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कैसे काम करती हैं हमारी इंद्रियां

३ मार्च २०१६

हमारी अनुभूति, इस जटिल दुनिया में आगे बढ़ने के लिए हमें गाइड करती रहती है, आखिर ये होता कैसे है? यह बात कुछ समय से थुबिंगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को भी परेशान कर रही है.

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Indien Multiple Sklerose
तस्वीर: Indian Institute of Technology

हम चीजों को देखते हैं, बाधाओं से बचते हैं, आवाज सुनते हैं, खतरे को भांपते हैं. अंधरे में चीजों को छूकर महसूस करते हैं कि वह क्या है. सड़क पर भी हर दिन हमारे सामने कई बाधाएं आती हैं, हम उनका आकलन करते हैं और पुराने अनुभवों के आधार पर फैसले लेते हैं. माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रोफेसर हाइनरिष बुल्टहोफ इसी प्रक्रिया को समझना चाहते हैं. वह कहते हैं, "मेरा लक्ष्य यह समझना है कि हम किसी बात को कैसे महसूस करते हैं, जब हम कहीं आते जाते हैं, ड्राइव करते हैं, उड़ान भरते हैं, साइकिल चलाते हैं, तो हम महसूस करते हैं कि हम दुनिया में आगे बढ़ रहे हैं, हमारी बहुत सारी इंद्रियां हैं जो हमें आगे बढ़ने का अहसास कराती हैं. और मैं जानना चाहता हूं कि ये इंद्रियां किस तरह एक दूसरे के साथ काम करती हैं."

कैसे काम करती हैं इंद्रियां

मोशन सिमुलेटर में वैज्ञानिक दुनिया को सर पर खड़ा कर देते हैं. मकसद होता है दृष्टि और संतुलन को एक दूसरे से अलग कर देना ताकि दिमागी इंपल्स की प्रक्रिया को समझा जा सके. टेस्ट में शामिल इंसान एक सीधी सड़क देखता है, लेकिन कॉकपिट रोलर कोस्टर की तरह भाग रहा है. प्रोफेसर बुल्टहोफ कहते हैं, "सिमुलेटर की मदद से आप अलग अलग इंद्रियों को विभिन्न तरीके से कंट्रोल कर सकते हैं. आप इसे पूरी तरह अनुकूल बना सकते हैं. इसका मतलब है कि आपके वेस्टिबुलर और विजुअल सिस्टम में एक साथ सूचना मिलेगी. या हम इसे अलग कर सकते हैं. और प्रतिक्रिया से जान सकते हैं कि मस्तिष्क सूचना को कैसे जोड़ता है कि मोशन के बारे में बेहतरीन सूचना मिल सके."

हर नया परीक्षण हमें इस बात की और जानकारी देता है कि हमारा दिमाग हमारी दुनिया की व्याख्या कैसे करता है. कभी कभी संतुलन की भावना गलत सूचना देती है. वैसे ही जैसे जब कोई पाइलट बादलों के बीच उड़ान भरता तो यात्रा असहज हो जाती है. या टूटी सड़क पर चल रही गाड़ी में बैठा व्यक्ति परेशान होता है. वेस्टिबुलर ऑर्गन में कुछ कमियां होती हैं और वह पर्फेक्ट नहीं होता है. और कुछ मामलों में तो यह भ्रम भी पैदा करता है. यदि कोई पाइलट उड़ते हुए बादल में घुसता है तो कुछ जाने माने भ्रम हैं कि हमें ज्यादा देर तक वेस्टिबुलर सिस्टम पर भरोसा नहीं करना चाहिए.

क्या है भ्रम

बेटी मोलर जानना चाहती हैं कि अनुभूति और भावनाएं किस तरह से जुड़ी होती हैं. वे साइबर हेल्मेट और डाटा ग्लोव्स के साथ नई दुनिया में प्रवेश करती हैं. क्या इंद्रीय भ्रम भरे हुए जहाज में ठीकठाक होने का अहसास बढ़ा सकता है? इन साइबर उड़ानों में सीटों की दूरियां बदली जा सकती हैं, घटाई और बढ़ाई जा सकती हैं.

सुख की अनुभूति इतनी बढ़ाई जा सकती है कि वह असली अनुभव बन जाए. टेस्ट पैसेंजर सिर्फ अंगुली की मदद से केबिन का लेआउट बदल सकते हैं. शरीर में एक अलग अहसास के साथ पैसेंजर साइबर प्लेन में कहीं भी आ जा सकता है.

अब चाहे वर्चुअल रियलिटी हो या एक दूसरे से अलग की हुई इंद्रियां, इसमें कोई शक नहीं कि साइबर स्पेस में जबरदस्त परीक्षण हो रहे हैं.

ओएसजे/एमजे