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उम्मीदें तो जगाईं, लेकिन सारे सपने पूरा नहीं कर पाए मोदी

महेश झा
८ अप्रैल २०१९

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति का एक ऐसा सितारा हैं जो अपनी जिद, मेहनत और लोगों को लुभाने के अपने अंदाज से सत्ता के आसमान में उभरा.

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Narendra Modi
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

छह साल पहले सावधानी से फूंक फूंक कर कदम बढ़ाते हुए नरेंद्र मोदी ने पहले पार्टी के सदस्यों और फिर देश मतदाताओं के दिलों में जगह बनाई. इस प्रक्रिया में 2002 के गुजरात दंगों की वजह से केंद्रीय राजनीति में अछूत समझे जा रहे मोदी पहले पार्टी के नेताओं को मनाकर केंद्रीय प्रचार समिति का अध्यक्ष बने और फिर कुछ महीनों के अंदर बड़े नेताओं को दरकिनार कर प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी भी झटक ली. उन्होंने सारे गणित, सारी भविष्यवाणियों और पंरपराओं को धता बताते हुए उग्र राष्ट्रवादी समझी जानेवाली भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय चुनावों में ऐतिहासिक जीत दिलाई. पार्टी ने पहली बार सहयोगियों की बदौलत नहीं, बल्कि अपनी बदौलत सरकार बनाई.

नरेंद्र मोदी भारत के ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो पहले कभी केंद्रीय सरकार में नहीं रहे. प्रधानमंत्री बनने से पहले वे कभी संसद के सदस्य भी नहीं रहे. लेकिन उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के हारने के बाद निराश पार्टी को फिर से जीत की उम्मीद रखने वाला दल ही नहीं बनाया बल्कि कांग्रेस सरकार से निराश लोगों में भी उम्मीद की आस जगाई. नरेंद्र मोदी की बीजेपी ने इसके लिए दो मोर्चों पर काम किया. एक तो मनमोहन सिंह को मौन मोहन सिंह की उपाधि देकर उनकी सरकार पर लगातार भ्रष्टाचार का दबाव बनाए रखा और दूसरी ओर वाजपेयी के अधूरे सपनों को पूरा करने और विकास के नारे के साथ बीजेपी के बाहर भी समर्थन जुटाया. भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष, तेज आर्थिक विकास, महिलाओं की सुरक्षा और हर साल एक करोड़ नए रोजगार पैदा करने के वादे ने लोगों को इलेक्ट्रिफाई किया. मोदी ने अपने प्रयासों से एक ऐसी लहर पैदा की जिस पर सवार होकर बीजेपी की पहली बहुमत वाली सरकार बनी.

Indien Parlamentswahl 2014 Modi im Parlament 20.05.2014
तस्वीर: Reuters

अब ये भारत की राजनीतिक व्यवस्था का दोष है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 के संसदीय चुनावों में बीजेपी को सिर्फ 31 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन फिर भी उसे 543 सीटों वाली संसद में पूर्ण बहुमत मिल गया. भारत में दशकों से चल रही गठबंधन सरकारों के अनुभव के बाद पहला मौका था जब बीजेपी और उसके साथियों को स्पष्ट बहुमत मिला. कांग्रेस सिर्फ 44 प्रतिशत सीटों पर सिमट गई और मान्यताप्राप्त विपक्षी पार्टी बनने के लिए कम से कम 10 प्रतिशत सीटों की जरूरत भी पूरा नहीं कर पाई. मोदी ने अपने वादों से लोगों में ऐसा जोश भरा कि चुनाव में किस्मत आजमाने वाली कई क्षेत्रीय पार्टियों के परखच्चे उड़ गए. उन्होंने हर चुनाव क्षेत्र में कम से कम त्रिकोणीय मुकाबला करा कर बीजेपी की प्रचंड जीत का रास्ता भी साफ किया.

मोदी की चुनावी रणनीति के पीछे चार बातें थीं. दोस्ताना उद्योगपतियों और विदेशों में रहने वाले समर्थकों की आर्थिक मदद, प्रचार के आधुनिक साधनों और सोशल मीडिया के इस्तेमाल का साहस, प्रधानमंत्री उम्मीदवार की सारे देश में धुआंधार सभाएं और विपक्षी पार्टियों की कमजोरियों का सही आकलन. बीजेपी के पक्ष में बाद में यह बात भी आई कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के बीच एकता नहीं थी. पार्टी के राहुल गांधी जैसे नेता युवा वोटरों को बटोरने के लालच में सरकार को नीचा दिखाने से नहीं चूक रहे थे और पार्टी से नाराज प्रधानमंत्री पार्टी के लिए चुनाव प्रचार नहीं कर रहे थे. कांग्रेस पार्टी बुजुर्ग नेताओं और युवा आकांक्षाओं के बीच तालमेल नहीं बिठा पाई थी.

Indien Premierminister Narendra Modi
तस्वीर: Ians

चाय विक्रेता से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी को सत्ता के अनुभव का भी खूब लाभ मिला. उन्होंने चुनाव प्रचार में गुजरात में अपने चौदह साल के शासन को विकास मॉडल के रूप में पेश किया और भुनाया. पार्टी की मशीनरी तो उनके गुणगान में लगी ही थी, प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें सत्ता की मशीनरी भी मिल गई जो हर सरकार के गुणगान में पूरी ताकत झोंक देती है. लेकिन मोदी ने इतने भर से संतोष नहीं किया. उन्होंने सत्ता की मशीनरी को भी इतना आधुनिक बना डाला कि न तो विरोधी अधिकारियों को और न हीं विरोधी नेताओं को उसकी काट मिल रही है. सरकारी कामकाज में रोड़े अटकाने वाले अधिकारियों को उन्होंने किनारा कर दिया और संयुक्त सचिवों के स्तर पर बाहर से भर्ती कर प्रशासनिक अधिकारियों की ताकत भी तोड़ी. इसमें आरएसएस का प्रचारक रहने की ट्रेनिंग और अनुभव ने मोदी की मदद की. उन्होंने नए समर्थक हासिल किए हैं और पुराने समर्थकों को सत्ता के सुख में हिस्सेदार बनाया है.

नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है लोगों को बड़े बड़े सपने दिखाना. उन्होंने खुद भी बड़े सपने देखे और उन्हें साकार भी किया. दस-बारह साल के मीडिया ट्रायल के बावजूद वह लोगों का दिल जीतने में कामयाब हुए और दिल्ली में सत्ता की नई इबारत लिखी. विविधता और बहुलता वाले देश भारत में राष्ट्रपति प्रणाली वाले चुनावों की वकालत तो बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता पहले से ही कर रहे थे, मोदी ने मौका मिलने पर अपने प्रयासों से दिखा दिया कि यदि सही रणनीति और धन हो तो सत्ता प्रतिष्ठान के बाहर से आए लोग भी राष्ट्रीय नेता बन सकते हैं और अपने बलबूते पर बहुमत पा सकते हैं. इस मायने में 2014 में मोदी का प्रधानमंत्री बनना भारतीय राजनीति का ऐसिहासिक मोड़ था.

Indonesien Treffen von indischer Ministerpräsident Modi  mit Präsident Joko Widodo in Jakarta
तस्वीर: IANS/PIB

पांच साल के शासन में मोदी की सबसे बड़ी विफलता यही रही कि उन्होंने विकास की बातें बहुत कीं, लेकिन विकास की संरचना नहीं बना सके. भ्रष्टाचार रोकने के लिए अधिकारियों पर पार्टी के मंत्रियों से ज्यादा भरोसा किया तो ज्यादातर मंत्री अपना स्वतंत्र चेहरा बनाने और सरकार की नीतियों को निचले स्तर तक ले जाने में विफल रहे. विपक्षी पार्टियों के प्रति आक्रामक रवैये के कारण मोदी की नीतियों को राज्य सरकारों और जिला स्तर के नेताओं का भी समर्थन नहीं मिला. भले ही पाकिस्तान के साथ हाल के तनाव के बाद मोदी के समर्थन में सुधार हुआ हो, लेकिन उनके बहुत सारे पुराने समर्थकों का कहना है कि मोदी ने बहुत सारे वादे तोड़े हैं और अर्थव्यवस्था को सुधारने में वह विफल रहे हैं. विरोधी उन पर देश को बांटने, धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण और विपक्ष को दबाने का भी आरोप लगाते हैं. सरकार का विरोध करने वालों को देशद्रोही बताने या मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को पाकिस्तान समर्थक बताने वाले नारों को खामोश कराने की उन्होंने कोई गंभीर कोशिश नहीं की. फिर भी भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर सख्त रुख के कारण उन्हें मध्य वर्ग और हिंदू मतदाताओं का समर्थन हासिल है.

बीजेपी की दलील है कि भले ही अर्थव्यवस्था में नतीजे नहीं दिख रहे हों, लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने और कारोबार को आसान बनाने के लिए मोदी सरकार ने हिम्मत दिखाई है. आर्थिक मोर्चे पर नतीजे आने में समय लगेंगे, इसलिए 68 वर्षीय मोदी को सरकार बनाने का एक मौका और मिलना चाहिए. फिलहाल मोदी अपने वादों पर जवाब देने के बदले मतदाताओं को राष्ट्रवाद के नाम पर जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. रणनीति के माहिर अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने मतदाताओं को मैनेज करने के नए तरीके निकाले हैं. पार्टी ने आडवाणी जैसे पुराने नेताओं को दरकिनार किया है और जीत के समीकरणों के बहाने बहुत से नए नेताओं को भी टिकट नहीं दिया है. भारत में इस समय शाह-मोदी जोड़ी जीत के नए समीकरण गढ़ रही है. इस जोड़ी ने केंद्र में सरकार बनाने के बाद से ही कांग्रेसमुक्त भारत का नारा दिया है. जिस तरह से बीजेपी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित सारे विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ कड़े तेवर दिखाए हैं, उसे देखते हुए संसदीय चुनावों में हार की कल्पना मुश्किल है. लेकिन 2014 के विपरीत इस बार चुनावों से पहले भारत में मोदी की लहर नहीं दिखती. इन चुनावों में नरेंद्र मोदी के सामने अपनी विरासत को बचाने की चुनौती है.