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ऊंची ब्याज दर और महंगाई ने जर्मनी को मंदी में धकेला

२५ मई २०२३

यूरोप की अर्थव्यवस्था का इंजन कहे जाने वाला जर्मनी वित्तीय वर्ष की शुरुआत में ही आर्थिक मंदी में घिर गया है. महंगाई और ऊंची ब्याज दरों ने जर्मन बाजारों में मांग पर बुरा असर डाला है.

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महामारी के तुरंत बाद युद्ध ने जर्मन अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है
जर्मनी का कार उद्योग भी मांग की कमी का सामना कर रहा हैतस्वीर: Martin Schutt/dpa/picture alliance

साल 2023 के शुरुआती तीन महीनों में जर्मनी की अर्थव्यवस्था 0.3 फीसदी सिकुड़ गई. जर्मनी की संघीय सांख्यिकी एजेंसी डेस्टाटिस ने यह जानकारी दी है. इससे पहले 2022 के आखिरी तीन महीनों में भी जर्मन अर्थव्यवस्था 0.5 फीसदी सिकुड़ी थी. लगातार दो तिमाही में नकारात्मक विकास के बाद जर्मन अर्थव्यवस्था "तकनीकी मंदी" में चली गई है.

अगर अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाही में सिकुड़ जाती है तो तकनीकी आधार पर देश मंदी में चला जाता है. हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि पूरे साल के लिए आउटपुट माइनस में चला गया. इस बार सर्दियों के ज्यादा ठंडे नहीं होने की वजह से जर्मनी को थोड़ी राहत मिल गई है.

ऊर्जा की बढ़ी कीमतों का असर

यूक्रेन पर रूसी हमले की वजह से जर्मनी ऊर्जा की बढ़ी कीमतों से जूझ रहा है. इसकी वजह से घर चलाने और कारोबार के खर्चे बहुत ज्यादा बढ़ गये हैं. ऊर्जा की बढ़ी कीमतों ने देश में महंगाई की दर बढ़ा दी है. अप्रैल में महंगाई की दर 7.2 फीसदी थी. यह 2022 के आखिरी महीनों की उच्चतम दर से मामूली तौर पर कम है.

यूक्रेन युद्ध की वजह से जर्मनी में ऊर्जा की सप्लाई प्रभावित हुई
ऊर्जा की ऊंची कीमतों ने खासतौर से अर्थव्यवस्था पर बहुत असर डाला हैतस्वीर: Adam Berry/Getty Images

डेसांटिस की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, "ऊंची कीमतों का लगातार बने रहना जर्मन अर्थव्यवस्था पर एक बोझ है जो साल की शुरुआत में भी जारी है." ऊंची कीमतों का असर खासतौर से आम लोगों पर पड़ा है जिन्हें भोजन, कपड़े, जूते और इस तरह की दूसरी चीजों पर खर्च में कटौती करनी पड़ रही है. मांग घटने की यह प्रमुख वजह है.

सिर्फ भारत और चीन में होगा मजबूत विकासः आईएमएफ

हालांकि सांख्यिकी विभाग के मुताबिक निर्यात और निवेश से साल की शुरुआत में कुछ अच्छे रुझान सामने आये हैं. निर्माण में निवेश बढ़ा है और उचित मौसम ने भी इसमें अपनी भूमिका निभाई है. कंपनियों ने मशीन, उपकरण और गाड़ियों में अच्छा निवेश किया है. यही कारण है कि स्थिति उतनी बुरी नहीं हुई जितने की आशंका थी.

मंदी से जल्दी उबरने के आसार नहीं

एलबीबीडब्ल्यू बैंक के विश्लेषक येंस ओलिवर निकलाष का कहना है कि विकास के आंकड़ों का माइनस में जाना कोई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि आर्थिक संकेत लगातार कमजोर होते जा रहे थे. निकलाष का कहना है, "शुरुआती संकेतों से यह साफ है कि हालत इस साल की दूसरी तिमाही में भी इसी तरह कमजोर रहेगी."

औद्योगिक मांग फैक्ट्रियों का उत्पादन तय करते हैं और मार्च में यह पिछले साल की तुलना में काफी ज्यादा गिर गई.

महंगाई की वजह से सिर्फ जरूरी चीजों पर ही लोग पैसा खर्च कर रहे हैं
आम लोग खाना और दूसरी जरूरी चीजों पर खर्च में कटौती करने पर मजबूर हुए हैंतस्वीर: Bea Kallos/dpa/picture alliance

जर्मनी लंबे समय से रूस ऊर्जा के आयात पर काफी ज्यादा निर्भर रहा है. पिछले साल फवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद से ऊर्जा की दिक्कतें काफी ज्यादा बढ़ गईं. गैस की आपूर्ति लगातार घटती गई और जर्मनी को मजबूर हो कर आपके दूसरे स्रोतों का रुख करना पड़ा. यह काम इतनी जल्दी से पूरा करना आसान नहीं है, खासतौर से सर्दियों के लिए जर्मनी को भारी ऊर्जा की जरूरत होती है क्योंकि इस मौसम में यहां घरों को गर्म रखना जरूरी है.

महंगाई ने जर्मनी के छोटे किसानों की कमर तोड़ दी

रूसी हमले के बाद आशंका जताई जा रही थी कि जर्मनी भारी मंदी की चपेट में आयेगा हालांकि हालात उतने बुरे नहीं रहे. आईएनजी बैंक के अर्थशास्त्री कार्स्टेन ब्रेस्की का कहना है तापमान का बहुत ज्यादा नहीं गिरना, प्रमुख बाजार चीन का उभरना और कोरोना वायरस की महामारी खत्म होने के बाद सप्लाई चेन की समस्याओं का कुंद पड़ना भी "अर्थव्यवस्था को मंदी की चपेट में आने से नहीं रोक पाए." 

ब्रेस्की ने महंगाई को रोकने के लिए यूरोपीय सेंट्रल बैंक के ब्याज दर बढ़ाने के फैसले की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा, "क्रय शक्ति में कमी, औद्योगिक मांग का घटना और साथ ही मौद्रिक नीति को कठोर बनाने का असर अर्थव्यवस्था को अभी और थोड़ा पीछे खींचेगा."

विशेषज्ञों का कहना है अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सुस्त पड़ने की आशंका और यूक्रेन युद्ध के जारी रहने का बोझ भी आउटपुट पर होगा. इन आंकड़ों की वजह से जर्मनी में नीति बनाने वालों के लिए भी समस्या पैदा हो गई है. उन्होंने शुरुआती रुझान देख कर 2023 में विकास दर 0.4 फीसदी रहने की भविष्यवाणी की थी.

चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने पहले इस भरोसे के संकेत दिये थे कि जर्मनी ने अर्थव्यवस्था के सिकुड़ने की वजह से होने वाली तकलीफों से बचने के लिए पर्याप्त उपाय कर लिये हैं. इससे पहले जर्मनी में मंदी 2020 में आई थी जब कोरोना वायरस की महामारी ने पूरे यूरोप को अपनी चपेट में ले लिया था. सरकारों को तब अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से पर तालाबंदी के लिए मजबूर होना पड़ा था.

एनआर/सीके (एएफपी, डीपीए)

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