कैसे निपटें इबोला से
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों की मानें तो मार्च 2014 से सामने आना शुरु हुए इबोला संक्रमण के मामलों में करीब साढ़े चार हजार लोगों की जान जा चुकी है. पश्चिमी अफ्रीका से फैली इस बीमारी की अब तक कोई दवा नहीं बनी है.
फिलहाल इबोला की रोकथाम के लिए कई तरह के टीकों पर काम चल रहा है. कनाडा की पब्लिक हेल्थ एजेंसी ने तो अपनी दवा का परीक्षण इंसानों पर करना शुरु कर दिया है. एक रुसी प्रोजेक्ट भी ट्रायल के इस चरण तक पहुंचने वाला है.
जीएसके ने कुछ वॉलंटीयर्स को यह टीका दिया है. यह लोग अफ्रीका, अमेरिका और ब्रिटेन में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के साथ जुड़े हुए हैं.
यूरोप में ब्रसेल्स के बाहर स्थित जीएसके कंपनी की वैक्सीन रिसर्च लैब में काफी तेजी से इबोला के लिए वैक्सीन तैयार करने पर काम हो रहा है. जिन परीक्षणों को पूरा करने में आमतौर पर 10 साल लग जाते हैं उन्हें 12 महीनों के अंदर पूरा करने की कोशिशें हो रही हैं.
अब तक भारत इबोला से बचा हुआ है. मगर इबोला संक्रमित देशों से लोगों की आवाजाही पर कोई रोक ना होने के कारण बीमारी के खतरे को खारिज नहीं किया जा सकता. भारत में इसके संक्रमण के खतरे को देखते हुए रोकथाम के उपायों पर चर्चा हो रही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन नाइजीरिया को इबोला मुक्त देश घोषित करने वाला है. पिछले छह हफ्तों में यहां इबोला संक्रमण का एक भी नया मामला सामने नहीं आया है. 17 करोड़ से ज्यादा आबादी के साथ नाइजीरिया पूरे अफ्रीका में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है.
साल 1976 में प्रोफेसर पीटर पीयोट ने इबोला वायरस की पहचान की थी. उन्होंने चिंता जताई है कि संक्रमण को खत्म होने में अगला साल लग सकता है.