राज्य वन विभाग की ताजा रिपोर्ट कहती है कि पूरे उत्तराखंड में पिछले 5 साल में 62% से अधिक बार किंग कोबरा-साइटिंग केवल नैनीताल जिले में ही हुई है.
किंग कोबरा भारतीय का नेशनल रेप्टाइल है और यह दुनिया का सबसे बड़ा ज़हरीला सांस है.
भारत का नेशनल रेप्टाइल किंग कोबरा देश के कई हिस्सों में पाया जाता है. इनमें रेन-फॉरेस्ट एरिया जैसे भारत के पूर्वी और पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्वी राज्य, सुंदरबन और अंडमान के कुछ इलाके आते हैं. इसके अलावा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के कुछ जिलों में भी किंग कोबरा यदा-कदा देखा जाता है लेकिन पिछले कुछ सालों में राज्य के एक खास हिस्से में इसकी मौजूदगी अधिक रिकॉर्ड हुई है.
राज्य के वन विभाग की रिसर्च विंग ने एक रिपोर्ट तैयार की है जिससे ये संकेत मिलते हैं कि उत्तराखंड का नैनीताल जिला किंग कोबरा का गढ़ बन रहा है. रिपोर्ट दावा करती है कि उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से रेन फॉरेस्ट वाले परंपरागत हैबीटाट के बाहर "नैनीताल में संभवत: किंग कोबरा की सबसे अधिक संख्या है.”
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मशहूर, लेकिन खतरे में
जर्मनी की दवा कंपनियों के लोगो और विश्व स्वास्थ्य संगठन के झंडे पर बना सांप का यह निशान दुनिया में सबसे प्रसिद्ध है. यह असल में एस्कुलाप्नाटेर सांप है, जो जहरीला नहीं होता. फिर भी इनका आवास सिकुड़ने और गैर कानूनी व्यापार बढ़ने के कारण इनके अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है.
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जहरीले, मगर काम के
जहरीले सांपों से कौन नहीं डरता. लेकिन सांप का जहर बहुत काम की चीज है. जर्मनी में हैम्बर्ग के पास उटरसन में यूरोप का सबसे बड़ा स्नेक फार्म है. यहां रोजाना करीब 1,500 सांपों का जहर निकाला जाता है. सांप का जहर बहुत कम मात्रा में दवा का काम करता है. इससे हाइपरटेंशन का इलाज होता है और सांप के डसने का तोड़ यानि एंटीडोट भी उसका जहर ही है.
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नई खोज, नए खतरे
सांपों की नई नई किस्मों की खोज होती रहती है. जैसे कि इटली के पियमॉन्ते इलाके की अल्पाइन घाटियों में मिला "वाइपेरा वाल्सर" जो इस तस्वीर के वाइपर जैसा ही दिखता है. यह खुले घास के मैदानों में रहता है. इसके जैसे सांप पिछली सदी में ही विलुप्त हो चुके थे, यह खोज एक विलुप्त प्रजाति के वापस आने जैसी है.
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टाइगर पायथन का आक्रमण
एवरग्लेड्स नेशनल पार्क में बर्मा के अजगरों की किस्म का आतंक मच गया था. ऐसे की अजगरों को अमीर लोगों ने पालतू बना कर रखा था और उनके पिंजरों से निकल कर इन अजगरों ने जानवरों और इंसानों दोनों को डराया. इन्हें जान से मारने के लिए इनाम रखा गया. शिकारियों ने केवल एक महीने में 68 अजगरों को मार डाला.
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बीन पर नचाना
भारत को सपेरों का देश माने जाने की मान्यता भी सदियों पुरानी है. बीन की धुन पर सांपों को नचाते सपेरों की नियंत्रण देख पश्चिमी देश हैरत में पड़ते रहे. लेकिन सच तो ये है कि सांप बीन की धुन पर नहीं नाचता बल्कि अंधेरे डलिए से बाहर निकाला गया सांप दिन के प्रकाश में भी कुछ ठीक से देश नहीं पाता. बीन की हरकत को कोई दुश्मन समझ वह उस पर हमल करने की ताक में उसी के साथ साथ हिलता है.
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धार्मिक मान्यताएं भी
डर अपनी जगह है लेकिन हिंदू मान्यता में सांप को पवित्र भी माना जाता है. कहीं वर्षा ऋतु और उर्वरता का प्रतीक तो कहीं पूर्वजों की आत्मा तक का प्रतीक माना जाता है. भारत की कई पौराणिक कथाओं में इच्छाधारी नाग-नागिनों का जिक्र मिलता है, यानि ऐसे इंसान जिनके पास सांप जैसी शक्तियां थीं. और जो जब चाहे दोनों में से कोई भी रूप ले सकते थे.
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अजगर को समेटे
यूरोप में कई प्रेमी जोड़े सांपों और अजगरों को टेरेरियम में रखते हैं. इन्हें रखने के लिए फर्श को गर्म करने, प्रकाश की व्यवस्था के अलावा उसकी भूख मिटाने के लिए जिंदा जीव भी उपलब्ध कराने होते हैं. चीन के बिंगजे परिवार ने तो अजगर को अपने साथ ही रखा हुआ है. चार मीटर का यह अजगर पूरे घर में कहीं भी घूमता है.
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स्नेक सूप की मांग
चीन के खानपान में सांपों की बड़ी मांग है, जहां वे विशेष मेनू का हिस्सा होते हैं. तो वहीं हांगकांग में सांप का सूप खूब पसंद किया जाता है. मान्यता है कि सांप में कई घावों को भरने के विशेष गुण होते हैं, जिससे शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है और बीमारियां दूर होती हैं. अब इन गुणों के प्रचार के बाद मांग क्यों ना बढ़े.
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सांप से मालिश करवाएंगे?
मांसपेशियों को दुरुस्त रखने और उनकी जकड़न में आराम दिलाने के लिए मसाज या मालिश के फायदे जगजाहिर हैं. लेकिन एक सांप अगर आपकी मसाज करे तो क्या आप करवाएंगे? इंडोनेशिया में कुछ खास वेलनेस प्रोग्रामों में सांपों का इस्तेमाल किया जाता है. जैसे बाली की इस तस्वीर में अजगर से पीठ की मसाज करवाई जा रही है.
रिपोर्ट: ओलेग क्योडिंग-सुअरम्युलेन/आरपी
नैनीताल में बढ़ती मौजूदगी के प्रमाण!
उत्तराखंड के पांच जिलों में किंग कोबरा के होने के सुबूत मिले हैं. इनमें हर जिले में किंग कोबरा की साइटिंग के आंकड़ों को इस रिपोर्ट में इकट्ठा किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 से जुलाई 2020 के बीच पूरे राज्य में किंग कोबरा कुल 132 बार देखा गया. इनमें से 83 बार किंग कोबरा की मौजूदगी नैनीताल जिले में ही रिकॉर्ड की गई जबकि देहरादून में किंग कोबरा को 32 बार देखा गया. इसके अलावा पौड़ी जिले में 12 बार किंग कोबरा दिखा जबकि उत्तरकाशी में सिर्फ 3 और हरिद्वार में तो 2 बार ही इसकी साइटिंग रिकॉर्ड हुई.
वन विभाग के शोधकर्ता हैरान हैं कि आखिर नैनीताल जिले में ही किंग कोबरा की इतनी मौजूदगी कैसे बढ़ रही है. खासतौर से तब जबकि किंग कोबरा एक "कोल्ड ब्लडेड” प्राणी है जिसके लिए वातावरण का बदलता तापमान दुश्वारी पैदा करता है.
इस शोध में कहा गया है कि किंग कोबरा का घोंसला - यह दुनिया का एकमात्र सर्प है जो अंडे देने के लिए घोंसला बनाता है - उत्तराखंड में पहली बार साल 2006 में नैनीताल जिले की भवाली फॉरेस्ट रेंज में दिखा. फिर साल 2012 में मुक्तेश्वर में 2303 मीटर की ऊंचाई में इसका घोंसला मिला. इतनी ऊंचाई पर किंग कोबरा का होना दुनिया भर में एक रिकॉर्ड है.
पूरे उत्तराखंड राज्य में नैनीताल जिले में किंग कोबरा की मौजूदगी के सबसे अधिक सुबूत मिले हैं
इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले रिसर्च फेलो ज्योति प्रकाश कहते हैं, "पिछले 5 साल में देहरादून और हरिद्वार जैसे बड़े जिलों में किंग कोबरा की रिकॉर्डेड साइट को जोड़ भी दें, तो नैनीताल में इससे ढाई गुना अधिक बार किंग कोबरा देखा गया है. यहां हमने इसके कई घोंसले भी लोकेट किए हैं.”
नैनीताल के मनोरा, भवाली और नैना फॉरेस्ट रेंज में किंग कोबरा आसानी से दिख रहा है. रिपोर्ट कहती है, "मनोरा और भवाली रेंज, जहां किंग कोबरा सबसे अधिक बार देखा गया, वहां तापमान 1.5 डिग्री से 24 डिग्री के बीच बदलता है. कोल्ड ब्लडेड किंग कोबरा का इतने बदलते तापमान पर जीवित रहना और इतनी ऊंचाई (2303 मीटर) पर उसका घोंसला पाया जाना एक गहन शोध का विषय है.”
ज्योति प्रकाश ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुक्तेश्वर में करीब 2200 मीटर की ऊंचाई है, जबकि जिम कॉर्बेट पॉर्क का तराई वाला इलाका 300 से 400 मीटर पर है. एक ही जिले में इतनी अलग अलग ऊंचाई पर किंग कोबरा की अच्छी साइटिंग होना हमें हैरान करता है. यह किंग कोबरा की अनुकूलन क्षमता का सुबूत तो है लेकिन इस पर और गंभीर रिसर्च करने की जरूरत है.”
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फैक्ट्रियां
इंडोनेशिया में कई ऐसी फैक्ट्रियां हैं जहां सांपों का चमड़ा तैयार होता है जबकि कई लोग अपने घरों में भी यह काम करते हैं.
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ग्लैमरस
पश्चिमी देशों में इस चमड़े से बने बैग, जैकेट और जूते लोग बड़े शौक से पहनते हैं और इन्हें काफी ग्लैमरस माना जाता है.
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ऐसे होता है काम
जिन फैक्ट्रियों में यह चमड़ा तैयार होता है, वहां का नजारा बिल्कुल ग्लैमरस नहीं कहा जा सकता है.
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सबसे बड़ा निर्यातक
इंडोनेशिया सांप के चमड़े का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है. उसका कहना है कि सांपों को मानवीय तरीके से ब्रीड किया जा रहा है, लेकिन हकीकत कुछ और है.
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भारी मांग
सांप के चमड़े की मांग को देखते हुए इंडोनेशिया में बड़े पैमाने पर उनका शिकार होता है.
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सांपों की बलि
यहां हर हफ्ते हजारों की संख्या में सांप मारे जाते है ताकि उनसे चमड़ा तैयार किया जा सके.
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तरीका
सांपों पहले मार कर पानी मे भिगोया जाता है और फिर उनका चमड़ा निकाल कर धूप में सुखाया जाता है. कई बार उन्हें बड़े ओवन में भी रख कर सुखाया जाता है
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बेबस सांप
सांपों को मार कर उनका चमड़ा उतारा जाता है जिसमें फिर एक लोहे की एक रोड डाली जाती है, ताकि उनकी त्वचा को ठीक से फैलाया जा सके.
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मांग
इस तरह सांपों का चमड़ा तैयार किए जाने से पता चलता है कि इसकी कितनी मांग है.
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महंगा दाम
इस चमड़े से बनी चीजें पश्चिमी देशों में ऊंचे दामों पर बिकती हैं. लेकिन इसे बनाने वालों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती.
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सांपों का कारोबार
इस चमड़े से बनी चीजें पश्चिम देशों में चार हजार डॉलर तक की कीमत में बिकती हैं. लेकिन इसे जिस तरह तैयार किया जा रहा है, वो जरूर सोचने को मजबूर करता है.
किंग कोबरा: एक शीर्ष परभक्षी
भोजन श्रंखला में किंग कोबरा एपेक्स प्रीडेटर यानी सबसे ऊपर है. प्रकृति में जहां अन्य सांप चूहों को खाकर उनकी संख्या नियंत्रित करते हैं, वहीं किंग कोबरा का भोजन सिर्फ सांप हैं. यानी वह प्रकृति में सांपों की संख्या को नियंत्रित करता है. विरले मौकों पर ही किंग कोबरा सांप के अलावा छिपकली या गिरगिट जैसे अन्य जीवों को खाता है. इस तरह से यह धरती पर सांपों की संख्या नियंत्रित करने में एक रोल अदा करता है.
किंग कोबरा भारत में वन्य जीव कानून के तहत संरक्षित प्राणियों में है और इसकी कई खासियत हैं, जो इसे विश्व भर के बाकी सर्पों से अलग करती हैं. आकार के हिसाब से यह दुनिया का सबसे बड़ा विषैला सांप है, जिसकी लंबाई 18 फुट तक हो सकती है. यह दुनिया में सांपों की अकेली प्रजाति है जिसमें मादा अंडे देने से पहले अपना घोंसला बनाती है.
अंडों से बच्चे निकलने में 80 से 100 दिन लगते हैं और तब तक मादा किंग कोबरा अपने अंडों की तत्परता से रक्षा रहती है. जानकार कहते हैं कि इस दौरान वह तकरीबन 2 महीने तक भूखी ही रहती है. यह दिलचस्प है कि अंडों से बच्चे निकलने से ठीक पहले मादा किंग कोबरा हमेशा वह जगह छोड़कर चली जाती है.
जानकार कहते हैं कि इस विषय पर गहन शोध की ज़रूरत है कि किंग कोबरा की नैनीताल में इतनी साइटिंग कैसे हो रही है
विराट और शांतिप्रिय प्राणी
किंग कोबरा एक बेहद शांतिप्रिय या जानकारों की भाषा में नॉन-कॉम्बेटिव (आक्रमण न करने वाला) सांप है. भारत में सांपों की कई जहरीली प्रजातियां हैं लेकिन चार ही सांप हैं, जिनके काटने से अधिकांश मौतें होती हैं. ये हैं रसेल्स वाइपर, सॉ स्केल वाइपर, क्रेट और इंडियन कोबरा. इन चारों को "बिग-फोर” कहा जाता है. अपने शांतिप्रिय स्वभाव के कारण ही बहुत विषैला होने के बावजूद किंग कोबरा "बिग-फोर” में नहीं गिना जाता.
जहां सांपों की ज्यादातर प्रजातियां इंसानी बसावट के आसपास रहती हैं और कई बार लोगों के घरों में भी घुस जाती हैं, वहीं किंग कोबरा जंगल में रहना ही पसंद करता है और इंसान से उसका सामना कम ही होता है. इसके काटने की घटनाएं पूरे देश में बहुत कम हैं. उत्तराखंड वन विभाग की यह रिपोर्ट किंग कोबरा के स्वभाव का प्रमाण है. इसके मुताबिक राज्य में अब तक किंग कोबरा के काटने की एक भी घटना दर्ज नहीं हुई है.
किंग कोबरा पर जानकारों की राय
भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के पीएचडी स्कॉलर जिज्ञासु डोलिया, जो पिछले 10 साल से किंग कोबरा पर इसी क्षेत्र में रिसर्च कर रहे हैं, कहते हैं कि नैनीताल जिला राज्य के सबसे अधिक वनाच्छादित जिलों में है. इसलिए यह इलाका किंग कोबरा के लिए एक बेहतर पनाहगार बनाता है. लेकिन डोलिया इस रिपोर्ट के आधार पर किंग कोबरा की संख्या को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं जाना चाहते.
किंग कोबरा अकेला सांप है जहां मादा अंडे देने से पहले अपना घोंसला बनाती है और अंडों की करीब 3 महीने तक रखवाली करती है.
उनके मुताबिक, "एक बात हमें समझनी होगी कि हमारे पास किंग कोबरा की गिनती का बहुत सटीक तरीका नहीं है, जैसे कि टाइगर की गिनती होती है, जहां हम काफी हद तक सही संख्या पता कर सकते हैं. इसलिए नंबर को लेकर स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता." नैनीताल जिला ऐसा क्षेत्र है, जहां किंग कोबरा बार-बार देखा जाता है और उसका घोंसला भी यहां जंगल में हर साल बना मिलता है.
यह भी सच है कि राज्य की बाकी जगहों की तुलना में नैनीताल क्षेत्र में लोगों में अधिक जागरूकता है, इसलिए वह किंग कोबरा की साइटिंग की रिपोर्टिंग भी करते हैं. जिज्ञासु डोलिया कहते हैं, "असल में नैनीताल का फॉरेस्ट कवर, यहां होने वाली बारिश और भौगोलिक स्थिति से किंग कोबरा के लिए एक अनुकूल मिश्रण तैयार होता है.”
नैनीताल जिले में किंग कोबरा के जो भी घोंसले मिले, वे चीड़ की नुकीली पत्तियों से बने हैं जबकि अन्य जगहों में इसके घोंसले बांस द्वारा बने मिले हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि चीड़ की पत्तियां आसानी से नष्ट नहीं होती, इसलिए यह मादा द्वारा घोंसले के लिए इन पत्तियों के चुनाव की वजह हो सकती है लेकिन जिज्ञासु नहीं मानते की मादा चीड़ को विशेष रूप से ढूंढकर ही उसकी पत्तियों से घोंसला बनाती है, "हमारा अनुभव है कि जो भी उपयुक्त चीज मिलेगी, मादा उससे अपना घोंसला बनाएगी. इस क्षेत्र में चीड़ और बांज अच्छी खासी संख्या में है और वह अंडो के लिए तापमान नियंत्रित करने में काफी मददगार है, इसलिए मादा किंग कोबरा घोंसला बनाने में उसका प्रयोग करती है.”
इन दोनों जानवरों के कारण हर साल दुनिया भर में महज दस लोगों की जान जाती है. इसमें कोई शक नहीं है कि भेड़िये और शार्क की कुछ प्रजातियां आपकी जान भी ले सकती हैं. लेकिन वास्तव में बहुत कम लोग ही इनका शिकार बनते हैं. आपकी जान को इनसे ज्यादा खतरा तो घर पर रखे टोस्टर से हो सकता है.
विश्व के सबसे खतरनाक जीव
10. शेर और हाथी
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 100. जंगल का राजा शेर आपको अपना शिकार बना ले, यह कल्पना के परे नहीं है. लेकिन अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि एक हाथी द्वारा आपके मारे जाने की भी उतनी ही संभावना है. हाथी, जो कि भूमि पर रहने वाला सबसे बड़ा जानवर है, काफी आक्रामक और खतरनाक हो सकता है.
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9. दरियाई घोड़ा
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 500. दरियाई घोड़े शाकाहारी होते हैं. लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं कि वे खतरनाक नहीं होते. वे काफी आक्रामक होते हैं और अपने इलाके में किसी को प्रवेश करता देख उसको मारने से पीछे नहीं रहते.
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8. मगरमच्छ
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 1,000. मगरमच्छ जितने डरावने दिखते हैं, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक भी होते हैं. वे मांसाहारी होते हैं और कभी-कभी तो खुद से बड़े जीवों का भी शिकार करते हैं जैसे कि छोटे दरियाई घोड़े और जंगली भैंस. खारे पानी के मगरमच्छ तो शार्क को भी अपना शिकार बना लेते हैं.
विश्व के सबसे खतरनाक जीव
7. टेपवर्म
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 2,000. टेपवर्म परजीवी होते हैं जो कि व्हेल, चूहे और मनुष्य जैसे रीढ़धारी जीव-जंतुओं की पाचन नलियों में रहते हैं. वे आम तौर पर दूषित भोजन के माध्यम से अंडे या लार्वा के रूप में शरीर में प्रवेश करते हैं. इनके संक्रमण से शार्क की तुलना में 200 गुना ज्यादा मौतें होती हैं.
विश्व के सबसे खतरनाक जीव
6. एस्केरिस राउंडवर्म
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 2,500. एस्केरिस भी टेपवर्म जैसे ही परजीवी होते हैं और ठीक उन्हीं की तरह हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं. लेकिन ये सिर्फ पाचन इलाकों तक सीमित नहीं रहते. दुनिया भर में लगभग एक अरब लोग एस्कारियासिस से प्रभावित हैं.
विश्व के सबसे खतरनाक जीव
5. घोंघा, असैसिन बग, सीसी मक्खी
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 10,000. इन मौतों के जिम्मेदार दरअसल ये जीव खुद नहीं होते, बल्कि इनमें पनाह लेने वाले परजीवी हैं. स्किस्टोसोमियासिस दूषित पानी पीने में रहने वाले घोंघे से फैलता है. वहीं चगास रोग और नींद की बीमारी असैसिन बग और सीसी मक्खी जैसे कीड़ों के काटने से.
विश्व के सबसे खतरनाक जीव
4. कुत्ता
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 25,000. रेबीज एक वायरल संक्रमण है जो कई जानवरों से फैल सकता है. मनुष्यों में यह ज्यादातर कुत्तों के काटने से फैलता है. रेबीज के लक्षण महीनों तक दिखाई नहीं देते लेकिन जब वे दिखाई पड़ते हैं, तो बीमारी लगभग जानलेवा हो चुकी होती है.
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3. सांप
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 50,000. सांपों की सभी प्रजातियां घातक नहीं होतीं. कुछ सांप तो जहरीले भी नहीं होते. पर फिर भी ऐसे काफी खतरनाक सांप हैं जो इन सरीसृपों को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हत्यारा बनाने के लिए काफी हैं. इसलिए सांपों से दूरी बनाए रखें.
विश्व के सबसे खतरनाक जीव
2. इंसान
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 4,75,000. जी हां, हम भी इस खतरनाक सूची में शामिल हैं. आखिर इंसान एक-दूसरे की जान लेने के कितने ही अविश्वसनीय तरीके ढूंढ लेता है.
विश्व के सबसे खतरनाक जीव
1. मच्छर
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 7,25,000. मच्छरों द्वारा फैलने वाला मलेरिया अकेले सलाना छह लाख लोगों की जान लेता है. डेंगू बुखार, येलो फीवर और इंसेफेलाइटिस जैसी खतरनाक बीमारियां भी मच्छरों से फैलती हैं.