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''हैमलेट सरीखा चरित्र है देवदास''

४ नवम्बर २००९

लगभग ख़ामोशी के साथ बीत रही है एक शताब्दी- दो बीघा ज़मीन, परिणीता, या देवदास जैसी फ़िल्म बनाने वाले फ़िल्मकार बिमल रॉय का सौ साल पहले जन्म हुआ था. जर्मनी के हैम्बर्ग में एक सिंहावलोकन कार्यक्रम में उन्हें याद किया गया.

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सिलसिले तोड़े बिमल रॉय ने.तस्वीर: Ujjwal Bhattacharya

इस कार्यक्रम के अंतर्गत उनकी पहली फ़िल्म उदयेर पथे, व साथ ही, सुजाता, बंदिनी, दो बीघा ज़मीन, मधुमती और देवदास दिखाई जा रही है. बिमल रॉय की बेटी व उनके कामों को समर्पित प्रतिष्ठान की संस्थापक रिंकी रॉय भट्टाचार्य इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आई हुई थीं. अभी हाल में बिमल रॉय पर उनकी पुस्तक आई है, शीर्षक है - तस्वीरों के ज़रिये बोलने वाले - बिमल रॉय. हमें उनसे बात करने का मौका मिला. और हमने उनसे पूछा कि भारतीय फ़िल्म इतिहास का स्वर्ण युग समझे जाने वाले पचास के दशक में बिमल रॉय के विशिष्ट योगदान को कैसे आंका जा सकता है.

- मेरी राय में भारतीय फ़िल्म के इतिहास में पिताजी के योगदान का सिलसिला उनकी पहली फ़िल्म उदयेर पथे के साथ ही शुरु हुआ था. इस फ़िल्म में हमें समाज के बारे में, उसकी वर्ग संरचना के बारे में उनके विचारों व उनकी चेतना की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है. और इस पर मुझे थोड़ा आश्चर्य होता है, क्योंकि वे एक ज़मींदार परिवार के बेटे थे, और मुझे पता है कि एक छात्र के तौर पर वे काफ़ी शौकीन हुआ करते थे. लेकिन जब उस सिलसिले को तोड़कर वे एक कलाकार के रूप में संघर्ष का बीड़ा उठाया, तो उनकी ज़िंदगी बिल्कुल बदल गई. मैंने सुना है कि कोलकाता में अपने उस दौर में उन्हें कभी-कभी खाने के भी लाले पड़ जाते थे. इन अनुभवों का उनके जीवन और विचारों पर गहरा असर पड़ा. इनसे उन्हें काफ़ी सीख मिली और यही कारण है कि वे दो बीघा ज़मीन के शंभु महतो या उदयेर पथे के अनूप लेखक जैसे चरित्र बना सके. मुझे लगता है कि वह दौर भारतीय फ़िल्म के लिए एक रेनेसां जैसा दौर था.

बिमल रॉय भारतीय जन नाट्य आंदोलन इप्टा के साथ कहां तक जुड़े थे?

- पिताजी इप्टा के अध्यक्ष रह चुके हैं और इप्टा के साथ जुड़े अनेक व्यक्तित्व, मसलन ऋत्विक घटक या सलिल चौधरी पिताजी के साथ काम कर चुके हैं. ऋत्विक घटक पिताजी के असिस्टेंट थे. सलिल चौधरी उनके लिए लिखते थे, फ़िल्म के लिए संगीत निर्देशन करते थे. वे साथ-साथ काम करते थे, साथ-साथ सोचते थे, और उसी प्रक्रिया में से वे सभी उभरे थे. और उस प्रक्रिया में पिताजी का, बल्कि सभी का महत्वपूर्ण योगदान था.

मधुमती और देवदास बिमल रॉय की ऐसी दो फ़िल्में हैं, जिन्हें किसी हद तक व्यवसायिक फ़िल्मों की श्रेणी में रखा जा सकता है. फिर भी देवदास के ज़रिये उन्होंने फ़िल्म इतिहास में एक ऐसे एक रूपक को प्रतिष्ठित किया, लगभग चार पीढ़ियां जिससे सम्मोहित रही, उससे तड़पती रही. एक प्रतिबद्ध फ़िल्मकार के रूप में इस फ़िल्म को बनाने का विचार उनके मन में कैसे आया?

- पिताजी प्रमथेश बरुआ वाली 'देवदास' के असिस्टेंट कैमरामैन व सहगल वाली 'देवदास' के कैमरामैन थे, और तभी से इसकी कहानी उनके मन में समाई हुई थी, दरअसल वे शरतचंद्र की कहानियों को बेहद पसंद करते थे. शरतचंद्र की तीन कहानियों, परिणीता, देवदास और बिराज बहू पर उन्होंने फ़िल्में बनाई. देवदास का चरित्र किसी भी निर्देशक के लिए एक चुनौती है. इस एक कहानी पर अलग-अलग भाषाओं, मसलन बांगला, हिंदी, तमिल या तेलेगू में कितनी फ़िल्में बन चुकी हैं.

कुल मिलाकर 14 फ़िल्में...

- इस बीच शायद 14 हो चुकी हैं, पहले 11 थी. इस कड़ी में सबसे नई फ़िल्म है अनुराग कश्यप की देव डी, एक बेहद अच्छी फ़िल्म है. कहा जा सकता है कि यह देवदास का बिल्कुल आधुनिक रुपांतर, एक टोटल इंटरप्रेटेशन है. देवदास बिल्कुल हमारे रग-रग में है, यह बिल्कुल शेक्सपीयर के हैमलेट जैसा चरित्र है, एक चरित्र, जिसकी सार्थकता उसकी कमज़ोरी में छिपी हुई है. मुझे लगता है कि भारतीय पुरुष इस चरित्र से अपने आपको आइडेंटीफ़ाई करता है. एक पुरुष, जो कोई फ़ैसला नहीं ले पाता, बिल्कुल हैमलेट की तरह. शरत बाबू खुद भी कुछ इसी तरह के थे. जब देवदास फ़िल्म पहली बार बनी, वे जीवित थे, और वे अक्सर न्यू थिएटर्स के सेट पर आते थे.

भारतीय पुरुष अपने आपको आइडेंटीफ़ाई करता है, लेकिन कहीं न कहीं यह चरित्र उसे कुरेदता भी है...

- मैं आपको एक कहानी सुनाऊं. बिराज बहु के प्रोड्युसर हितेन चौधरी, उन्हें दिलीप कुमार का आविष्कर्ता माना जाता है. दोनों पड़ोसी भी थे. 'देवदास' जब बन रही थी, तो दिलीप कुमार अक्सर परेशान होकर हितेन चौधरी के पास जाते थे. वे अपने-आपको इस चरित्र में खपा नहीं पा रहे थे. एक दिन उन्होंने कहा - हितु दा, यह कैसे हो सकता है? मैं एक पठान हूं. एक जवान औरत अगर रात को मेरे पास आए, मैं कैसे उसे वापस भेज सकता हूं? इस पर हितेन चौधरी ने हंसते हुए कहा था - तुम नहीं वापस भेज रहे हो, वह तो देवदास है.

वार्ताकार - उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन - शिव जोशी