उत्तर कोरिया के बदले रुख का नतीजा क्या होगा
१९ सितम्बर २०१८बुधवार को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई इन ने प्योंगयांग में उत्तर कोरियाई नेता से मुलाकात की. उसके बाद जो संयुक्त घोषणापत्र जारी हुआ है उसमें कई अहम बातें हैं. उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों पर ज्यादा चर्चा तो नहीं हुई लेकिन दोनों देशों ने आपसी संबंधों को मजबूत बनाने पर काम करने पर सहमति जताई है. दोनों देश सीमा रेखा से बंटे परिवारों को मिलाने के लिए सुविधा विकसित करने पर जल्दी ही कार्रवाई करेंगे. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच सड़क और रेलमार्ग बनाने को भी दोनों नेता तैयार हैं. 2032 के ओलंपिक खेलों की संयुक्त मेजबानी हासिल करने के अलावा किम जोंग उन जल्द ही दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल का दौरा भी करेंगे.
कोरिया के विभाजित होने के बाद किसी उत्तर कोरियाई नेता की यह पहली यात्रा होगी. हाल के दशकों में उत्तर कोरिया का ऐसे रुख पहले कभी नजर नहीं आया. दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में कोरियाई मामलों के विशेषज्ञ संदीप मिश्रा बताते हैं, "एक तानाशाह के उत्तराधिकारी के रूप में किम जोंग उन ने पहले अपनी स्थिति मजबूत करने पर ध्यान दिया. घरेलू राजनीति और ताकत के केंद्र पर अपना प्रभुत्व जमाने के बाद अब वो आर्थिक प्रगति चाहते हैं साथ ही अंतराष्ट्रीय समुदाय में जो उनका देश अलग थलग पड़ गया है उस अलगाव को भी खत्म करना चाहते हैं."
उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया ने आपसी रिश्तों को सुधारने के लिए जो कवायद शुरू की है उसके लिए दोनों के पास अपनी अपनी वजहे हैं. थोड़ा पीछे जाएं तो साफ दिख जाता है कि एक दूसरे को आंख दिखाते दोनों देश एक और युद्ध के कितने पास पहुंच गए थे. संदीप मिश्रा कहते हैं, "अगर एक और युद्ध होता तो उसका खामियाजा दक्षिण कोरिया को भी उठाना पड़ता अब यह चाहे आर्थिक नुकसान के रूप में हो या फिर जान माल के नुकसान के रूप में. ऐसे में दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति का कूटनीति के जरिए आगे बढ़ना कारगर कदम है. वास्तव में इस वक्त दोनों देशों को इसकी जरूरत है."
पिछले पांच-सात दशकों में दुनिया ने उत्तर कोरिया को दहाड़ते, धमकाते, एक हाथ से मिसाइल तो दूसरे से विनाशकारी बमों का परीक्षण करते ही देखा है. ये सिलसिला दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की कोरियाई जंग से ही चला आ रहा है. पहले किम जोंग इल ने इसे खाद पानी दे कर समृद्ध किया और फिर 2011 में उनकी मौत के बाद सत्ता पर काबिज हुए उनके बेटे किम जोंग उन ने इस विरासत को आगे बढ़ाया. दुनिया को धमकाते और फितूरी फैसलों से अपनी आवाम को डराते किम जोंग उन ने 2018 में अचानक से रुख बदल लिया. जिस दक्षिण कोरिया को वह देखना नहीं चाहते थे अब उसी के साथ दोस्ती और साझेदारी के रास्ते तय किए जा रहे हैं. दक्षिण कोरिया ने उम्मीद जताई है कि किम जोंग उन और डॉनल्ड ट्रंप के बीच इस साल सिंगापुर में जो बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ वह आगे बढ़ेगा. सिंगापुर में किम जोंग उन ने परमाणु निशस्त्रीकरण पर तो जोर दिया लेकिन क्या कुछ होगा इसका कोई ब्यौरा नहीं दिया.
दोनों कोरियाई नेताओँ के बीच हुई सहमति में टोंगचांग री के मिसाइल इंजिन परीक्षण और प्रक्षेपण केंद्र को स्थायी रूप से बंद करना भी शामिल है. यह काम बकायदा अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की निगरानी में होगा. हालांकि इसके लिए किम जोंग उन ने कुछ शर्तें भी रखी हैं वो चाहते हैं कि उनके शांति कदमों पर अमेरिका भी कुछ बदलाव दिखाए. अमेरिका ने अभी तक तो कुछ नहीं कहा है लेकिन जानकार बता रहे हैं कि अगर अमेरिका थोड़ी नरमी दिखाए तो इस प्रक्रिया को थोड़ा लंबे समय के लिए चलाया जा सकता है. संदीप मिश्रा ने कहा, "ट्रंप के सख्त रूख का यह नतीजा हुआ कि हथियारों को विकसित करने और परखने का जो काम किम जोंग उन सात-आठ वर्षों में करते उसे डेढ़ दो सालों में ही कर लिया, पर अब अगर अमेरिका सकारात्मक रुख दिखाए और परमाणु हथियारों को तुरंत खत्म करने की मांग ना रखे बल्कि कुछ समय दे दे तो आगे के कुछ सालों तक उत्तर कोरिया को आर्थिक सुधारों और विकास की दिशा में काम करने की उम्मीद की जा सकती है."
अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद उत्तर कोरिया की मुश्किलें बढ़ गई. अमेरिकी दबाव के चलते उत्तर कोरिया के इकलौते साथी चीन ने भी उसके साथ सहयोग कम कर दिया है. वर्तमान में उत्तर कोरियाई रुख में जो बदलाव दिखा है उसके पीछे कई वजहें काम कर रही हैं और उनमें एक चीन भी है. चीन भी चाहता है कि उत्तर कोरिया हथियारों का परीक्षण बंद कर विकास के रास्ते पर बढ़े.
उम्मीद की जानी चाहिए कि पश्चिमी देशों में पढ़ लिखे किम जोंग को बहुत कम उम्र में देश की गद्दी संभालने का जो मौका मिला है उसके कुछ अच्छे नतीजे भी आ सकते हैं. हालांकि यह कितना और कहां तक अच्छा होगा इस बारे में कोई भरोसे के साथ कुछ कहने को तैयार नहीं है. संदीप मिश्रा कहते हैं, "उत्तर कोरिया में जो लोग बमों और हथियारों का भारी जखीरा चाहते हैं उन्हें कुछ समय के लिए तो किम जोंग उन ने चुप करा दिया है, लेकिन वो कब तक इस स्थिति को बनाए रखने में सफल होंगे कहना मुश्किल है. पर इतना जोखिम तो उठाना ही होगा."