हॉलैंडः दमखम तो है, बस लगन चाहिए
६ जून २०१०इसीलिए टीम के सितारे रह चुके रूड गुलिट के पास कामयाबी का एक नुस्खा है. हाल में उन्होंने कहा, "शुरू में रद्दी खेल दिखाओ, किसी तरह 1-0 से जीत हासिल करो. और फिर नॉक आउट स्टेज में पहुंचने के बाद अपना करिश्मा दिखाना शुरू करो." मिसाल देते हुए वे कहते हैं कि 2008 के यूरोपीय कप के दौरान इटली और फ़्रांस के ख़िलाफ़ उसका खेल शानदार था, रूस के ख़िलाफ़ नाटकीय.
बस उसके बाद टांय टांय फ़िस्स. क्योंकि आप खुद निश्चिंत होने लगते हैं और दूसरी टीमों को आपकी कमज़ोरियों का पता चल जाता है. नीदरलैंड्स 1988 में यूरोपीय चैंपियन बन चुका है, 1974 और 1978 में वह विश्वकप के फ़ाइनल में था. लेकिन दोनों बार उसे मेज़बान टीम से हारना पड़ा. 74 में जर्मनी से और 78 में अर्जेंटीना से.
वैसे 1970 के दशक में उसके सितारे चमक रहे थे. टीम अपने टोटल फ़ुटबॉल के लिए मशहूर थी. पास देने में महारत की वजह से उसे क्लॉकवर्क ओरान्ये कहा जाता था.
इस बार हालैंड को एक अच्छा ग्रुप मिला है. इसमें न तो फ़्रांस, पुर्तगाल या जर्मनी जैसे यूरोप के देश हैं और न ही आइवरी कोस्ट या घाना जैसी ख़तरनाक अफ़्रीकी टीमें. उसे कैमरून, जापान और डेनमार्क के साथ खेलना है. माना जा रहा है कि ग्रुप में पहले स्थान पर आना उसके लिए बहुत मुश्किल नहीं होगा. कैमरून शायद दूसरे स्थान पर हो. लेकिन मुकाबले की तीनों टीमें अनुभवी हैं. संभलकर खेलना पड़ेगा. वेसली स्नेइडर, आर्यन रोबेन और रोबिन फ़ान पैरसी का आक्रामक खेल रक्षा पंक्ति की कमज़ोरियों को ढकने के काबिल है. साथ ही फ़ान बोम्मेल की वापसी के बाद निगेल डे योंग के साथ उसकी जोड़ी रंग दिखा सकती है. काफ़ी मुमकिन है कि रोबिन फ़ान पैरसी इस टूर्नामेंट में सितारा बनकर उभरें. लेकिन क्या वह नीदरलैंड्स को आखिरी पड़ाव तक पहुंचा पाएंगे? संभावनाएं तो हैं, लेकिन उन्हें वे नतीजों में बदल नहीं पाते हैं, नीदरलैंड्स की यह बदनामी क्या इस बार दूर होगी?
रिपोर्टः उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादनः ए जमाल