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कब तक भगवान भरोसे रहेगी भारतीय खेती

सुहैल वहीद, लखनऊ२५ दिसम्बर २०१५

जिस समय नरेंद्र मोदी पेरिस में जलवायु सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे लगभग उसी समय भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 50 जिलों को सूखा ग्रस्त घोषित किया जा रहा था. देश के 200 जिले सूखे की मार सह रहे हैं.

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Indien Hitzewelle
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jagadeesh

भारत के सात राज्यों की सरकारों ने सूखे का सामना करने के लिए केंद्र से सहायता पैकेज की मांग की है. भारत के देहाती इलाकों पर नजर डालें तो देश की खेती राहत और रहम पर ही निर्भर है. यही कारण है कि भारतीय कृषि को विदेशी निवेशक नहीं मिल रहे हैं जबकि कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार ने कृषि के लिए 100 फीसदी विदेशी निवेश को खोलने का फैसला कर रखा है. पर विदेशी निवेशकों का इस ओर कोई आकर्षण नहीं हो पा रहा है और कृषि में साल दर साल विदेशी निवेश में तेज गिरावट दर्ज की जा रही है. वर्ष 2012 में कुल 875 करोड़ का एफडीआई प्राप्त हुआ जो 2013 में घटकर 560 करोड़ रह गया और 2014 आते आते यह 352 करोड़ पर सिमट गया.

भारत अभी भी कृषि प्रधान देश है, लेकिन भारत के कृषि उद्योग में आधुनिक संसाधनों की कमी बनी हुई है. भारत के गांवों में मोबाइल तो पहुंच गए हैं पर न खाद पहुंची, न सिंचाई का पानी. सब कुछ अभी भी ऊपर वाले के रहमो करम पर निर्भर है. यही कारण है कि इस साल के शुरु में पहले बेमौसम बारिश ने किसानों की कमर तोड़ी तो अब सूखा उन्हें मारे डाल रहा है. अकेले यूपी में ही 75 में से 50 जिले सूखाग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं. जलवायु परिवर्तन की मार भी सबसे अधिक यूपी पर पड़ी है. भारत में वर्ष 2015 में 205 अरब रुपये का नुकसान हुआ है और यूपी में 78 फीसदी नुकसान हुआ है.

समस्या यह है कि कैश क्राप कही जाने वाली गन्ने की खेती भी यूपी में अब किसान छोड़ रहे हैं. चीनी मिलों पर किसानों का 30 अरब रुपये बकाया है. वह 350 रुपए प्रति क्विंटल गन्ने के समर्थन मूल्य की मांग करते हैं और कोल्हू पर 180 रुपए प्रति क्विंटल गन्ना बेचने पर मजबूर होते हैं, क्योंकि चीनी मिलें भुगतान में रुला देती हैं. यूपी में इस साल की शुरुआत में बेमौसम बारिश ने खरीफ की फसल को चौपट किया तो अब पड़े सूखे ने रबी की फसल को तबाह करना शुरु कर दिया है. गेहूं का रकबा 76 हजार हेक्टेयर कम हो गया है.

यूपी और मध्य प्रदेश में फैले बुंदेलखंड इलाके में सूखे के बाद अकाल की नौबत है. पिछले आठ महीनों से यहां 53 फीसदी किसानों ने दाल के दर्शन नहीं किए हैं हालांकि यह इलाका दलहन के उत्पादन के लिए विख्यात है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व अध्यक्ष डाक्टर पंजाब सिंह का कहना है कि अकेले बुंदेलखंड पूरे यूपी को दाल खिला सकता है. उनके अनुसार कृषि क्षेत्र में मार्केटिंग और भंडारण के आधुनिक संसाधनों का अभाव है. हालत यह है कि किसानों को बीज तक नकली मिल रहे हैं. बुंदेलखंड के सैकड़ों किसान इस वर्ष आत्महत्याएं कर चुके हैं.

हालत इतनी खराब होगई है कि किसानों को राहत देने के बदले राजनीति का खेल शुरू हो गया है. यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार पर किसानों की मदद के लिए सहायता नहीं करने का आरोप लगाया है. उन्होंने केंद्र से किसानों की सहायता के लिए करीब 2057 करोड़ रुपये की मांग की है. भारतीय खेती चुनौतियों के नए चौराहे पर खड़ी है. भारत सरकार मेक इन इंडिया पर जोर दे रही है लेकिन कृषि क्षेत्र नजरअंदाज हो रहा है. छोटी होती जोत, घटती उर्वरता और दलहन तिलहन की घटती पैदावार और बढ़ती मांग के साथ सीमित होते प्राकृतिक संसाधनों के जरिए ही उपज बढ़ाना भारतीय किसानों के लिए दिन पर दिन चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. इन हालात में विदेशी निवेश की उम्मीद करना बेमानी है.