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कोलकाता में साइकिल सत्याग्रह

१२ सितम्बर २०१३

प्रदूषणमुक्त और सस्ती होने की वजह से विदेशों में जहां साइकिल की सवारी को बढ़ावा दिया जा रहा है वहीं पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में पुलिस ने महानगर की प्रमुख सड़कों पर साइकिल पर पाबंदी लगा दी है.

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साइकिल के लिए रैलीतस्वीर: DW

पुलिस की दलील है कि ट्रैफिक जाम की समस्या से निपटने के लिए ऐसा किया गया है. लेकिन इससे नाराज महानगर में साइकिल सत्याग्रह शुरू किया गया है. इन लोगों ने विदेशों की तर्ज पर यहां भी साइकिल चालकों के लिए अलग लेन बनाने की मांग की है. साइकिल चालकों के एक समूह ने एक गैरसरकारी संगठन के साथ मिल कर साइकिल को सड़कों पर एक इज्जतदार और प्रदूषणमुक्त सवारी का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन शुरू किया है.

पुलिस की दलील

कोलकाता पुलिस ने कुछ साल पहले महानगर के कुछ सड़कों पर साइकिल की सवारी पर पाबंदी लगाई थी. उस पाबंदी की आड़ में साइकिल सवारों को लगातार परेशान किया जाता था. लेकिन अब 174 सड़कों और गलियों को इस सूची में शामिल कर लिया गया है. पुलिस का कहना है कि ट्रैफिक जाम की समस्या से निपटने के लिए ऐसा किया गया है. उन इलाकों में साइकिल चलाने पर पुलिस 100 से 300 रुपये तक जुर्माना वसूल रही है. पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, "महानगर में ट्रैफिक ज्यादा होने की वजह से साइकिल सवारों के साथ हादसे का अंदेशा बना रहता है. इसके अलावा इनकी वजह से ट्रैफिक धीमा हो जाता है. इसलिए यह पाबंदी लगाई गई है."

Kalkutta Protest gegen Fahrradverbot
जरूरी सवारी है साइकिलतस्वीर: DW

साइकिल सवारों का विरोध

महानगर के आम लोग इस फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं. साइकिल पर रोजाना 30-40 किलोमीटर की फेरी लगा कर किताबें बेचने वाले कृष्ण लाल मुखर्जी कहते हैं, "इस समय जब चीन, जापान, श्रीलंका, जर्मनी और थाइलैंड जैसे देश साइकिल की सवारी को बढ़ावा दे रहे हैं, यहां इस पर पाबंदी लगाना हस्यास्पद है." इसी तरह साइकिल पर घूम कर घरों में दूध बेचने वाले अनिल यादव को भी पुलिस बार बार परेशान करती है. यादव कहते हैं, "हमसे अक्सर जुर्माना वसूला जाता है. दूध पहुंचाने में देर होने पर इसके खराब होने का खतरा रहता है."

एक अन्य साइकिल चालक अनिल चटर्जी कहते हैं, "महानगर में साइकिल चालकों के लिए अलग लेन बनाया जाना चाहिए. लेकिन ऐसा करने की बजाय पुलिस ने इस पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है." जिन कुछ सड़कों पर साइकिल चलाने पर पाबंदी नहीं है वहां भी सुबह सात से लेकर रात के 11 बजे के बीच कोई साइकिल सवार नहीं गुजर सकता.

अब नेशनल एलायंस आफ पीपुल्स मूवमेंट नाम के संगठन के बैनर तले महानगर के साइकिल प्रेमियों ने इस फैसले के खिलाफ साइकिल सत्याग्रह शुरू किया है. इसके तहत महानगर की प्रमुख सड़क पर साइकिल लेकर रैली निकाली जा चुकी है. जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक पत्र लिख कर यह पाबंदी वापस लेने की मांग की है, "सरकार का यह कदम गरीबों और कामकाजी तबके के खिलाफ है. इस सस्ती व प्रदूषणरहित सवारी को बढ़ावा देने की बजाय सरकार ने इस पर पाबंदी लगा कर उचित नहीं किया है." सत्याग्रह में शामिल संगठन राइड टू ब्रेथ के गौतम श्रॉफ कहते हैं, "हमने तमाम संबंधित अधिकारियों के पास इस फैसले के खिलाफ अर्जी दी है. लेकिन कहीं से कोई सकरात्मक जवाब नहीं मिला है."

Kalkutta Protest gegen Fahrradverbot
साइकिल का समर्थनतस्वीर: DW

कानून का उल्लंघन

साइकिल की सवारी पर पाबंदी केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के 2006 में बने उस कानून का भी उल्लंघन है जिसमें परिवहन के मोटरविहीन साधनों को बढ़ावा देने की बात कही गई है. मेधा पाटकर का कहना है कि इस फैसले से कामकाजी तबके की आजीविका पर सवाल खड़े हो जाएंगे. ईंधन की लगातार बढ़ती कीमतों की वजह से परिवहन के साधन महंगे हो रहे हैं. ऐसे में साइकिल ही गरीबों के परिवहन का प्रमुख साधन है. इससे लाखों लोगों की रोजी रोटी खतरे में पड़ जाएगी.

केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक कोलकाता अकेला ऐसा महानगर है जहां कारों (8 फीसदी) के मुकाबले साइकिल (11 फीसदी) के फेरे ज्यादा लगते हैं. महानगर में रोजाना साइकिल के 25 लाख फेरे लगते हैं. कोलकाता में निजी कारों की तादाद भी देश के दूसरे महानगरों के मुकाबले कम है. आंदोलनकारियों का कहना है कि महानगर और आसपास के इलाकों में रहने वाले लाखों लोग रोजी रोटी के लिए साइकिल पर निर्भर हैं. वे लोग दूर दराज से साइकिल पर काम करने महानगर आते हैं. इसलिए साइकिल पर पाबंदी लगाने की बजाय सरकार को तमाम प्रमुख सड़कों पर एक अलग लेन बनानी चाहिए.

पुलिस फिलहाल अपना फैसला वापस लेने के मूड में नहीं है और दूसरी ओर आंदोलनकारी भी साइकिल की सवारी छोड़ने के मूड में नहीं नजर आते.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: ए जमाल

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