अफगानिस्तान के लिए नयी अमेरिकी रणनीति में हालांकि बहुत से सवाल खुले हैं, लेकिन ट्रंप के लिहाज से यह बहुत यथार्थवादी है. मेज पर कई विकल्प थे, सेना की फौरन वापसी से लेकर युद्ध को गैरसरकारी सुरक्षा कंपनियों को सौंपने तक. सलाहकारों ने अच्छा काम किया है, कम से कम सेना के जनरलों के नजरिये से. क्योंकि राष्ट्रपति के फैसले के पीछे सिर्फ अमेरिका केंद्रित सैन्य नीति है, कोई मानवीय तर्क नहीं. उसके पीछे नये 9/11 का डर है, अफगान लोगों की खुशहाली नहीं. अमेरिका की मौजूदा नीति और इस नई नीति से वहां और गहराने वाली लड़ाई के परिणास्वरूप कई और लोग अफगानिस्तान छोड़कर भागेंगे. लेकिन उस समस्या का सामना अमेरिका को नहीं, बल्कि अफगानिस्तान के पड़ोसी मुल्कों और यूरोप को करना होगा.
सैनिक तर्क के साथ तय की गयी अमेरिकी नीति राजनयिक तौर पर अस्पष्ट है. इसमें भारत से सहायता के वायदे और पाकिस्तान को स्पष्ट चेतावनी है. लेकिन यह नीति सेना को आवश्यक लचीलापन देती है ताकि वह खुद फैसला कर सके कि उसे कितने सैनिकों की जरूरत है. राष्ट्रपति ने ना तो आंकड़े दिये हैं और नहीं विस्तृत आदेश. सैनिकों की संख्या की बात न करना महत्वपूर्ण है. इसलिए भी कि सेना की संख्या अहम नहीं होती, उनकी कार्रवाई अहम है. अफगानिस्तान के पास 350,000 की सेना है लेकिन इसके बावजूद एक दिन पहले तालिबान ने एक जिले पर बिना लड़ाई के कब्जा कर लिया. असल काम तो अमेरिकी स्पेशल फोर्स की मदद से अफगान स्पेशल फोर्स को करना है.
लश्कर गाह में अफगान सेना के काफिले पर आत्मघाती हमला
लेकिन इसके साथ ही अच्छी खबरों का सिलसिला खत्म हो जाता है. जैसा कि राष्ट्रपति ने कहा, अमेरिका की दिलचस्पी आतंकवाद को कुचलने में है, अफगानिस्तान में राष्ट्र निर्माण में नहीं. ये समझना मुश्किल नहीं कि नागरिक विकास सहायता के लिए इसका क्या मतलब है. लोकतंत्र को प्रोत्साहन देने, भ्रष्टाचार से लड़ने, महिला अधिकारों को बढ़ावा देने या मीडिया की आजादी जैसी परियोजनाओं के लिए संसाधनों का अभाव हो जायेगा और सरकार तथा वार लॉर्ड उस तरह से शासन कर पाएंगे जैसा वे सोचते हैं.
लेकिन इसके साथ ट्रंप उस कामयाबी को खतरे में डाल रहे हैं जो वे हथियारों की मदद से हासिल करना चाहते हैं. सैनिक कार्रवाई के कट्टर समर्थक भी अब मानने लगे हैं कि अफगानिस्तान में शांति बंदूक की नाल से नहीं आ सकती. सैनिक सफलता नागरिक विकास के लिए समय उपलब्ध कराती है, जिसमें स्थिरता और शांति कायम की जा सके.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
रैंप के रंग
पिछले हफ्ते हुए फैशन शो में मॉडलों ने अफगानिस्तान की पारंपरिक पोशाकों को दिखाया जिसे यहीं के कई अलग अलग डिजायनरों ने तैयार किया है. अफगानिस्तान के अलग अलग जातीय समुदायों के पहनावे की शैलियों में फर्क होता है और यही इस फैशन शो में भी नजर आया.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
फैशन की बहार
फैशन शो को देखने के लिए 100 से ज्यादा पुरुष और महिलाएं जमा हुए थे. छोटी सी जगह पूरी तरह से भर गई थी और लोगों का उत्साह देखने लायक था. तालिबान के शासन में इस तरह के नजारे की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
जोखिम है तो हुआ करे
शो के आयोजक 22 साल के मॉडल और फैशन डिजायनर अजमल हकीकी के लिए ये काम बेहद जोखिमभरा था लेकिन उन्होंने इसके लिए हिम्मत जुटा लिया. वे कहते हैं, "मैंने खुद से कहा अगर आत्मघाती हमलावर हम पर हमला करता है, मैं अपने हाथ पांव खो देता हूं तब भी उसी रास्ते पर चलूंगा जिसे मैंने चुना है."
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अफगानिस्तान में फैशन शो
फैशन से आएगी एकता!
आयोजक अजमल हकीकी को अफगान संस्कृति और यहां के पारंपरिक इलाकाई लिबासों की चमक अभिभूत कर देती है और इन्हें लोगों के सामने लाने की उनके अंदर की मजबूत इच्छा इन डियाजनों को देख और ज्यादा प्रखर हो जाती है. उनका मानना है कि अगर अफगान लोग अपनी इस विरासत के मूल्य को जान लें तो इससे उन्हें एक करने में भी मदद मिलेगी.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
अफगान से अफगान का अफगान के लिए
बीते कुछ सालों में काबुल में कुछ फैशन शो हुए हैं लेकिन आमतौर पर उनमें अंतरराष्ट्रीय दर्शक होते है. हकीकी का शो पहली बार पूरी तरह से अफगान फैशन शो था जिसमें अफगानिस्तान के पारंपरिक लिबास को अफगान मॉडलों ने अफगान लोगों के सामने पेश किया.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
दिलों में डर अब भी है
हालांकि महिलाओं को इस तरह से लोगों के सामने पेश करने को लेकर अफगानिस्तान अब भी सहमा हुआ है. पांच साल के तालिबान शासन में जो डर बना वो उनके सत्ता से हटने के 16 साल बाद भी बना हुआ है. नियमित होने वाली हिंसा उस डर को जब तब मजबूत करती रहती है.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
औरतों की मुश्किल
आज भी कुछ महिलाएं बिना बुर्के के घरों से बाहर नहीं निकलतीं जो उन्हें सिर से लेकर पैरों तक ढंके रखता है. महिलाओँ के खिलाफ हिंसा भी बहुत आम बात है. इसके अलावा पुरुषों से प्रेम करने पर महिलाओं को पत्थर से मारने, सरेआम मौत की सजा देने और जेल में डालने की खबरें भी आती रहती हैं.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
कम समय में बड़ी कामयाबी
ऐसे हालात में भी हकीकी की मॉडलिंग एजेंसी ने अफगान फैशन की दुनिया में बहुत कम समय में अपनी एक पहचान कायम कर ली है. वो कई बार राष्ट्रीय टेलिविजन पर भी अलग अलग मौकों पर आ चुके हैं. एजेंसी अपनी खुद के ब्रैंड नाम से कपड़े बेचती है. उनके खरीदारों में 70 फीसदी से ज्यादा विदेशी हैं.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
पहले भी हुए हैं फैशन शो
काबुल में ये तीसरा बड़ा फैशन शो था. इसमें शामिल होने वाली मॉडलों, खासतौर से लड़कियों के लिए ये एक अनोखा अनुभव था. सुरक्षा के भारी इंतजामों के बावजूद उन्हें डर भी लग रहा था. हालांकि एक बेहतर भविष्य के सपने ने रैंप पर उनके कदमों को चलाते रखा.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
शोख रंगों की अफगान शैली
अफगान शैली के कपड़ों में चटक रंगों का भी खूब इस्तेमाल होता है. कपड़ों का रंग देखने वालों की आंखों के साथ ही ये मॉ़डलों के मन में भी सपनों के रंग बुनता है.
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अफगानिस्तान में फैशन शो
भविष्य की तैयारी
दर्शकों में शामिल हुए लोगों के लिए भी ये अनुभव उम्मीदें जगाने वाला था. दर्शकों में शामिल एक महिला ने कहा, "अगर हम अपने लोगों की सोच बदल सकें और इतने सालों की जंग से दूर रख सकें तो मुझे यकीन है कि लोग एक बेहतर भविष्य के लिए तैयार हैं."
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अफगानिस्तान में फैशन शो
काबुल में सब ठीक है
तालिबान का शासन खत्म होने के बाद अफगानिस्तान में थोड़ी तब्दीली आई है. खासतौर से काबुल में शिक्षा और रोजगार को लेकर हालात थोड़े बेहतर हैं. हालांकि अकसर होने वाले हमलों ने इन्हें पूरी तरह बदलने से रोक रखा है. अफगान लोग हर रात इस आशंका के साथ ही सोते हैं कि अगली सुबह कहीं फिर उनकी आंखें तालिबान के शासन में ना खुलें.
रिपोर्ट: निखिल रंजन