1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

दसवीं फेल ऑटोवाला कैसे पहुंचा स्विट्जरलैंड

विवेक कुमार
२७ मई २०२१

रणजीत सिंह राज की कहानी हिंदी फिल्म सी लगती है. जयपुर की सड़कों पर संघर्ष करने से स्विट्जरलैंड के जेनेवा में बस जाने तक इस कहानी में बहुत से दिलचस्प मोड़ हैं. हर मोड़ पर एक चीज ने राज का साथ दिया, आगे बढ़ने का जज्बा.

https://p.dw.com/p/3u3Tb
Indien Ranjeet Singh
तस्वीर: Privat

सरे बाजार जब कोई चांटा मार देता था तो राज को बहुत गुस्सा आता था. वह याद करते हैं, "काफी बार हुआ कि राह चलते लोग बेइज्जती कर देते थे, चांटा मार देते थे. तब बड़ी घिन आती थी. गरीब होना कोई क्राइम है क्या! मैं पहले ही गरीबी से जूझ रहा हूं और आप मुझे और नीचे गिरा रहे हो.”

जेनेवा में बस चुके राज अब इन बातों को याद करके सिर्फ मुस्कुरा देते हैं. वह कहते हैं कि जिंदगी को लेकर उनकी समझ अब थोड़ी बदल गई है. वह बताते हैं, "बचपन से ही मैं समाज से लड़ता रहा हूं. एक तो मैं गरीब था, काला था. तो काफी सुनने को मिलता था. तब गुस्सा भी आता था. अब तो जीवन के सत्य पता चल गए हैं तो अब शांत रहता हूं.”

रणजीत सिंह राज स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में रहते हैं. एक रेस्तरां में काम करते हैं. अपना रेस्तरां शुरू करने का ख्वाब देखते हैं. और अपना एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं जिस पर लोगों को अलग-अलग जगहों की सैर कराते रहते हैं. पर जिंदगी में यह ठहराव बहुत उथल-पुथल के बाद आया है.

ऑटो से हुई सफर की शुरुआत

रणजीत सिंह राज सिर्फ 16 साल के थे जब उन्होंने ऑटो चलाना शुरू किया. जयपुर में उन्होंने कई साल ऑटो चलाया. वह बताते हैं, "मैं दसवीं फेल हूं. पढ़ाई में अच्छा नहीं था लेकिन घरवाले स्कूल भेजते थे कि कुछ बन जाओगे. पर क्रिएटिविटी और इमेजिनेशन को कोई पूछता नहीं है. मैं कहता था कि ज्यादा बनकर क्या करना है.”

राज यह बात कह तो रहे थे लेकिन असल में उनके अंदर एक आंत्रप्रेन्योर छिपा हुआ था. उन्होंने ऑटो चलाते वक्त देखा कि जयपुर शहर के ऑटो वाले अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पैनिश जैसी कई विदेशी भाषाएं बोलते हैं. वह याद करते हैं, "मैं बड़ा प्रभावित हुआ. यह 2008 की बात है. तब सब लोग आईटी कर रहे थे. तो मुझे अंग्रेजी सीखनी थी. मैं एक लड़के के साथ लग गया और उसने मुझे अंग्रेजी सिखाई.”

उसके बाद राज ने टूरिज्म का काम शुरू किया. अपनी कंपनी बनाई. विदेशी टूरिस्टों को राजस्थान घुमाना शुरू किया. इसी तरह उनकी मुलाकात अपनी भावी पत्नी से हुई, जो एक बार फिर जिंदगी बदलने वाला मोड़ था. राज की पत्नी उनकी एक क्लाइंट थीं. वह फ्रांस से भारत घूमने गई थीं. राज ने उन्हें जयपुर घुमाया और अपना दिल भी दे बैठे. वह बताते हैं, "हम सिटी पैलेस में पहली बार मिले थे. वह अपनी एक दोस्त के साथ भारत घूमने आई थी. हम एक दूसरे को पसंद आए. बातें करने लगे. वह चली गई तो हम स्काइप पर बात करते थे. फिर प्यार हो गया.”

Frankreich Ranjeet Singh
ऐसे पहुंचे फ्रांस रणजीत सिंहतस्वीर: Privat

प्यार के लिए एंबेसी पर धरना

जब प्यार हो गया तो मिलना जरूरी लगने लगा. राज फ्रांस जाना चाहते थे. उन्होंने वीसा अप्लाई किया तो अर्जी खारिज हो गई. जब कई बार कोशिशें कामयाब नहीं हुईं तो वह और उनकी प्रेमिका बेचैन हो गए. राज याद करते हैं, "वीसा रिफ्यूज हो गया तो हमें लगा कि लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप कैसे चल पाएगा. तब हम फ्रांस की एंबेसी के सामने जाकर धरने पर बैठ गए कि जब तक हमें एम्बैस्डर से नहीं मिलवाओगे, हम नहीं जाएंगे.

उन्होंने हमें एम्बैस्डर का ईमेल दिया. हमने ऐम्बैस्डर को ईमेल लिखा तो हमें मिलने का टाइम मिला. वहां हमें एक अफसर मिला. हमने बताया कि हम प्रेम करते हैं और मैं फ्रांस जाना चाहता हूं. उन्होंने कहा कि तुम्हारा तो काम ऐसा कुछ है नहीं, तुम तो ऑटो चलाते हो, हम कैसे विश्वास कर लें कि तुम वापस आ जाओगे. मैंने कहा कि मेरी वाइफ और उसकी मां भरोसा दे रहे हैं. तो उन्होंने मुझे तीन महीने का वीसा दिया और कहा लॉन्ग टर्म वीसा के लिए तो फ्रेंच सीखनी पड़ेगी. तब मैं तीन-तीन महीने का वीसा लेकर आता रहा.”

लेकिन ऐसा हमेशा नहीं चल सकता था. चला भी नहीं. 2014 में उन्होंने शादी कर ली. बच्चा भी हो गया. और तब साथ रहना जरूरी हो गया. राज ने एक बार फिर दूतावास को गुहार लगाई कि लॉन्ग टर्म वीसा मिल जाए. "तब उन लोगों ने कहा कि फ्रेंच सीखकर आओ. मैंने दिल्ली के अलायंस फ्राँसे में क्लास लीं और एग्जाम देकर सर्टिफिकेट लिया. तब मुझे लॉन्ग टर्म वीसा मिल गया.” इस तरह राज की जयपुर से फ्रांस पहुंचने की कोशिश और कहानी पूरी हुई.

Schweiz Ranjeet Singh
रणजीत जेनेवा में रहते हैं और रेस्तरां में काम करते हैंतस्वीर: Privat

सपने अब भी आते हैं

राज अब जेनेवा में रहते हैं लेकिन उनका दसवीं फेल उद्यमी मन कुलांचे भरता रहता है. हाल ही में उन्होंने यूट्यूब पर चैनल बनाकर लोगों को खाना बनाना सिखाना शुरू किया है. इसकी कहानी भी दिलचस्प है. वह सुनाते हैं, "जब मैं पहली बार फ्रांस आया था तो शॉक हो गया था. हम लोग तो दाल, चावल, रोटी, सब्जी खाते हैं. और यहां पर ब्रेड-चीज खाते हैं और रॉ मीट खाते हैं. तो मुझे खाना जमा नहीं. मुझे स्ट्रगल करना पड़ा. तो मुझे लगा कि मुझे खाना तो बनाना पड़ेगा ही. वैसे तो मेरे पापा ने मुझे थोड़ा बहुत सिखा रखा था. वह कहते थे कि खाना बनाना आना चाहिए, पता नहीं कहां कब जरूरत पड़ जाए. तब मैंने खाना बनाना शुरू किया. और अब मैं अच्छा खाना बना लेता हूं.”

अपने लिए खाना बना कर राज रुके नहीं हैं. अब वह अपना एक रेस्तरां शुरू करना चाहते हैं और उसी उधेड़-बुन में लगे हैं. लेकिन वह फख्र से कहते हैं कि दसवीं फेल होना कभी उनके सफल होने के आड़े नहीं आया. "मैं नहीं मानता कि दसवीं फेल या बीटेक पास होने से कुछ फर्क पड़ता है. मेरा मानना है कि आदमी को कम पता हो या ज्यादा पता हो, लेकिन उसका स्वभाव कैसा है ये मैटर करता है. मुझे लगता है कि आदमी सही दिशा में जाए, अपने इंटरेस्ट चूज करे औऱ उन पर मेहनत करे. पढ़ना अच्छा लगता है तो वो वो विषय पढ़े जो अच्छा लगता है. तो सफल होना कोई मुश्किल नहीं है. लेकिन किताबी ज्ञान जरूरी नहीं है.”

राज अपना शिक्षक घूमने को मानते हैं. वह कहते हैं कि घूमने ने ही उन्हें सब कुछ सिखाया है, "मुझे ट्रैवलिंग बहुत पसंद है. ट्रैवलिंग से ही मैंने अंग्रेजी और बाकी चीजें सीखी हैं. मैं हमेशा कहता हूं कि ट्रैवलिंग एजुकेशन है. घूमने से मन शांत हो जाता है.”