज्य में सरकार बनाने वाली कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि बेरोजगारी को कम करने के लिए वे कुछ बड़े कदम उठाएंगे. इसी चुनावी वादे को पूरा करते हुए कमलनाथ के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार ने सभी राज्य वित्त पोषित उद्योगों के लिए 70 प्रतिशत नौकरियों में मध्य प्रदेश के स्थानीय लोगों को लेने का नया नियम बनाया है. पहले ये आंकड़ा 50 प्रतिशत का था.

नई औद्योगिक नीति के बारे में बताते हुए उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव मोहम्मद सुलेम ने बताया, "अगर कोई मध्य प्रदेश में बड़ा या छोटा उद्योग शुरु करना चाहता है तो वह सरकार से मदद ले सकता है. हमने कहा है कि हम उनको प्रशिक्षित और कुशल स्थानीय युवा देंगे. इससे हम मध्य प्रदेश में उद्योग और रोजगार को बढ़ावा देंगे." प्रमुख सचिव ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि ये सिर्फ उन उद्योगों के लिए है जो सरकार से मदद लेते हैं.

उन्होंने माना कि प्रदेश में प्रशिक्षित और कुशल लोगों की भारी कमी है जो कि पास के दूसरे राज्यों से पूरी की जाती है. प्रदेश के कारोबारी भी मानते हैं कि अच्छे कुशल कामगर राज्य में कम ही हैं. भोपाल के रहने वाले श्याम वर्मा का भोपाल और सीहोर में निर्माण क्षेत्र का कारोबार है. उनकी कंपनी विजया एनर्जी इक्विपमेंट में पचास लोग काम करते हैं. वे बताते हैं, "हम अनस्किल्ड कामों के लिए तो स्थानीय लोगों को ही लेते हैं. मगर स्किल्ड कामों के लिए 70 प्रतिशत लोग बाहर से आते हैं. प्रदेश में स्किल्ड लोग बहुत कम मिलते हैं." सरकार ने इस चुनौती से निपटने के लिए सभी जिलों में प्रशिक्षण सत्र और रोजगार मेले लगाने की योजना शुरु की है. ये नई औद्योगिक नीति का हिस्सा होगी, जिसमें युवाओं को प्रशिक्षण के लिए रजिस्टर किया जाएगा और जब तक उनकी नौकरी नहीं लगती तब तक उन्हें स्टाइपेंड भी दिया जाएगा. सरकार ने हर तीन से छह महीने के प्रशिक्षण के लिए करीब 2.5 लाख लोगों को लेने का लक्ष्य रखा है.

Indien Arbeiter in einer Textilfabrik in Rajasthan
तस्वीर: Imago/Westend61

युवाओं ने किया स्वागत

मध्य प्रदेश के युवा इस घोषणा से काफी खुश हैं. भोपाल में रहने वाली 28 साल की पारुल बनर्जी का कहना है, "कई साल से हमारे लोग पढ़ाई करने बाहर जा रहे हैं और वहीं बस जाते हैं. अगर उनके लिए यहां पर काम होगा तो वे बाहर नहीं जाएंगे." 29 साल के वासु चितवडगी का भी मानना है कि इस नीति से लोगों को बड़े शहर जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी और मध्य प्रदेश के रहने वालों के लिए भी रोजगार की संभावना बढ़ेगी.

मगर जानकारों का कहना है कि ये पहली बार नहीं है कि किसी प्रदेश ने ऐसी नीति बनाई है. गुजरात में भी सरकारी मदद लेने वाली कंपनियों और संस्थाओं में 85 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित है, जबकि महाराष्ट्र में 80 प्रतिशत नौकरियां ऐसे लोगों के लिए आरक्षित हैं जो राज्य में 15 साल से ज्यादा समय से रह रहे हों. मानव संसाधन कंपनी टीमलीज सर्विसेज की कार्यकारी उपाध्यक्ष रितुपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं, "ऐसी कोई भी नीति बनाने से पहले सरकारों को स्किल गैप को देखना चाहिए और समझना चाहिए कि कौन सी स्किल की जरुरत है. ऐसी नीतियां तो लोगों को बांटती है और एक गणतंत्र के रूप में भारत के सिद्धांत के खिलाफ है."