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क्या जर्मनी एक और ओलिंपिक की मेजबानी के लिए तैयार है?

२६ अगस्त २०२२

म्यूनिख में हुए यूरोपीय चैंपियनशिप को एक शानदार और सफल आयोजन माना जा रहा है. इस सफल आयोजन से उत्साहित लोग जर्मनी को ओलिंपिक की मेजबानी के लिए दावा पेश करने को कह रहे हैं.

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जर्मनी में ओलिंपिक खेलों का आयोजन करने की मांग हो रही है
1936 में बर्लिन में ओलिंपिक खेल का आयोजन हुआ थातस्वीर: Anke Waelischmiller/SvenSimon/picture alliance

जर्मनी में इस बारे में आम सहमति है कि हाल ही में म्यूनिख में आयोजित यूरोपीय चैंपिनशिप बहुत सफल आयोजन रहा. यहां बेहतरीन खेल ठिकानों में बढ़िया वातावरण था जहां एथलीट्स के शानदार प्रदर्शन देखने को मिले. खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा को दिखाने का भी एक बड़ा मंच मिला क्योंकि चुनिंदा श्रेणी के खेलों में उन्हें इतना बड़ा मंच शायद ही कभी मिल पाता.

बवेरिया राज्य की राजधानी म्यूनिख में इस मल्टीस्पोर्ट इवेंट की खूब चर्चा रही. तो फिर जर्मनी के लिए किसी बड़े आयोजन की बात क्यों ना की जाए? क्यों ना ओलंपिक खेलों की मेजबानी के लिए दावा पेश किया जाये? 

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जर्मनी के लिए कौन से ओलिंपिक खेल अहम होंगे?

सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण हैं- 2036 में आयोजित होने वाले ग्रीष्मकालीन खेल. ये बर्लिन में हुए नाजी ग्रीष्मकालीन खेल और गार्मिश-पार्टेनकिर्चेन में हुए शीतकालीन खेलों के ठीक सौ साल बाद होंगे. अकेले इस वजह से, यह वर्ष खासतौर पर ध्यान केंद्रित करता है. जर्मन इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी यानी आईओसी के अध्यक्ष थॉमस बैक उन लोगों में से हैं जो इस विचार पर काम कर रहे हैं. साल 2024 में ग्रीष्मकालीन खेल पेरिस में होंगे, 2028 में लॉस एंजिलिस में और 2032 में ब्रिस्बेन में होंगे.

दूसरी संभावना 2030 या 2034 में होने वाले शीतकालीन खेलों के लिए हो सकती है. 2026 में शीतकालीन खेलों की पहले ही घोषणा हो चुकी है जो इटली के मिलान और कोर्टिना डी' एम्पेजो शहर में आयोजित होगी. हालांकि 2030 के लिए भी कई उम्मीदवार अपनी दावेदारी जता चुके हैं जिनमें जापान के सैपोरो शहर को सबसे पसंदीदा माना जा रहा है, लेकिन अभी किसी पर भी अंतिम मुहर नहीं लगी है.

जर्मनी में ओलिंपिक खेलों की मेजबानी
जर्मनी ने 1936 में विंटर ओलिंपिक की भई मेजबानी की थीतस्वीर: Getty Images/AFP/Corr

फिर भी, जर्मन ओलंपिक स्पोर्ट्स फेडरेशन के अध्यक्ष थॉमस वीकार्ट के मुताबिक, 2030 में ओलंपिक आयोजित करना जर्मनी के लिए बहुत जल्दबाजी होगी. कुल मिलाकर, जर्मन दावेदारी को धरातल पर उतारने की कई असफल कोशिशों को देखते हुए वो चाहते हैं कि अब पूरी तैयारी के साथ ही बोली लगाई जाए ताकि वह सफल हो सके.

जर्मनी ने 1972 के बाद से ओलंपिक खेलों की मेजबानी क्यों नहीं की?

1986 से लेकर अब तक कुल सात बार दावेदारियां ठोकी जा चुकी हैं लेकिन सफलता नहीं मिली. 2032 में राईन-रूर के लिए लगी बोली सबसे हालिया असफल कोशिश थी.

म्यूनिख में 2022 के शीतकालीन खेलों और हैम्बर्ग में 2024 के ग्रीष्मकालीन खेलों की दावेदारियां जनता के विरोध के कारण खारिज कर दी गईं. लोगों का कहना था कि बड़ी संख्या में आम लोगों को इतने बड़े आयोजनों सो दूर रखा जा रहा है, दावेदारी के बारे में फैसला लेने वाले लोगों को वोटों के जरिए खरीदा जाता है और कभी-कभी एथलीटों के डोपिंग विवाद में आने की वजह से भी लोगों ने विरोध किया. इसके अलावा, सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी रही हैं.

इसके साथ ही, आयोजन पर होने वाला अतिशय खर्च भी एक कारण रहा है जिसे आयोजन करने वाले शहर को ही वहन करना था. जलवायु परिवर्तन को देखते हुए, खासतौर पर शीतकालीन खेलों में पर्यावरण संबंधी कई सवाल भी उभरते हैं.

यूरोपियन चैंपियनशिप और ओलिंपिक खेलों में कितना फर्क है?

आईओसी अपने प्रीमियम आयोजकों के साथ मेजबान शहर के बाहर भी नियम तय करता है. म्यूनिख में, एक ही समय पर नौ अलग-अलग खेलों के लिए कई यूरोपियन चैम्पियंस की मांग की गई थी. ओलिंपिक खेलों की तुलना में हालांकि यह छोटे पैमाने पर था. करीब 4700 एथलीटों ने 1972 में ओलिंपिक खेलों के लिए तैयार की गई सुविधाओं का उपभोग किया. कुछ खेल प्रतिस्पर्धाओं को दर्शक मुफ्त में भी देख सकते हैं.

जर्मनी में ओलिंपिक के आयोजन की मांग उठ रही है
आईओसी के अध्यक्ष थॉमस बाख ने यह बहस छेड़ी है कि जर्मनी को ओलिंपिक की मेजबानी करनी चाहियेतस्वीर: Hannah McKay/Getty Images

यूरोपियन चैंपियनशिप म्यूनिख 2022 के आधिकारिक होमपेज के मुताबिक, इस पर करीब 130 मिलियन यूरो का खर्च आया है. म्यूनिख शहर, बवेरिया राज्य और जर्मन सरकार ने 33-33 मिलियन यूरो का अंशदान किया. बाकी 30 मिलियन यूरो मार्केटिंग, टिकट और प्रसारण अधिकारों के जरिए जुटाए गए. आयोजन की लागत ज्यादा तो थी लेकिन मैनेज की जा सकती थी.

ओलिंपिक और पैरालिंपिक खेलों में यही खर्च अरबों डॉलर या यूरो में होता है. 2020 में टोकियो में हुए ग्रीष्मकालीन खेलों की लागत 15 अरब डॉलर आई थी. राष्ट्रीय आयोजन समिति पर 6.7 बिलियन डॉलर का शुल्क लगाया गया था. टोकियो मेट्रोपोलिटन सरकार ने 6.6 बिलियन डॉलर दिया था जबकि जापान सरकार ने 2.1 बिलियन डॉलर दिया था. आईओसी ने 1.9 बिलियन डॉलर का अंशदान किया था. टोकियो में 11 हजार से ज्यादा एथलीटों ने हिस्सा लिया था और यह संख्या म्यूनिख की तुलना में दोगुनी से भी ज्यादा थी. 

इसके अलावा, खेल सुविधाएं, रहने की व्यस्था भी ओलिंपिक खेलों के लिए हमेशा करनी पड़ती है. यहां तक कि जर्मनी और म्यूनिख में भी नई खेल सुविधाओं का निर्माण करना पड़ेगा, यदि आईओसी जर्मनी की मेजबानी को स्वीकृति दे देती है. पुराने खेल परिसरों से काम नहीं चलेगा. दुनिया भर में खेलों को ध्यान में रखते हुए विकास के ऐसे ढेरों उदाहरण हैं.

उदाहरण के लिए प्योंगयांग जैसे मेजबान शहरों ने बॉब्सले और ल्यूज ट्रैक्स जैसे "सफेद हाथी” बनवाए थे जिनका ओलिंपिक के बाद शायद ही कोई इस्तेमाल हुआ हो.

मेजबान शहरों से क्या अपेक्षाएं होती हैं?

आईओसी, ओलिंपिक चार्टर में ओलिंपिक खेलों से संबंधित सभी नियमों को निर्धारित करता है. आईओसी दावेदारों को बिना किसी अपवाद के इस चार्टर पर "होस्ट सिटी” अनुबंध के साथ हस्ताक्षर कराता है. आलोचकों का कहना है कि ये अनुबंध स्थानीय आयोजन समिति पर ही सारा जोखिम डालते हैं. सारे अधिकार और सारे लाभ आईओसी के पास जाते हैं, जिनमें दुनिया भर के आपूर्तिकर्ताओं और अन्य लोगों से ली जाने वाली लाइसेंसिग फीस भी शामिल है.

म्यूनिख में 1972 के ओलिंपिक खेल हुए थे
आखिरी बार 1972 में जर्मनी ओलिंपिक खेलों का मेजबान बना थातस्वीर: imago/Frinke

आखिर में, सिर्फ आईओसी ही है जो कि ओलिंपिक खेलों को अंतिम समय में भी रद्द कर सकता है, अन्यथा मेजबानों पर नुकसान के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है. खेलों से प्राप्त होने वाला धन खेलों पर ही खर्च होता है. आधारभूत संरचना पर खर्च होने वाला पैसा मेजबान टैक्स और इसी तरह के दूसरे तरीकों से जुटाता है. कई मामलों में आईओसी कर में छूट की भी मांग करता है. यूरोपीयन चैंपियनशिप में आयोजकों को कोई विशेष कर अधिकार नहीं दिए गए थे, यानी जो भी पैसा था, वो म्यूनिख में ही रहा.

आईओसी कैसे धन जुटाता है?

अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति अपनी सारी आमदनी स्पॉन्सरों के जरिए और बड़े खेलों के लिए टीवी अधिकार बेचकर करती है. आईओसी के मुताबिक, 2017 से 2020-2021 के वित्तीय वर्ष तक करीब 7.6 बिलियन डॉलर जुटाये गये थे. इसमें से 60 फीसदी हिस्सा प्रसारण अधिकार बेचकर जुटाए गए थे. इस आमदनी का नब्बे फीसद हिस्सा एथलीट्स और खेल संगठनों पर खर्च होता है जो कि मुख्य रूप से आईओसी पर ही निर्भर होते हैं.