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'एक साल में बढ़े 71 फीसदी विदेशी लड़ाके'

२ अप्रैल २०१५

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट बताती है कि इराक, सीरिया जैसे देशों में सक्रिय आतंकी संगठनों की ओर से लड़ने के लिए 100 से भी अधिक देशों से करीब 25 हजार लड़ाके पहुंचे हैं.

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IS Syrien Kämpfer Islamischer Staat Rakka
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Raqqa Media Center

अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों के साथ जुड़ने वालों में विदेशियों की संख्या बढ़ी है. यूएन की नई रिपोर्ट दिखाती है कि इराक और सीरिया जैसे देशों में इनकी संख्या 25 हजार से भी अधिक है. एक विशेषज्ञ पैनल ने अल कायदा के विरूद्ध यूएन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के असर की जांच पड़ताल की. इसी प्रक्रिया में पैनल को मिली जानकारी के आधार पर यूएन ने अपनी इस रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया भर के विदेशी लड़ाकों की संख्या में 2014 के मध्य से 2015 के मार्च महीने के बीच करीब 71 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है.

विशेषज्ञ पैनल ने यूएन सुरक्षा परिषद को दी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस समस्या का स्तर और विदेशी लड़ाकों की संख्या बीते तीन सालों में "ऐतिहासिक रूप से अपने उच्चतम स्तर पर है." कुल विदेशी लड़ाकों की संख्या "एक दशक पहले के कुछ हजार से तेजी से बढ़कर अब 25 हजार से भी ऊपर चली गई है." रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कुल विदेशी लड़ाकों में से करीब 20 हजार तो केवल दो देशों, सीरिया और इराक में ही सक्रिय हैं. इनमें से ज्यादातर लड़ाके इस्लामिक स्टेट की ओर से लड़ने के लिए तो कुछ अल-नुसरा फ्रंट जैसे गुटों की ओर से लड़ने के लिए अपना घर छोड़कर इन देशों में पहुंचे.

विशेषज्ञों का मानना है कि सीरिया और इराक पहुंचे ऐसे हजारों विदेशी लड़ाके वहां रह कर और आतंकी गतिविधियों का हिस्सा बन कर "चरमपंथियों के लिए एक तरह के सच्चे 'अंतरराष्ट्रीय परिष्करण स्कूल' जैसा प्रशिक्षण पा रहे हैं. 1990 के दशक में अफगानिस्तान में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला था.

विशेषज्ञ पैनल ने कहा कि यदि अंतरराष्ट्रीय सेनाएं सीरिया और इराक में आईएस आतंकियों को हराने में कामयाब होती हैं, तो भी कुछ विदेशी लड़ाके यहां से निकल कर पूरी दुनिया में फैल जाएंगे. एक ओर तो घर वापसी पर उनके आतंकवादी प्रवृत्ति लेकर लौटने का खतरा है तो दूसरी बड़ी समस्या इन्हें पहुंचे सदमे से भी होगी. युद्ध के माहौल में इन विदेशी लड़ाकों ने जो कुछ देखा और झेला होगा उससे उबरने के लिए उन्हें मनोवैज्ञानिक मदद की जरूरत होगी वरना उन्हें स्थानीय आपराधिक संगठनों से साथ जुड़ने में देर नहीं लगेगी. सीरिया, इराक और अफगानिस्तान के अलावा सैकड़ों विदेशी लड़ाके यमन, लीबिया, पाकिस्तान और सोमालिया जैसे कई अफ्रीकी देशों में भी सक्रिय हैं.

नए लड़ाके बनने से रोकने के लिए एक्सपर्ट पैनल ने राय दी है कि किसी भी तरह कट्टरता पर नियंत्रण लगे और संभावित लड़ाकों की भर्ती और उनकी विदेश यात्रा को रोका जाए. फिलहाल 10 फीसदी से भी कम विदेशी लड़ाकों की पहचान से जुड़ी मूल जानकारियां ग्लोबल सिस्टम में मौजूद हैं. सीरिया और इराक जाने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण ट्रांजिट प्वाइंट बन चुका तुर्की इस मामले में एक मिसाल है, जहां की "वॉच लिस्ट" में करीब 12,500 व्यक्तियों का ब्यौरा दर्ज है.

आरआर/एमजे(एपी)