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उजड़ रहा है 'बुश बाजार'

३ अप्रैल २०१४

काबुल के दुकानदार अमेरिकियों से नाराज हैं. हैरानी की बात यह है कि गुस्से की वजह राजनीतिक नहीं बल्कि शुद्ध व्यापारिक है.

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Afghanistan Wirtschaft vor den Wahlen Bush Basar in Kabul
तस्वीर: Shah Marai/AFP/Getty Images

सालों से अफगानिस्तान में जारी सेना की गतिविधियों के बाद अब जब अमेरिकी सेना वहां से वापसी की तैयारी कर रही है और उन्हीं के साथ लौट रही हैं काबुल के बाजारों में मिलने वाली चीजें भी.

काबुल का एक दुकानदार हाजी नजीमुल्लाह अपने स्टॉल में इंपोर्टेड सामान बेचता है. उसकी दुकान में मिलने वाली अमेरिका की छोटी छोटी चीजें, राशन और कई चीजों के काफी खरीदार भी हैं. मजे की बात यह है कि नजीमुल्लाह की ही तरह काबुल के 'बुश बाजार' में ऐसी दुकानें चलाने वाले सैकड़ों लोगों के लिए उनका सबसे बड़ा सप्लायर कोई थोक विक्रेता नहीं बल्कि वहां तैनात नाटो सेना मिशन से उठाई या चुराई हुए चीजें हैं. कभी खरीदारों से भरी रहने वाली गलियां अब सुनसान रहने लगी हैं. 28 साल का मुस्तफा 2014 को अनिश्चितताओं से भरा साल मानते हैं. क्योंकि इस साल नाटो सेना के कॉम्बैट मिशन का अंत होगा और साथ ही देश के नए राष्ट्रपति का चुनाव भी होगा. मुस्तफा बताता है, "लोग 2014 से पहले से ही डर रहे थे. अब जबकि यह साल चल रहा है, ज्यादा कुछ बदला नहीं है. अब तो सिर्फ चुनावों की चिंता है. एक बार चुनाव बीत जाए तो शायद स्थिति कुछ सुधरे."

काबुल के इस बाजार का नाम भी पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के नाम पर ही 'बुश बाजार' पड़ा. 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद बुश ने ही अफगानिस्तान पर हमले के आदेश दिए थे. आज काबुल के 'बुश बाजार' में कईयों की रोजी रोटी अमेरिका के नेतृत्व में वहां तैनात नाटो सेना के मिलिट्री बूट, कॉम्बैट चाकू जैसी बची खुची चीजों को बेचने से चल रही है.

Afghanistan Wirtschaft vor den Wahlen Bush Basar in Kabul
तस्वीर: Shah Marai/AFP/Getty Images

दुकानदार परेशान हैं क्योंकि कुछ ही सालों में उनका व्यापार करीब आधा हो गया है. अब उनकी उम्मीद देश में होने जा रहे चुनावों पर लगी है. व्यापारी आशा कर रहे हैं कि शनिवार को होने वाले चुनाव में राष्ट्रपति हामिद करजई के बाद जो भी चुन कर आए, वह देश में स्थिरता लाए और उनकी कमाई बढ़े. लेकिन फिलहाल इनको सबसे ज्यादा चिंता नाटो सेनाओं की वापसी की ही है. नजीमुल्लाह बताते हैं, "मेरे हिसाब से अमेरिकी लोग सबसे बुरे होते हैं. अब जबकि वे यहां से जा रहे हैं, उन्होंने फालतू चीजें अफगान लोगों को देना भी बंद कर दिया है. देने के बजाए वे उन सब चीजों को जला रहे हैं जो वे अपने साथ नहीं ले जाना चाहते." इस मामले में नजीमुल्लाह अमेरिकी सैनिकों का मुकाबला सोवियत सेना से करते हैं, "सोवियत वाले बेहतर थे. जब वे वापस गए तब वे अपनी सारी चीजे पीछे छोड़ गए ताकि अफगान लोग उन्हें इस्तेमाल कर सकें." छोड़े जाने का डर बुश बाजार के व्यापारियों के अलावा भी कई लोगों को चिंता में डाल रहा है. इतने साल नाटो मिशन ने अफगानिस्तान में रहकर वहां की अर्थव्यवस्था में कई बिलियन डॉलर भी लगाए हैं. इसीलिए डर यह भी है कि कहीं विदेशी सेनाओं के वापस लौट जाने से किसी तरह का नाटकीय आर्थिक संकट न पैदा हो जाए.

आरआर/एएम (एएफपी)