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तस्वीर: AP

अब किन्नर बनेंगे एयर होस्टेस

११ फ़रवरी २०११

थाईलैंड की एक एयरलाइन में अब किन्नरों को यात्रियों की सेवा करने का अवसर दिया जा रहा है. किन्नरों को एयर होस्टेस के रूप में नौकरी पर रखा गया है. 100 किन्नरों ने किया आवेदन, 4 को मिली फ्लाइट अटेंडेंट की नौकरी.

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पीसी एयर एशियाई शहरों के लिए अपनी सेवा की शुरुआत अप्रैल से करने जा रही है. फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में उसने सिर्फ युवक-युवतियों की भर्ती करने का ही मन बनाया था लेकिन अब यह फैसला बदल लिया गया है. नौकरी के लिए आवेदन प्रक्रिया में उसे करीब 100 आवेदन किन्नरों से मिले. अब फ्लाइट अटेंडेंट के लिए 19 युवतियों, 7 युवकों और 4 किन्नरों का चयन किया गया है. किन्नरों को थाईलैंड में लेडीब्वॉय के नाम से भी पुकारा जाता है.

24 साल के चयथिसा नाकमई ने बताया, "जब मुझे पता चला कि मेरी नौकरी लग गई है तो मैं फूट फूट कर रोने लगा. मैं बहुत खुश हूं. मैंने कई एयरलाइन में नौकरी की अर्जी भेजी थी." एयरलाइन का कहना है कि लेडीब्वॉय फ्लाइट अटेंडेंट के लिए योग्यता का पैमाना वही रखा गया जो अन्य आवेदकों के लिए था. उनके लिए बस इतनी शर्त जरूर रखी गई कि उनके चलने और बात करने का अंदाज एक महिला की तरह हो, उनकी आवाज भी महिला जैसी हो.

थाईलैंड में लेडीब्वॉय के खिलाफ भेदभाव कम ही देखने को मिलता है लेकिन आधिकारिक रूप से उन्हें महिला के रूप में मान्यता नहीं मिली है. उनके पहचान पत्र पर पुरुष लिखा जाता है. एयरलाइन नौकरियों में सभी वर्गों को बराबर अवसर देने का वादा करती हैं. किन्नर फ्लाइट अटेंडेंट का चयन करने वाले पीसी एयर के अध्यक्ष पीटर चैन ने कहा कि ऐसे आवेदकों के साथ इंटरव्यू थोड़ा देर तक चलता है.

"अगर कुछ युवकों को मैं नौकरी पर नहीं रखना चाहता तो यह अधिकतर उनके रवैये या फिर चरित्र की वजह से होता है. जिस तरह से वह चलते हैं या बात करते हैं इससे भी फर्क पड़ता है. युवतियों में कई बार संयम की कमी देखने को मिलती है और यही उन्हें नौकरी न मिलने की वजह होती है. किन्नरों के साथ हम 5 या 10 मिनट में फैसला नहीं कर सकते. हमें उनके साथ पूरा दिन बिताना पड़ता है यह जानने के लिए कि उनमें वाकई स्त्रियोचित गुण हैं."

एयरलाइन के साथ नौकरी का मौका मिलने पर किन्नरों में खुशी के साथ साथ चुनौती का एहसास भी है. उनका मानना है कि लोगों की नजरें उन पर रहेंगी और उन्हें दबाव का सामना करना पड़ेगा. अन्य कर्मचारियों की तुलना में उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. लेकिन वे इसे स्वीकार करने को तैयार हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: उ भट्टाचार्य

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