अफ्रीकी जंगली कुत्ते शेर और लकड़बग्घों से अलग होते हैं. अपनी खास तकनीक के दम पर वो शिकार को तब तक दौड़ाते हैं जब तक कि वो थक कर गिर ना जाए और फिर आसानी से उसे अपना निशाना बना लेते है. अफ्रीकी कुत्ते शिकार करने में अपनी ताकत, तेज गति या फिर छिपने की काबिलियत की वजह से कामयाब नहीं होते बल्कि कोई और वजह उन्हें मारक बनाती है.
लुप्त होने का खतरा झेल रहे अफ्रीकी जंगली कुत्तों को पेंटेड डॉग या हंटिंग डॉग भी कहा जाता है. विकास प्रक्रिया के दौरान इन कुत्तों के अगले पैरों की हड्डियों, मांसपेशियों और जोड़ों में एक खास तरह का अनुकूलन पैदा हुआ है. अनुकूलन की वजह से यह तेज दौड़ते हुए भी अपनी जिंदगी बचाए रखता है. पूर्वी अफ्रीका में 20-30 के समूह में जंगली कुत्ते हिरण या मृगों का शिकार करने के लिए जटिल रणनीति बनाकर उनका पीछा करते हैं. इस दौरान ये हर रोज करीब 50 किलोमीटर तक दौड़ लगाते हैं. शिकार को थकाने वाली तकनीक का इस्तेमाल कर ये उनका पीछा करते हैं और इस दौरान इनकी रफ्तार 64 किलोमीटर प्रति घंटे तक रहती है.
एरिजोना के मिडवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में शरीर रचना विज्ञान के प्रोफेसर हीथर स्मिथ का कहना है, "ये काफी असरदार शिकारी हैं और 60 फीसदी शिकार करने में सफल होते हैं जो शेर के 30 फीसदी और लकड़बग्घों के 25-30 फीसदी की तुलना में काफी ज्यादा है. हीथर स्मिथ ने ही इन कुत्तों पर हुई रिसर्च का नेतृत्व किया. इस रिसर्च की रिपोर्ट साइंस जर्नल पीयर जे में छपी है. कुत्ते, भेड़िए, लोमड़ी इस तरह के जानवरों के समूह को कैनिड कहा जाता है. कैनिड जीवों में केवल ये कुत्ते ही ऐसे है जिनके पैरों में केवल चार अंगुलियां होती हैं. इनकी वजह से ना सिर्फ इनकी गति तेज होती है बल्कि ये लंबी छलांग लगाने में भी माहिर होते हैं.
हालांकि रिसर्चरों ने जब चिड़िया घर में प्राकृतिक कारणों से मरे एक अफ्रीकी जंगली कुत्ते का सीटी स्कैन और चीरफाड़ किया तो उन्हें अगले पंजों की त्वचा के नीचे एक छोटी सी ऊंगली की मौजूदगी का पता चला. इस ऊंगली की मांसपेशी का स्वरूप बदल गया था जो किसी और रूप में इस्तेमाल हो रहा था. यह ऊंगली कुत्तों को दौड़ने के दौरान उनकी स्थिति, स्थान, दिशा, शरीर और शरीर के अंगों के बारे में चेतना बढ़ाने में मदद करती है.
इसके अलावा रिसर्चरों ने यह भी पता लगाया कि उनके पैरों की मांसपेशियों में ऐसी हल्की ऐंठन होती है जो उन्हें बेहोश होने से बचाती हैं. साथ ही अगले पैरों के जोड़ स्प्रिंग की तरह कुत्ते को आगे की ओर उछलने में मदद देते हैं. इसके अलावा उन्होंने उन मांसपेशियों में कमी भी देखी जो आमतौर पर कलाई और हाथों के अगले हिस्से को घुमाती हैं. इसका नतीजा इनकी स्थिरता के रूप में सामने आता है.
इन कुत्तों में बहुत ज्यादा स्टैमिना है जबकि इनके प्रतिद्वंद्वी शिकारियों जैसे कि चीता अपनी तेजी, शेर अपनी ताकत और तेंदुआ छिपने की खूब की वजह से जाने जाते हैं. हालांकि स्मिथ के मुताबिक "अफ्रीकी जंगली कुत्ते कई बार अपना शिकार इन बड़े और ज्यादा आक्रामक मांसखोरों से हार जाते हैं."
एनआर/एमजे (रॉयटर्स)
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विश्व के सबसे खतरनाक जीव
11. शार्क और भेड़िये
इन दोनों जानवरों के कारण हर साल दुनिया भर में महज दस लोगों की जान जाती है. इसमें कोई शक नहीं है कि भेड़िये और शार्क की कुछ प्रजातियां आपकी जान भी ले सकती हैं. लेकिन वास्तव में बहुत कम लोग ही इनका शिकार बनते हैं. आपकी जान को इनसे ज्यादा खतरा तो घर पर रखे टोस्टर से हो सकता है.
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10. शेर और हाथी
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 100. जंगल का राजा शेर आपको अपना शिकार बना ले, यह कल्पना के परे नहीं है. लेकिन अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि एक हाथी द्वारा आपके मारे जाने की भी उतनी ही संभावना है. हाथी, जो कि भूमि पर रहने वाला सबसे बड़ा जानवर है, काफी आक्रामक और खतरनाक हो सकता है.
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9. दरियाई घोड़ा
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 500. दरियाई घोड़े शाकाहारी होते हैं. लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं कि वे खतरनाक नहीं होते. वे काफी आक्रामक होते हैं और अपने इलाके में किसी को प्रवेश करता देख उसको मारने से पीछे नहीं रहते.
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8. मगरमच्छ
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 1,000. मगरमच्छ जितने डरावने दिखते हैं, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक भी होते हैं. वे मांसाहारी होते हैं और कभी-कभी तो खुद से बड़े जीवों का भी शिकार करते हैं जैसे कि छोटे दरियाई घोड़े और जंगली भैंस. खारे पानी के मगरमच्छ तो शार्क को भी अपना शिकार बना लेते हैं.
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7. टेपवर्म
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 2,000. टेपवर्म परजीवी होते हैं जो कि व्हेल, चूहे और मनुष्य जैसे रीढ़धारी जीव-जंतुओं की पाचन नलियों में रहते हैं. वे आम तौर पर दूषित भोजन के माध्यम से अंडे या लार्वा के रूप में शरीर में प्रवेश करते हैं. इनके संक्रमण से शार्क की तुलना में 200 गुना ज्यादा मौतें होती हैं.
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6. एस्केरिस राउंडवर्म
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 2,500. एस्केरिस भी टेपवर्म जैसे ही परजीवी होते हैं और ठीक उन्हीं की तरह हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं. लेकिन ये सिर्फ पाचन इलाकों तक सीमित नहीं रहते. दुनिया भर में लगभग एक अरब लोग एस्कारियासिस से प्रभावित हैं.
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5. घोंघा, असैसिन बग, सीसी मक्खी
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 10,000. इन मौतों के जिम्मेदार दरअसल ये जीव खुद नहीं होते, बल्कि इनमें पनाह लेने वाले परजीवी हैं. स्किस्टोसोमियासिस दूषित पानी पीने में रहने वाले घोंघे से फैलता है. वहीं चगास रोग और नींद की बीमारी असैसिन बग और सीसी मक्खी जैसे कीड़ों के काटने से.
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4. कुत्ता
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 25,000. रेबीज एक वायरल संक्रमण है जो कई जानवरों से फैल सकता है. मनुष्यों में यह ज्यादातर कुत्तों के काटने से फैलता है. रेबीज के लक्षण महीनों तक दिखाई नहीं देते लेकिन जब वे दिखाई पड़ते हैं, तो बीमारी लगभग जानलेवा हो चुकी होती है.
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3. सांप
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 50,000. सांपों की सभी प्रजातियां घातक नहीं होतीं. कुछ सांप तो जहरीले भी नहीं होते. पर फिर भी ऐसे काफी खतरनाक सांप हैं जो इन सरीसृपों को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हत्यारा बनाने के लिए काफी हैं. इसलिए सांपों से दूरी बनाए रखें.
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2. इंसान
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 4,75,000. जी हां, हम भी इस खतरनाक सूची में शामिल हैं. आखिर इंसान एक-दूसरे की जान लेने के कितने ही अविश्वसनीय तरीके ढूंढ लेता है.
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1. मच्छर
हर साल मारे गए लोगों की संख्या: लगभग 7,25,000. मच्छरों द्वारा फैलने वाला मलेरिया अकेले सलाना छह लाख लोगों की जान लेता है. डेंगू बुखार, येलो फीवर और इंसेफेलाइटिस जैसी खतरनाक बीमारियां भी मच्छरों से फैलती हैं.
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