1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

कुवैत में क्यों बैन हुई चार हजार किताबें

२४ सितम्बर २०१८

खाड़ी के देश कुवैत में बीते पांच साल में चार हजार से ज्यादा किताबों पर प्रतिबंध लगाया गया है. नोबेल पुरस्कार विजेता गाब्रिएल गार्सिया मार्केज जैसे लेखकों की किताबें भी बैन हो रही हैं. आखिर क्यों?

https://p.dw.com/p/35PLx
Poster des kolumbianischen Autors Gabriel Garcia Marquez in Moskau
तस्वीर: picture-alliance/dpa

2014 में जब कोलंबिया के महान लेखक मार्केज का निधन हुआ था तो कुवैत की प्रेस ने उन्हें साहित्य का एक "दिग्गज" करार दिया था. लेकिन उसके बाद मार्केज भी उन लेखकों में शामिल हो गए जिनकी किताबों पर कुवैत में बढ़ती सेंसरशिप के तहत बैन लगाया गया है.

स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों में कहा गया है कि पिछले पांच साल के दौरान कुवैत में चार हजार से ज्यादा किताबें प्रतिबंधित की गई हैं जिनमें मार्केज की "वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सोलिट्यूड" और विक्टर ह्यूगो की "द हंचबैक ऑफ नोट्रेडैम" भी शामिल हैं.

इस सेंसरशिप के खिलाफ दर्जनों लेखकों ने पिछले दिनों कुवैत में विरोध प्रदर्शन किए. कुवैती उपन्यासकार मायस अल-ओथमान भी बैन होने वाले लेखकों में शामिल हैं. 2015 में उनका उपन्यास "द वार्ट" प्रकाशित होने के बाद उन पर सेंसरशिप लागू की गई. यह उपन्यास कुवैत पर 1990-1991 में इराकी कब्जे के दौरान बलात्कार का शिकार हुई एक महिला की कहानी है. ओथमान कहती हैं, "किसी किताब को बैन करना घोर अज्ञानता और .. क्रूरता को दिखाता है. यह दुर्भाग्य की बात है कि ऐसा अब बार बार हो रहा है."

नवंबर में कुवैत में होने वाले अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में शामिल किताबों को पहले एक सेंसरशिप कमेटी देखेगी, उसी के बाद फैसला होगा कि उन्हें मेले में लाया जाएगा या नहीं. यह कमेटी "प्रेस और प्रकाशन" से जुड़े 2006 के एक कानून के तहत काम करती है. इस कानून में साहित्य और पत्रकारिता संबंधी सामग्री के प्रकाशकों के लिए कोई गलती होने पर कड़ी सजाओं का प्रावधान है. इस्लाम या फिर कुवैती न्यायपालिका का अपमान करने, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने, "अशांति भड़काने" और "अनैतिक काम" करने पर ये सजाएं हो सकती हैं.

कुवैती सूचना मंत्रालय में एक वरिष्ठ अधिकारी मोहम्मद अल अवाश सेंसरशिप कमेटी का बचाव करते हैं. वह कहते हैं, "रोक लगाना एक अपवाद है जबकि अनुमति देना एक नियम है." लेकिन आलोचकों का कहना है कि जिस कुवैत में कभी प्रेस और अभिव्यक्ति की आजादी को बाकी अरब देशों के मुकाबले बेहतर माना जाता था, वहां अब सेंसरशिप की बाढ़ आ रही है. कुवैत 1970 और 1980 के दशक में एक पब्लिशिंग हब था.

पुरानी किताबों की स्कैनिंग की मुश्किलें

रुढ़िवादी और कबायली नेताओं का संसद में दबदबा कायम हो रहा है और इसीलिए समाज का मूड बदलता हुआ दिख रहा है. कुवैती लेखक संघ के महासचिव तलाल अल-रामिदी कहते हैं, "अच्छे और नैतिक व्यवहार के विपरीत जो भी सामग्री है उसे बैन का आधार बनाया जा रहा है. लेकिन यह अपने आप में बहुत अस्पष्ट आधार है."

रामिदी कहते हैं कि प्रतिबंधित किताबें बेचने के लिए किसी के खिलाफ अब तक मुकदमा नहीं दायर किया गया है लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं. लेखिका बौथैना अल अस्सा ने इसी महीने ट्वीट किया, "इस सेंसरशिप की वजह सिर्फ अज्ञानता है."

लेखक अकील यूसेफ अयदान की दो किताबें बैन हो चुकी हैं. वह कहते हैं, "यह सांस्कृतिक संस्थानों पर धार्मिक हलकों का बढ़ता प्रभाव है." वह बताते हैं कि सिर्फ एक शब्द, एक तस्वीर के लिए भी किताब बैन की जा रही हैं.

एके/एनआर (एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी