हो गया फैसला, नर हैं तो जिंदा नहीं बचेंगे
२३ मार्च २०१६हर साल अरबों नर चूजे अंडे से निकलते ही खत्म कर दिए जाते हैं. उनका दोष इतना है कि वे नर पैदा हुए. इस पर प्रतिबंध लगने से जर्मन कृषि और पशुपालन क्षेत्र को नुकसान होने की आशंका के कारण सासंदों ने इस पर रोक लगाने की मांग को रद्द कर दिया है.
इन्हें एक दिन के चूजे भी कहा जाता है क्योंकि उन्हें इससे लंबा जीने ही नहीं दिया जाता. केवल जर्मनी में ही हर दिन हजारों नर चूजे मारे जाते हैं. नर होने के कारण वे अंडे नहीं दे सकते और इसीलिए उन्हें जिंदा रखकर खिलाना पिलाना आर्थिक दृष्टि से घाटे का सौदा है. उन्हें मीट के लिए बड़ा करने का भी कोई फायदा नहीं होता क्योंकि उन पर मांस नहीं चढ़ता.
क्रूर परंपरा
पशु अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस क्रूर परंपरा को रोकने की मांग की थी. जर्मनी की ग्रीन पार्टी ने भी इस मुद्दे पर उनका साथ दिया. वही जर्मन संसद में इस बाबत एक विधेयक ले कर आए जिससे इस पर प्रतिबंध लग सके. लेकिन 17 मार्च 2016 को संसद में इस विधेयक के विरुद्ध वोट पड़े.
चांसलर अंगेला मैर्केल की सत्ताधारी क्रिस्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के डीटर श्टीयर का मानना है, "पशुओं की भलाई इस तरह के हथौड़ामार कदम से नहीं बल्कि पशुधन के मालिकों के हिसाब से चलने से पक्की होगी. वरना होगा ये कि सारा पशु उत्पादन किसी और देश में चला जाएगा."
हर साल 4 करोड़ से ज्यादा नर चूजे केवल जर्मनी में ही मारे जाते हैं और पूरी दुनिया में करीब 2.5 अरब. इन चूजों को या तो तेज चाकुओं वाली मशीन में डालकर टुकड़े टुकड़े में काट दिया जाता है, या फिर कार्बन डाइऑक्साइड के माहौल में गैस कर दिया जाता है. इसके बाद मृत जीवों को पीस कर उनका मीट निकाल लिया जाता है. गैस में दम घुटा कर मारे जाने वाले चूजों को चिड़ियाघरों में पशुओं का चारा बना कर डाल दिया जाता है.
कारोबारी वजहें
जर्मनी के पशु संरक्षण कानून के अनुसार, जानवरों को किसी उपयोगी कारण के लिए ही मारा जा सकता है. चूजों को मारने के तरीकों के लिए भी यूरोपीय संघ का एक डायरेक्टिव है. जर्मनी के खाद्य, कृषि और उपभोक्ता संरक्षण मंत्रालय ने डॉयचे वेले से कहा, "एक दिन के चूजों को मारने का कदम तभी उठाया जाना चाहिए जब बाकी सभी संभावनाएं आजमा ली गई हों." उद्योग जगत का मानना है कि इन पशुओं को जिंदा रखकर मोटा करने से कोई फायदा नहीं होता. 1950 तक ऐसा होता था लेकिन उसके बाद से इस उद्योग में आई तेजी और क्षमता बढ़ाने के प्रयासों के तहत नर चूजों का मारे जाने की परंपरा शुरु हो गई.
रिसर्चर ऐसे तरीके तलाश रहे हैं जिससे पहले से ही अंडों में लिंग निर्धारित किया जा सके. नए तरीकों से लिंग निर्धारण टेस्ट संभव है. फिर चूजों की जान नहीं जाएगी. इसके लिए जरूरी होगा कि विकास के दसवें दिन से पहले ही लिंग निर्धारण हो जाए. इसके बाद मुर्गे का भ्रूण दर्द महसूस करने लगता है. गीसेन यूनिवर्सिटी में एक पीएचडी शोध में इस बात की जांच की गई कि क्या अंडे के आकार से भ्रूण के लिंग का निर्धारण संभव है. यह इतना आसान नहीं. सारे तरीके जिनसे यह पता लगाना संभव है, बहुत ही जटिल हैं.