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ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड के पुनर्गठन से कर्मचारियों को झटका

प्रभाकर मणि तिवारी
२१ जून २०२१

केंद्र सरकार ने कर्मचारियों के लंबे आंदोलन और कड़े विरोध के बावजूद ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) के पुनर्गठन के लंबित प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा दी है.

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Rajnath Singh
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Khan

केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में हुए इसे फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हालांकि भरोसा दिया है कि इससे कर्मचारियों के हित प्रभावित नहीं होंगे. लेकिन कर्मचारी संगठनों में इस फैसले के खिलाफ भारी नाराजगी है जताते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है. इस मुद्दे पर फैक्टरी बोर्ड को पत्र भी लिखा गया है.

ओएफबी की देश भर में फैली 41 इकाइयों में 70 हजार से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं और इसका मुख्यालय कोलकाता में है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी पहले केंद्र के इस प्रस्ताव का लिखित विरोध कर चुकी हैं. लेकिन तमाम विरोध और आंदोलन को दरकिनार करते हुए केंद्र ने इस पर मुहर लगा दी है. ओएफबी की स्थापना वर्ष 1775 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान की गई थी और इसका मुख्यालय कोलकाता के फोर्ट विलियम में स्थापित किया गया था.

दो दशकों से लंबित था मुद्दा

केंद्र के इस फैसले और भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) के आरएमडी मुख्यालय को कोलकाता से बोकारो और राउरकेला स्थानांतरित करने के फैसले को राजनीतिक हलकों में केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच जारी टकराव से जोड़ कर देखा जा रहा है.

केंद्र की दलील है कि ओएफबी के पुनर्गठन का मकसद उसकी इकाइयों की क्षमता बढ़ाने के साथ ही उनको प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है. इसके लिए बोर्ड के तहत संचालित 41 फैक्टरियों का आपस में विलय करते हुए उनको सात कंपनियों में बदला जाएगा. बोर्ड के पुनर्गठन का मुद्दा करीब दो दशकों से लंबित था. उसके बाद से ही तमाम कर्मचारी संगठन इस प्रस्ताव के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे थे. अक्टूबर 2020 में इसके खिलाफ बेमियादी हड़ताल भी होने वाली थी. लेकिन केंद्र सरकार की ओर से भरोसा मिलने के बाद इसे टाल दिया गया था. उसके बाद कोरोना की वजह से आंदोलन ठप रहा था.

केंद्र सरकार के फैसले के मुताबिक, अब बोर्ड की 41 इकाइयों को सरकारी मालिकाना हक वाली सात कंपनियों में बदल कर उनके कामकाज का बंटवारा किया जाएगा. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना था कि इन ऑर्डिनेंस फैक्टरियों में गोला-बारूद, विस्फोटक, वाहन, हथियार, उपकरण, सैन्य सुविधा के सामान, पैराशूट और दूसरे सैन्य उत्पाद तैयार किए जाएंगे. उन्होंने भरोसा दिया है कि ऑर्डिनेंस फैक्टरियों के कर्मचारियों की सेवा-शर्तों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.

करोड़ों का खर्च

रक्षा विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि इन फैक्टरियों में काम करने वाले तमाम कर्मचारियों को शुरुआत में दो साल के लिए डेपुटेशन पर इन नई कंपनियों में भेजा जाएगा. इस दौरान उनकी सेवा शर्तों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा और वे केंद्र सरकार के ही कर्मचारी रहेंगे.

अधिकारी का कहना था कि फिलहाल ओएफबी के कर्मचारियों के वेतन-भत्तों पर सालाना पांच हजार करोड़ और इन फैक्टरियों के संचालन पर तीन हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं. लेकिन उनमें बनने वाले उत्पादों की गुणवत्ता पर बीते कुछ वर्षों से लगातार सवाल उठते रहे हैं. सेना भी कथित घटिया उत्पादों के लिए ओएफबी को कठघरे में खड़ा करती रही है. अब इस पुनर्गठन के बाद सभी सात कंपनियां रक्षा क्षेत्र के दूसरे उपक्रमों के समान होंगी. उनका संचालन पेशेवर प्रबंधन द्वारा किया जाएगा. अधिकारी के मुताबिक इस पुनर्गठन का मकसद उत्पादों की संख्या बढ़ाने के साथ उनकी गुणवत्ता में सुधार करना है.

कुदरत पर भारी सेनाएं

कर्मचारी संगठनों की दलील

आरएसएस से संबद्ध भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ ने कहा है कि इस फैसले से रक्षा क्षेत्र में पूंजीवाद बढ़ेगा जो कर्मचारियों के लिए नुकसानदेह साबित होगा. एक अन्य संगठन डिफेंस एम्प्लाइज फेडरेशन ने कहा है कि इससे रक्षा फैक्टरियों की गोपनीयता भंग होने का गंभीर खतरा है और साथ ही बीएसएनएल की तरह कर्मचारियों और मजदूरों के रोजगार की सुरक्षा यानी जॉब गारंटी प्रभावित होगी. 

डेढ़ साल पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा हितों के लिए ओएफबी के निगमीकरण की प्रक्रिया रोक कर यथास्थिति बनाए रखने की अपील की थी. लेकिन केंद्र ने उस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया था. अब कर्मचारी संगठनों ने इसके खिलाफ आंदोलन का एलान किया है.

सरकार के फैसले के विरोध मे वामपंथी ट्रेड यूनियन से संबद्ध द ऑल इंडिया डिफेंस इम्प्लाइज फेडरेशन (एआईडीईएफ), इंटक से संबद्ध द इंडियन नेशनल डिफेंस वर्कर्स फेडरेशन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) में शामिल भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (बीपीएमएस) एकजुट हैं.

एक कर्मचारी संगठन के प्रवक्ता नरेन दास कहते हैं, "रक्षा उत्पादों के निर्माण के लिए कई फैक्ट्रियां एक-दूसरे पर निर्भर हैं. सरकार की योजना के मुताबिक सबको अलग यूनिट बनाने की स्थिति में इनमें से कई बंद हो जाएंगी. रक्षा उपकरणों का हिस्सा कई अलग-अलग फैक्ट्रियों में बनाया जाता है. सरकार की ओर से भरोसा दिए जाने के बावजूद कर्मचारी संगठनों को अंदेशा है कि इससे कई फैक्टरियां बंद हो जाएंगी और आगे चल कर बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी होगी.

आरएमडी मुख्यालय भी हटेगा

इस बीच, भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) के कच्चा माल विभाग (आरएमडी) मुख्यालय को कोलकाता से हटा कर बोकारो और राउरकेला ले जाने के केंद्र के फैसले का भी बंगाल में भारी विरोध हो रही है. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आरोप लगाया है कि कोलकाता में सेल के आरएमडी मुख्यालय को बंद करने का फैसला राज्य के खिलाफ केंद्र की बड़ी साजिश का हिस्सा है.

टीएमसी की मजदूर इकाई के प्रमुख ऋतब्रत मुखर्जी कहते हैं, "कोलकाता स्थित सेल के आरएमडी मुख्यालय को बंद करने का फैसला राज्य के खिलाफ केंद्र की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है. इस फैसले से आरएमडी पर निर्भर पश्चिम बर्दवान जिले की मिश्र धातु इकाइयां बंद हो जाएंगी और हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे."

टीएमसी सुखेंदु शेखर रॉय कहते हैं, "आरएमडी की स्थापना बंगाल में स्थित देश के प्रमुख इस्पात संयंत्रों के प्रभावी तरीके से प्रबंधन के लिए की गई थी. वित्त वर्ष 2020- 21 में सेल ने लगभग 3,470 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है. इसमें आरएमडी, कोलकाता का अहम योगदान है. बावजूद इसके इसे बंद करने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है."

कर्मचारी संगठनों ने राज्य सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है. इसके बाद वित्त मंत्री अमित मित्र ने बुधवार को केंद्र को भेजे एक पत्र में इस फैसले पर हैरत जताते हुए कहा है कि कि सेल बोर्ड का यह फैसला राज्य के दुर्गापुर और बर्नपुर में स्थित मुनाफे में चलने वाले दोनों इस्पात संयंत्रों के हितों के लिए नुकसानदायक होगा. इसके अलावा इससे इस कोविड महामारी के बीच कई कर्मचारियों को नुकसान का अंदेशा है.

ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा है कि केंद्र सरकार के फैसले से कंपनी की उत्पादन और खनन गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं. इस बीच, सेल के कर्मचारियों ने वेतन संशोधन की मांग में 30 जून को हड़ताल की भी अपील की है.

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